हैदराबाद/गुलबर्गा : खाजा बंदा नवाज़ विश्वविद्यालय, गुलबर्गा, कर्नाटक के हिंदी विभाग द्वारा आयोजित विशेष अतिथि व्याख्यान में ‘एकता के सूत्र में हिंदी भाषा का समन्वय’ विषय पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की आयोजक विभागाध्यक्ष डॉ. देशमुख अफशाँ और सहायक आचार्य मिलन बिश्नोई थे। विशिष्ठ अतिथि युवा साहित्यकार, हिंदी भाषा प्रचारक धन्यकुमार जिनपाल बिराजदार, सोलापुर तथा मुख्य अतिथि अखिल भारतीय हिंदी महासभा के संगठन महामंत्री अमित रजक जी थे। अतिथियों का स्वागत विभागाध्यक्ष डॉ. देशमुख अफशाँ एवं समन्वयक श्रीमती खुदसिया परवीन ने किया।
बतौर विशिष्ठ अतिथि युवा साहित्यकार, हिंदी भाषा प्रचारक, अखिल भारतीय हिंदी महासभा के दक्षिण के महामंत्री धन्यकुमार जिनपाल बिराजदार ने दक्खिनी हिंदी की उपयोगिता और महत्त्व को बताते हुए उनके द्वारा रचित ‘लॉकडाउन’ कहानी संग्रह में शिक्षा, रोजगार, समाज, निम्नवर्ग पर पड़ने वाले प्रभाव को बताया। यह कहानी संग्रह मूलतः डॉक्टरर्स, नर्स, सफाईकर्मी, शिक्षकगणों को समर्पित हैं। अतः उनके ‘लॉकडाउन’ कहानी संग्रह को इस विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में भी पढ़ाया जाता है। उन्होंने अंग्रेजों पर व्यंग्य करते हुए बताया कि सूट, बूट, टाई और गौरे-गौरे मुखड़े वाले मुट्ठी भर लोगों ने देश में भाषायी विवाद खड़ा किया। इसलिए अंग्रेजो की कलुषित मानसिकता और गुलामी से मुक्त होने के लिए आजादी की लड़ाई लड़नी पड़ी और भारतीय संविधान का नया निर्माण किया गया।
उन्होंने बताया विडम्बना यह भी है कि देश के संविधान में राष्ट्रीय पक्षी, राष्ट्रीय पेड़, राष्ट्रीय प्रतीक होने के बावजूद भी ‘राष्ट्रीय भाषा’ के रूप में हिंदी को स्थान नहीं दिया गया। किंतु हमने दिल छोटा नहीं करते हुए वैश्विक स्तर पर हिंदी का परचम लहराया है। आज हिंदी केवल साहित्यिक भाषा ही नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वाणिज्य और व्यापार की भाषा बन चुकी है। उन्होंने विद्यार्थियों को आधुनिक हिंदी फिल्म जगत, पटकथा लेखन, फीचर लेखन, अनुवादक, स्क्रीप्ट लेखन, संक्षेपण इत्यादि लेखन में आगे बढ़ने की तकनीकी को समझाते हुए हिंदी को रोजगारोन्मुखी बताया। तथा उन्होंने केंद्रीय संस्थान, आगरा से इस दक्खिन क्षेत्र में इस विश्वविद्यालय द्वारा हिंदी के कारण एक लाख रूपये तक आर्थिक सहयोग संगोष्ठी, वर्कशॉप हेतु दिलवाने का भरोसा दिलवाया।
अखिल भारतीय महासभा के संगठन महामंत्री ने अपने संबोधन बताया कि हिंदी राष्ट्र की संकल्पना में एकता और अखंडता का काम करती है। हिंदी केवल आदान-प्रदान की भाषा नहीं बल्कि हिंदी रोजगार व पेट की भाषा है। हिंदी के माध्यम से ही विद्यार्थियों को रोजगार प्राप्त करने के लिए अनेकानेक अवसर उपलब्ध है। किंतु उन्हें अपनी मातृभाषा के साथ हिंदी भाषा में प्रशिक्षण लेने से मंत्रालय, भारतीय दूतावासों, अनुवाद, पर्यटन, वाणिज्य और व्यापार के क्षेत्र में सुनहरे अवसर उपलब्ध है। अर्थात् खुशी की बात यह है कि इस व्याख्यान कार्यक्रम में हिंदी साहित्य के विद्यार्थियों के साथ-साथ समाजशास्त्र, वाणिज्य और विज्ञान वर्ग के विद्यार्थी और प्राध्यापकगण उपस्थित रहे। इस कार्यक्रम का संचालन हिंदी विभाग की सहायक आचार्य डॉ. मिलन बिश्नोई ने किया।