अग्रवाल समाज के पितामह अग्रसेन महाराजा जी का जन्म द्धापर युग के आखिरी चरण में अश्विन शुक्ल प्रतिपदा पहले नवरात्रि के दिन हुआ था। उनके जन्मदिवस को अग्रवाल समाज द्धारा धूमधाम से अग्रसेन जयंती के रूप में मनाते हैं। महाराजा अग्रसेन जी सूर्यवंशी, समाज सेवी, कुशल कौशल से भरपूर क्षत्रिय राजा थे। आप राम राज्य के समर्थक, समाजवाद के प्रबल समर्थक थे। उनके राज्य में जब भी कोई परिवार बाहर से आता था, तो उसको 1 रुपया एक ईंट देकर सहयोग दिया जाता था। इस प्रकार वह अपना घर बना लेता था और पैसे से अपना व्यापार कर लेता था। जिससे उसका गुजारा भली प्रकार हो जाता था। उस समय सब परिवार मिलजुल कर रहते थे। और आपस में सहयोग करते थे।
अब इसका रूप थोड़ा बदल गया है। आज धर्मशालाएं, अस्पताल, खेल के स्टेडियम एवं बैंक्विट हॉल और यात्री निवास आदि बनाए जा रहे हैं। जिससे सभी वर्ग के लोग लाभान्वित हो सकें। किसी भी विपदा के समय अग्रवाल अपना सहयोग देकर मदद करते हैं। साथ ही आज जगह-जगह स्टाल लगाकर खाना व आवश्यक वस्तुओं को वितरित कर सेवा भावना से कार्य किए जाते हैं। महाराजा अग्रसेन महादानी, लोकनायक, समाजवाद के प्रणेता, पौराणिक कर्मयोगी थे। वे भगवान श्री कृष्ण के समकालीन थे। महाराजा अग्रसेन ने अपने शासन में बहुत सारे यज्ञोपवीत किए।
एक बार घोड़े की बली के दौरान उसको बेचैन और डरा हुआ देखकर उनके मन में विचार आया कि ऐसी समृद्धि से क्या लाभ जिसमें मूक पशुओं का खून बहाया जाये, उन्होंने तुरंत ही पशु बलि पर प्रतिबंध लगा दिया और आज अग्रवाल समाज हिंसा से दूर रहता है। क्षत्रिय कुल में जन्में अग्रसेन जी को पशुओं की बलि आदि देने से घोर नफरत हो गई थी। इसलिए उन्होंने अपना क्षत्रिय धर्म छोड़कर वैश्य धर्म स्वीकार किया था। आप महादानी थे, आपने नाग लोक के राजा कुमुद के यहाँ हुए स्वयंवर में राजकुमारी माधवी को वरण किया। इससे नाग व आर्य कुल के साथ संबन्ध स्थापित हुए।
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राजकुमारी माधवी जी के द्वारा महाराजा अग्रसेन जी को वर के रूप में चुनने से राजा इंद्र काफी अपमानित महसूस हुए। उन्होंने प्रताप नगर में बारिश नहीं करने की ठान ली, जिससे वहां भयंकर अकाल हो गया। प्रजा भूख प्यास से बेचैन हो गई तब महाराजा अग्रसेन ने अपने भाई शूरसेन के साथ राजा इंद्र से अपने राज प्रताप नगर को इस संकट से उबारने के लिए युद्ध किया। जीत के करीब होने के बावजूद नारद मुनि जी ने बीच में पढ़कर इंद्र के बीच सुलह करा दी, लेकिन फिर भी जनता की मुसीबतें कम नहीं हो रही थी।
