समीक्षा : मानवीय समाज का अनुभूत सत्य का चित्रण है डॉ राशि सिन्हा की पुस्तक- ‘स्वप्न वृक्ष’

साहित्य जगत की बहुचर्चित एवं कद्दावर युवा लेखिका डॉ राशि सिन्हा का सद्यः प्रकाशित कहानी संग्रह ‘स्वप्न वृक्ष’ प्राप्त हुआ। इस संग्रह में कुल पाँच बहुत-बहुत लम्बी कहानियाँ संकलित हैं। कहानियों के शीर्षक बड़े रोचक हैं। क्रमशः ‘स्वप्न वृक्ष’, ‘रौंद’, ‘एक सच यह भी’, ‘नियुक्ति पत्र’ और अंतिम कहानी ‘सिहरन’ हैं। संग्रह की सभी कहानियों में जीवन के कटु यथार्थ का चित्रण किया गया है। इसी पुस्तक में ‘मेरी बात’ में डॉ राशि सिन्हा लिखती हैं-

“इस वस्तुगत जगत के भीतर गतिशील समस्त क्रिया-व्यापार उसकी समष्टि का यथार्थ जब उसमें व्याप्त बिखराव, अस्तित्व पूरक मूल्य हीनता आंतरिक एवं बाह्य संघर्षों से उत्पन्न अन्तर्विरोधों को एक संवेदनशील वैयक्तिक चेतना अपनी छटपटाहट में अंगीकृत कर लेती है तो अनुभूतियों के यही व्यंजन, भाषिक अर्थवेत्ता में परिवर्तित हो, सृजन के माध्यम से अभिव्यक्त हो उठते हैं।”

सृजनकार अत्यंत संवेदनशील और सूक्ष्म अन्वेषी होता है। वर्तमान में मानवीय रिश्ते बाजारवाद, अवसरवाद एवं स्व को स्थापित करने की जद्दोजहद में टूट कर बिखर रहे हैं। साहित्यकार समाज में विघटित एवं क्षरित हो रहे मूल्यों को देखकर छटपटा उठता है। वह मानवीय जीवन मूल्यों की पुनः स्थापना हेतु अपनी लेखनी द्वारा प्रयास करता है। लेखिका का यह वाक्यांश इस सत्य की पुष्टि करता दिखाई देता है-

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“एक संवेदनशील हृदय, समाज में हो रहे उथल-पुथल, अहं का उत्थान, स्वत्व की लड़ाई, मृत होती मानवीयता, उदित होते अवसरवाद और बाजारवाद से आहत होने के बाद युग-चेतना के आवाहन के लिए संवेदनाओं के उपसर्गों और प्रत्ययों की तलाश कर, उनके बीजों को युग-चेतना की जमीन में बोने के लिए छट पटा उठता है, ताकि युग का स्पंदन पुनः जीवित हो सके।”

‘स्वप्न वृक्ष’ कहानी में दो कहानियाँ समान्तर चलती हैं। एक कहानी देव और अबोल जी के माध्यम से दृष्टिगत होती है तथा दूसरी देव और झुनकिया देवी के बीच चलती दिखाई देती है। ‘स्वप्न वृक्ष’ मनोवैज्ञानिक कहानी है। नायक देव के सपनों के अंतर्मन की यात्रा है, जिसमें अपने जीवन में घटित घटनाओं से उसे याद आता है कि माँ ने उसका नाम ‘देव’ क्यों रखा है? लेखिका राशि सिन्हा, देव के माध्यम से लिखती हैं-

”याद है उसे, जब भी वो अपनी माँ के साथ होता तो वह उसे देवदार वृक्ष की विशेषताएँ, उससे जुड़ी सांस्कृतिक लोक कथाएँ सुनाती-बतलाती रहती थीं। तभी तो वह बचपन से वैसा ही बनना चाहता था, देवदार वृक्ष की तरह… !”

स्वप्न वृक्ष कहानी में झुनकिया देवी अपने जीवन की संघर्ष गाथा देव को सुनाती है, जिससे कहानी का निष्कर्ष को प्रभावित होता है। यहाँ यह रेखांकित करना जरूरी है कि झुनकिया देवी के माध्यम से पुरुषवादी घृणित मानसिकता एवं सामाजिक विद्रूपताओं के चित्रण से समाज के घृणित किन्तु कटु सत्य को उकेरा गया है। लेखिका स्त्री विमर्श को बहुत ही मजबूती से उठाती हैं। डॉ राशि झुनकिया देवी के संवादों के माध्यम से कहती हैं –

”जिस समाज ने मुझे जहर पिला-पिला कर बड़ा किया था, उस जहर से नीली होती आत्मा को समाज का विष ही तो समझ रही थी।”

