पंडित गंगाराम जी वानप्रस्थी
देश को अपने इन सपुपूतों का कृतज्ञता से स्मरण करते हुए उनसे हिंदी के प्रचार की सत्य प्रेरणा प्राप्त करनी चाहिए। इसके बिना राष्ट्रीय भावना कभी सुदृढ़ हो ही नहीं सकती। हमारे प्रेरणादायक श्री गंगाराम जी ने किसी एक क्षेत्र में तो देश व समाज की सेवा नहीं की। उनकी सेवा देश धर्म रक्षा के प्रत्येक क्षेत्र में रही। इस दृष्टि से उनका जीवन अत्यंत व्यापक था।
वह कितने महान थे कि एक अहिंदी भाषी प्रदेश में जन्म लिया। जहां एक पक्षपाती शासक ने लोगों की भावनाओं को कुचलकर फारसी लिपि में उर्दू भाषा लोगों पर थोप रखी थी। ऐसे राज्य में हिंदी भाषा के प्रचार का अति कठिन आंदोलन चलाने वाले अग्रणी नेता थे। राज्य में जन-जन को हिंदी भाषा का ज्ञान करवाने वाले तो एक प्रमुख नेता आप थे ही। हिंदी के शिक्षा के लिए “केशव स्मारक आर्य विद्यालय ” के संस्थापक सदस्य, शिक्षक और हिंदी में “ऋषि – चरित्र – प्रकाश ” के लेखक रहे, जिसे प्रकाशित होने पर हैदराबाद की निजाम सरकार ने प्रतिबंध लगाया दिया था।
अध्यापन भाषण आदि पर भी जबानबंदी। हिंदी की शिक्षा के लिए यहां “हिंदी महाविद्यालय” स्थापित करने वालों में से एक मुख्य कर्णधार जननायक के रूप में (संस्थापक मंत्री) उनकी सेवाओं पर एक बहुत बड़ा ग्रंथ लिखा जा सकता है। दक्षिण में हिंदी प्रचार के इतिहास में आपकी सेवाएं उत्तर भारत में हिंदी रक्षा के लिए जीवन देने वाले बाबू पुरुषोत्तमदास टंडन जैसे नेताओं की श्रेणी में आपको खड़ा करती है।
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हिंदी की प्रगति के लिए “हिंदी महाविद्यालय” की कल्पना उस समय, उस काल में जो की गई थी उसे साकार करने में हैदराबाद के दक्षिण भारत में अपने आप में असंभव सा था। पंडित गंगाराम जी (संस्थापक मंत्री) और आचार्य कृष्ण दत्त जी (प्रथम आचार्य) ने दिन-रात अपने अथक परिश्रम से सरकार/विश्वविद्यालय द्वारा मान्यता प्राप्त कर, उनके सपने को साकार करके दिखाया।
अलबम
इस विद्यालय में सम्माननीय उप-प्रधानमंत्री, राज्यपाल महोदय, मुख्यमंत्री गण, केंद्रीय शिक्षा मंत्री आदि कई आगंतुक/अतिथि/प्रतिष्ठित लोगों ने निरीक्षण किया और इस संस्था को देखकर बहुत ही उत्साहित हुए। इस हिंदी महाविद्यालय द्वारा हजारों विद्यार्थियों को दक्षिण भारत में वाणिज्य, कला और विज्ञान आदि विषयों में (हिन्दी भाषा में) स्नातक बनाकर राष्ट्र को समर्पित किया, जो बहुत बड़ा गौरव तथा कीर्तिमान है।
पिछले कुछ दशकों से सरकारों की ओर से निराशाजनक/सहयोग न होने के कारण विद्यार्थियों का भविष्य संकट में दिखने लगा और हिंदी से उदासीन होने लगे। इसी कारणवश कई हिंदी के विद्यालय लगभग बंद हो गए और हिंदी महाविद्यालय में भी प्रवेश के लिए विद्यार्थियों की कमी होने लगी है। दक्षिण भारत में सरकारों द्वारा उचित कदम न उठाने पर और भी दयनीय स्थिति होने का अनुमान है। हमें आशा है कि हिंदी के प्रचार प्रसार में जिन्होंने अपना सब कुछ लुटाकर ऐसी संस्थाओं का निर्माण किया है, भविष्य में यही संस्था हिंदी के प्रचार प्रसार में फिर से अग्रणी रहकर राष्ट्र निर्माण में मील का पत्थर साबित होगी।
श्री राजेंद्र जिज्ञासु जी द्वारा लिखित “जीवन संग्राम – क्रांतिवीर पंडित गंगाराम वानप्रस्थी” पुस्तक (शीघ्र ही लोकार्ण कार्यक्रम होने वाला है) में बताया गया है कि उनके विचार सदा ही आशावादी दृष्टिकोण पर आधारित रहे हैं। पण्डित गंगाराम जी द्वारा संपादित लघु मासिक पत्रिका “वर्णाश्रम पत्रक” जिसे तीन दशकों से भी अधिक समय पाठकों की सेवा देते रहे के विषय में श्री जिज्ञासु जी ने लिखा है कि मेरी अपनी निजी जानकारी, अनुभव तथा अध्ययन के आधार पर, श्री गंगाराम की सोच, दृष्टिकोण तथा चिंतन जीवन भर सदा आशावादी तथा सकारात्मक रही।
जातियों व राष्ट्रों के जीवन विकास, ह्वास, उत्थान पतन का चक्र तो चलता ही रहता है। हैदराबाद की बहुसंख्यक प्रजा तो एक लंबे समय तक प्रशासन की क्रूरता का निशाना बनती रही है तथापि गंगाराम जी जब 10-11 वर्ष की आयु में आर्य समाज के संपर्क में आकर देश व समाज की सेवा व सुधार के कार्यों में आगे आते गये तो प्रत्येक सामाजिक रोग, अन्याय व पक्षपात से जुझते हुए आगे बढ़ते गये।
उनके किसी लेख, सोच व्यवहार में उदासीनता, दीनता, हीनता, निराशा आदि को लेश मात्रा भी सुनने, पढ़ने व देखने में नहीं आया। एक अनाथ बालक के जीवन में इस क्रांतिकारी जननायक का आशावादी विचार समाज के लिये, दु:खी प्रजा के लिए बहुत बड़ी ईश्वरीय देन सिद्ध हुई। वर्णाश्रम पत्रक में प्रकाशित एक भी पंक्ति निराशावाद को पैदा करने वाली नहीं होती थी। यह इस लेखक का मत ही नहीं है अपितु डॉक्टर कुशल देव शास्त्री और आचार्य कृष्ण दत्त जी का भी ऐसा ही विचार रहा। उनकी जीवनी में उनके चरित्र की विशेषता को मुखरित करने लेखक का राष्ट्रीय दायित्व बनता है।
– लेखक श्रुतिकांत भारती
मिलिंद प्रकाशन और मंत्री- स्वतंत्रता सेनानी पण्डित गंगाराम स्मारक मंच