वह तरह-तरह इनको परेशान कर रहा था। तब महाराजा अग्रसेन जी ने इस प्रभाव से बचने के लिए भगवान शंकर और माता लक्ष्मी की कड़ी तपस्या की और तब लक्ष्मी देवी ने प्रसन्न होकर महाराजा अग्रसेन को सलाह दी कि वे राजा महीरत (नागवंशी) की पुत्री से विवाह कर लेंगे तो उनको सभी शक्तियां मिल जाएंगी और इंद्र को भी आप से आमना सामना करने के लिए सोचना पड़ेगा। इस प्रकार महाराजा अग्रसेन ने राजकुमारी सुंदरावती से दूसरा विवाह कर अपने नगर को संकट से बचाया और उन्होंने लक्ष्मी देवी की सलाह के अनुसार नए राज्य की स्थापना की। इसके लिए उन्होंने अग्रोहा (हरियाणा) में नगर की स्थापना की।
महाराजा अग्रसेन ने १८ गोत्रो को एक साथ पिरोये रखा और ऐसी परम्परा डाली कि अपने गोत्र को छोड़कर दूसरे गोत्र में ब्याह शादी कर सकते हैं। ऐसी सोच वैज्ञानिकता से परिपूर्ण भी है। इस प्रकार आज भी १८ गोत्र इसका पालन कर रहे हैं। उन्होंने सभी को शाकाहारी व संयमित जीवन जीने का सन्देश दिया, जिसको भली भांति आज तक देश विदेश के अग्रवाल पालन करते आ रहे हैं। अग्रसेन जयंती पर अग्रवाल समाज की शाखाएं व अन्य लोग माल्यापर्ण करके अग्रसेन जी के आदर्शो पर चलने का प्रण लेते हैं।
अग्रसेन जयंती पर अग्र बंधु एकत्र होकर अग्रसेन जी को याद करके एकता का परिचय देते है और आपस में मिलजुल कर अपनी सांस्कृतिक धरोहर को संजोये रखते हैं। विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित करके अग्रवाल बंधुयों को एक सूत्र में बांधने का काम करते हैं। आज हैदराबाद नगर में 85 से ऊपर शाखाएं अग्रवाल बंधुओं को प्रिविलेज कार्ड के माध्यम से संस्थाओं से छूट दिला रही है और हर त्योहार पारंपरिक रूप से मना रही है, जिससे अपनी सांस्कृतिक धरोहर बनी रहे और आने वाली पीढ़ी को अपने महाराजा अग्रसेन जी की जीवनी के बारे में अवगत करा सके।
महाराजा अग्रसेन ने लगभग 100 वर्षों तक शासन किया। इसके बाद अपने ज्येष्ठ पुत्र राजा विभु को कार्यभार सौंप दिया और महाराजा अग्रसेन जी वन में चले गए। उनको भगवान के तुल्य स्थान दिया गया क्योंकि उनकी दयालुता कर्मठता, न्यायप्रियता, एवं क्रियाशीलता के कारण इतिहास के पन्नो में महत्वपूर्ण इतिहास रच गया। महाराजा अग्रसेन जी के विचारों ने समाजवाद को एक नई दिशा दी। इसी से प्रेरित होकर भारत सरकार ने भी 24 सितंबर 1976 को उनके सम्मान के रूप में 25 पैसे का डाक टिकट जारी किया। इसके अतिरिक्त 1995 में एक जहाज लिया उसका नाम भी अग्रसेन रखा गया था। महाराजा अग्रसेन जयंती अग्रवालों का एक महत्वपूर्ण उत्सव है। अपने भाई बंधुओं की सहायता के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। समाज में आई कुरीतियों को दूर करने का प्रयास करते हैं। मेल मिलाप से समस्याओं का हल करके समाज को आगे बढ़ने में सहायता प्रदान करते हैं, जिससे एक सुसंस्कृत संगठित समाज बने। इस दिन जगह जगह शोभा यात्रा निकाली जाती है। जय महाराजा अग्रसेन!
के पी अग्रवाल मानद मंत्री एवं संस्थापक पूर्व अध्यक्ष अग्रवाल समाज गच्ची बावली शाखा, हैदराबाद