पुरुषों की नज़रों में छुपी दानवता को लेखिका ने कुछ तरह व्याख्यायित किया है-

“एक स्त्री की देह को उसकी कोमल मांस-पिण्डों को भेदती स्त्री लोभियों की निगाहों का नुकीलापन काटता ही नहीं… बल्कि फाड़ कर रख देता है उस कोमलांगना की देह को और तब तो… और भी… जबकि वह किसी नवयौवना की पुष्पित होती देह हो।”

इस कहानी में स्त्री विमर्श को केंद्र में रखकर लेखिका ने विकसित समाज की विद्रूपता और विकृत पुरुष मानसिकता की पोल खोल कर रख दी है। कहानी का शीर्षक सार्थक एवं भाषा परिष्कृत है।

‘रौंद’ संग्रह की दूसरी कहानी है। यह अपने अलग कलेवर की प्रेम कहानी है। दिन-प्रतिदिन विघटित एवं क्षरित होते मानवीय मूल्यों का प्रभाव ने प्रेम भावना को भी दूषित कर दिया है। लेखिका मानवीय मूल्यों की स्थापना के लिए चिंतित हैं और मानवीय संबंधों में गरिमा एवं मर्यादित विचारों की समर्थक दिखाई देती हैं। युग के बदले हुए परिवेश के सत्य के प्रति भी लेखिका अपना एक अलग दायित्व बोध रखती हैं। इस कहानी का पात्र ‘अभि’ ऐसा ही है जो अपनी धूर्तता से दूसरों को बर्बाद करने का कुचक्र रचता रहता है। उसका चरित्र चित्रण लेखिका ने इस तरह किया है-

“उसके सामने जाना-पहचाना-अनजाना जो भी आ जाता, वह उसको और उसके परिवार के सदस्यों को नीचे गिराने से नहीं चूकता और अगर कोई कॉमन फ्रैंड मिल जाए तब तो और भी बेचारा और सताया हुआ बनकर सहानु‌भूति बटोरने में लग जाता। इसीलिए रिनी के लिए भी यह सब कुछ नया नहीं था।” इस कहानी में मानव चित्त वृत्तियों और कुवृत्तियों का विश्लेषण देखने को मिलता है।

‘एक सच ऐसा भी’ संग्रह की तीसरी कहानी है। इस कहानी में समाज का एक नया सच देखने को मिलता है। लेखिका राशि सिन्हा ने अरविन्द बाबू और कृष्णकांत बाबू के माध्यम से एक ऐसा सच उजागर किया है जिसकी तरफ हमारा ध्यान अधिकतर नहीं जाता है। अब तक दहेज़ की प्रताड़ना लड़की वालों के लिए ही सुनते आये हैं, लेकिन इस कहानी में लड़के के पिता कृष्णकांत बाबू बिना दहेज़ शादी करने के लिए लड़की के पिता की चालाकियों के शिकार हो जाते हैं। समाज का यह सच उजागर करने के लिए बहुत साहस चाहिए लेकिन लेखिका ने यह खतरा मोल लिया है। ‘एक सच ऐसा भी’ कहानी की भाषा में स्वाभाविक प्रवाह है। लेखिका लिखती है-

”उन सभी के बीच वह ऐसी बैठी थी, जैसे अमावस की घुप्प अँधेरी रात के मध्य प्रदीप्त-प्रदीप्त दिए की लौ के बीच अपने रूप लावण्य से जगर-मगर करती पद्मासिनी।” कहानी का अंत सुखांत है और यही इस कहानी को विशेष बना देता है।

‘नियुक्ति पत्र’ इस संग्रह की चौथी कहानी है। इसमें राशि सिन्हा ने वर्तमान समय में भ्रष्टाचार के एक ज्वलंत प्रश्न को उठाया है, जिसमें नियोजित शिक्षकों की बहाली में होने वाले घपले और रिश्वतखोरी को उजागर कर समाज के मध्यम वर्गीय बेरोजगार का दर्द दिखाया गया है। इसमें लेखिका ने मुख्य पात्र रमा के माध्यम से अपने पैरों पर खड़े होने की छटपटाहट को दिखाया है। कहानी की शुरुआत में ही लेखिका यह बताने में सफल हुई हैं कि कैसे बिचौलिया ने दलाली करके सरकारी तंत्र को पूर्णतः प्रदूषित कर दिया है और पैसा लेकर बैक डोर से एंट्री करवाने का गोरखधंधा कर रहा है। सरकारी तंत्र पर करारा प्रहार करते हुए लेखिका ने मध्यम वर्ग के उस आदर्श परिवार की कहानी बताई है जो बेटी को आत्मनिर्भर बनाने के लिए लाला ठाकुर जैसे बिचौलिया के चंगुल में फंसकर कैसे-कैसे मानसिक कष्ट झेलता है। और अंत में पैसा जाने के बाद भी हाथ कुछ नहीं लगता और ठगे जाने के दर्द से तड़पते रह जाते हैं। रमा के साथ यही हुआ है। लेखिका राशि सिन्हा ने प्रधानाचार्य के माध्यम इसे यूँ चित्रित किया है-

