‘फॉंसी’ (एक बहुजन की आत्मकथा) का अब बंगाली (बांग्ला) भाषा में भी अनुवाद हो रहा है। प्रमुख साहित्यकार, लेखक, समीक्षक डॉ सुपर्णा मुखर्जी जी ने पुस्तक ‘फांसी’ (एक बहुजन की आत्मकथा) का बंगाली (बांग्ला) भाषा में अनुवाद करने का संकल्प लिया है।
16 जनवरी को सुपर्णा जी और प्रोफेस ऋषभदेव शर्मा जी ने अनुवाद के बारे में फोन करके हमें सूचित किया। इस दौरान सुपर्णा जी फॉंसी को देखकर/पढ़कर गदगद आवाज में हमसे बात की। साथ ही साहित्यिक गोष्ठियों में हमारी उपस्थिति और व्यवहारशैली का उल्लेख किया।
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आपको बता दें कि तेलुगु में इसका अनुवाद निर्मल निवासी, कवि साहित्यकार व आलोचक कारम शंकर जी ने किया है। पुस्तक का बाकी कार्य क्रांतिकारी कवि निखिलेश्वर जी की देखरेख में जारी है।
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इसका मराठी अनुवाद लातूर (महाराष्ट्र) निवासी व साहित्यकार अनंत कदम जी और अंग्रेजी अनुवाद हैदराबाद निवासी भगवती अग्रवाल/अनुराग अग्रवाल जी ने स्वीकृति दी है। पंजाब निवासी और चंडीगढ़ भारतीय विद्या भवन स्कूल में स्पेशल एज्युकेटर पद पर 33 सालों से कार्यरत विद्या कुरेकर पलटा जी ने फॉंसी को उसी स्कूल में कार्यरत सोनिका सिंह यादव जी से पंजाबी में अनुवाद करने का आश्वासन दिया है।