“उन्होंने बिना कुछ कहे, उसकी ओर सारे पत्र बढ़ा दिए। रमा ने देखा, ये नियुक्ति पत्र थे। ढेर सारे नियुक्ति पत्र! रमा की समझ में नहीं आया कि इसे पढ़‌कर पिताजी के चेहरे की रंगत क्यों उड़ने लगी? उसने आँखों में प्रश्न लिए प्रधानाचार्य की ओर देखा।”

प्रधानाचार्य के संवाद ने इस दृष्टांत को और भी अधिक मार्मिक बना दिया है-

“जी, यह फ़र्जी नियुक्ति पत्र हैं। इससे पहले भी हमारे विद्यालय में ऐसे कई नियुक्ति पत्र आ चुके हैं। कोई बहुत पहुँचा हुआ गिरोह है जो यह सारी जालसाजी को अंजाम दे रहा है।”

सुंदर भावों और संवादों से युक्त इस कहानी में लेखिका ने पात्रों का मनोविश्लेषण करते हुए लिखा है-

”वह जानती थीं कि उनकी बिटिया बहुत परेशान है… सब ज्ञात है उन्हें। अपनी लाड़ली का उतरा चेहरा उनके मन को कचोट रहा था। पराठे सेंकते समय तवे से उठते धुओं को देख वह ऐसा महसूस कर रही थी। उनकी लाड़ली के भीतर के असमंजस के ताप के धुएं हैं, जो मदन के इस वक्त न आ पाने की नकारात्मकता रूपी ईंधन से उनकी बिटिया रमा की आशाओं को जलाकर, निराशा के धुओं में बदल रहे थे।”

कहानी के अंत में रमा को अपने आत्म निर्भर होने की जिद छोड़कर और पिता के निर्णय को मानकर उनकी बिटिया को गृहस्थ जीवन को स्वीकार कर लेना पड़ता है। यह सच है कि कैसे समाज में बदनामी के चलते मध्यम वर्गीय लोग बिचौलियों को पैसे देने की बात को उजागर करने या पुलिस में ले जाने तक से डरते हैं। जैसा कि इस कहानी में रमा के पिता को करना पड़ता है। कहानी का सन्देश यह है कि मध्यम वर्गीय परिवार को बिचौलियों से बचना चाहिए। समाज के कड़वे सच को लिखने के लिए साहस चाहिए और लेखिका राशि ने इस दायित्व को बखूबी निभाया है। इस कहानी के संवादों में पात्रानुकूल देशज शब्दों का भी प्रयोग हुआ है किन्तु भाषा प्रवाह पूर्ण एवं प्रभावी है।

‘सिहरन’ संग्रह की पाँचवी और अंतिम कहानी है किन्तु कथ्य की दृष्टि से श्रेष्ठ कहानी है। इस कहानी की मुख्य पात्र लतिका प्रेम में फंसकर पुरुष अजीत द्वारा छली जाती है। यह कहानी दिल्ली जैसे महानगर की कहानी है, जहाँ पर युवा पीढ़ी पढ़ाई के लिए आती है, किन्तु दिशाहीन हो भटक जाती है। यू पी एस सी की तैयारी करती महत्वाकांक्षी लतिका और उसका प्रेमी अजीत के माध्यम से युवा मन की दूषित प्रवृत्तियों के कटु यथार्थ को सामने रखकर समाज का विद्रूप रूप देखने को मिलता है। आज का मनुष्य अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए कैसे-कैसे अलग-अलग हथकंडे ढूँढ़ लेता है। अजीत ने इंटेलीजेंट लतिका को प्रेम में फंसा कर उसे कॉम्पटेटिव परीक्षा में दूसरी लड़की की जगह भेजकर लाखों रुपए कमाना चाहता है और इसी फ्रॉड में लतिका को पुलिस पकड़ लेती है और जेल भेज देती है। लतिका की कहानी जानकर जेलर जो बहुत ही संवेदनशील इंसान है वह लतिका को वहाँ से बाइज्जत छुड़वाने में मदद करता है-

”मैं तुम्हारे पिता के समान हूँ। अंदर जाओ। घबराओ नहीं।” उस जेलर ने धीरे से कहा और अपने घर में फोन मिलाने लगा। मैं दो दिनों के बाद आऊंगा। अचानक किसी काम से बाहर जा रहा हूँ।”

समाज में यदि अजीत जैसे घोर स्वार्थी व्यक्ति हैं तो जेलर जैसे निस्वार्थ मदद करने वाले व्यक्ति भी हैं। हाँ, लेकिन यह भी सच्चा है कि ऐसे लोग विरले ही मिलते हैं। लेखिका राशि सिन्हा ने जेलर की संवेदनशील भावनाओं की अभिव्यक्ति लतिका के माध्यम से इस प्रकार से की है। पंक्तियाँ दृष्टव्य हैं-

”उस फ़रिश्ते समान जेलर ने तो मुझे कभी बंदी बनाया ही नहीं, वह तो उस जेल में मुझे इसलिए रखा ताकि इस अजनबी शहर में मैं महफूज रह सकूँ।”

मैंने जब निकलते समय उनके पाँव छुए तो उन्होंने मेरे सर पर हाथ रखकर कहा-

”अपने माँ-बाप का विश्वास और उनकी बरसों की कमाई इज्जत को किसी कल के आए छोकरे के हाथों में देना ठीक नहीं बेटी। मैंने फाइल में तुम्हारा नाम चढ़ने ही नहीं दिया। जाओ अपना कॅरियर बनाओ जिसके लिए तुम्हें घरवालों ने भरोसा करके बाहर पढ़ने के लिए भेजा है।”

‘सिहरन’ कहानी का शीर्षक बहुत सार्थक बन पड़ा है। लेखिका राशि सिन्हा की मन की संवेदनशीलता लतिका और उसकी सहेली प्रीतो के अंतिम संवाद में तीव्रता से छलक पड़ती है। भाषा सरल और शिल्प-विन्यास उत्तम है। यह वाक्यांश दर्शनीय है –

”बिना कुछ कहे वह लतिका से लिपट गई। लतिका से लिपटते ही उसके मन के रोएं सिहर उठे ऐसे जैसे भीतर कुछ होने का आभास हो रहा हो उसे जैसे-जैसे उसकी देह के रोम -रोम का अभिसिंचन हो गया हो अभी-अभी!! लतिका से ऐसे स्ट्रांग सिहरन की अनुभूति उसे इतने दिनों में पहली बार हो रही थी कि अब भी लतिका के भीतर संवेदनाओं की नमी शेष है।… और वह भी पहले से अधिक अलग और मजबूत रूप में यानि उसके पत्थर होते पंखों के लचीले होने की संभावना अब भी शेष है।”

भाषा-शैली और सधे हुए संवादों के कारण कहानी विशेष और प्रभावी बन गई है। सुंदर भावों और संवादों से युक्त इस कहानी में लेखिका ने पात्रों का मनोविश्लेषण करते हुए लिखा है-

”वह जानती थीं कि उनकी बिटिया बहुत परेशान है… सब ज्ञात है उन्हें। अपनी लाड़ली का उतरा चेहरा उनके मन को कचोट रहा था। पराठे सेंकते समय तवे से उठते धुओं को देख वह ऐसा महसूस कर रही थी। उनकी लाड़ली के भीतर के असमंजस के ताप के धुएं हैं, जो मदन के इस वक्त न आ पाने की नकारात्मकता रूपी ईंधन से उनकी बिटिया रमा की आशाओं को जलाकर, निराशा के धुओं में बदल रहे थे।”

इस कहानी संग्रह की सभी कहानियाँ समाज के अनछुए किसी न किसी अनुभूत सत्य को उद्घाटित करती हैं। भाषा और संवाद पात्रों के विचारों के अनुकूल हैं। सभी कहानियाँ अपने संदेश को संप्रेषित करने में सफल हैं।

मुझे विश्वास है कि लेखिका डॉ राशि सिन्हा भविष्य में अपनी सशक्त लेखनी के माध्यम से साहित्य जगत को और अधिक समृद्ध करेंगी और अपनी कृतियों के माध्यम से पाठकों से संवाद करती रहेंगी। स्वप्न वृक्ष कहानी संग्रह के प्रकाशन पर लेखिका डॉ राशि सिन्हा को हार्दिक बधाई एवं अनंत शुभकामनाएँ।

समीक्षित कृति : स्वप्न वृक्ष (कहानी संग्रह)
लेखिका : डॉ राशि सिन्हा
प्रकाशक: एस डी आर इन्नोवेज इंडिया प्रा. लि.
667 राजावार्ड, कल्पाहार महोबा- 26,
प्रथम संस्करण-2024, पृष्ठ संख्या : 214, मूल्य : 299/-रुपये मात्र

समीक्षक डॉ रमा द्विवेदी
अध्यक्ष, युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच/तेलंगाना
मो: 9849021742

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