हैदराबाद : चरवा, कौशाम्बी (उत्तर प्रदेश) के इंद्रजीत निर्मल ने मृत्युभोज जैसी कुप्रथा को बंद करने का साहसिक निर्णय लिया है। मृत्युभोज जैसी कुप्रथा के चलते आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के परिवार पिस रहे हैं और उन्हें परेशानी उठानी पड़ रही है।
पूरब थोक, चरवा कौशाम्बी के इंद्रजीत निर्मल जी के पिताजी शिवलाल निर्मल (राम करन निर्मल जी के चचेरे भाई) की मृत्यु हो गई थी। इंद्रजीत निर्मल और उनके परिजनों ने मृत्युभोज जैसी कुप्रथा को नकार कर श्रद्धांजलि कार्यक्रम एवं सामाजिक जागरूकता बैठक का आयोजन किया। जिसमें तमाम गणमान्य लोगों ने मृत्युभोज जैसी कुप्रथा के साथ समाज में व्याप्त अन्य कुप्रथाओं को समाप्त करने पर अपने विचार रखे।
इंद्रजीत निर्मल ने बताया कि पिताजी पहले से ही इन कुरीतियों के खिलाफ़ थे। उनकी इच्छानुसार ही मृत्युभोज जैसी कुप्रथा को नकारा गया है। जो भी लोग इसे करते हैं वे सामाजिक बाध्यता के कारण करते हैं न कि स्वेच्छा से। इसलिए मृत्युभोज जैसी कुप्रथा को बंद करना ही होगा।
डॉ राजकुमार चौधरी (प्रो. सर्जरी विभाग मोती लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज, प्रयागराज) जी ने कहा कि मृत्युभोज करना एक सामाजिक अपराध की तरह है। सम्पन्न लोग तो दिखावा करके इसे कर देते हैं जिसे गरीब तबका भी अपना लेता है। समाज में जो लोग भी सक्षम और पढ़े-लिखे समझदार हैं उन्हें यह समझना चाहिए कि उनका अंधानुकरण कर आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को भी अपने बच्चों की शिक्षा, इलाज व अन्य आवश्यक कार्यों को रोक कर मृत्युभोज करना पड़ता है। इसलिए इस कुरीति, जो कि एक अपराध की तरह है, व अन्य कुरीतियों को हम सबको मिलकर दूर करना चाहिए। हमारा लक्ष्य यह हो अगले 2-4 सालों में यह प्रथा बिल्कुल बंद होनी चाहिए।
विदित हो कि डॉ राजकुमार चौधरी जी अपने चाचा जी के मृत्युपरांत वेलफेयर ऑर्गेनाइजेशन फ़ॉर धोबिस (वर्ड) द्वारा संचालित पुष्पा दिवाकर पुस्तकालय, संत गाडगे मोहल्ला, तिल्हापुर कौशाम्बी में दर्जनों पुस्तकें दान की व अन्य जनोपयोगी कार्य किए।
इंद्रजीत निर्मल
डॉ राम मिलन जी वरिष्ठ नेत्र चिकित्सक मोती लाल नेहरू जिला चिकित्सालय प्रयागराज ने कहा कि मृत्युभोज एक सामाजिक अभिशाप है। इसलिए इसे सकल समाज को जितनी जल्दी हो सके बंद कर देना चाहिए।
श्री अनिल मानव ने कहा कि सामाजिक कुप्रथाएं कभी किसी भी समाज का भला नहीं कर सकतीं। जब हम लोग एकजुट होकर इनके खात्मे के प्रयास करेंगे तो जरूर बंद हो जाएंगी।
संत धीरज साहेब ने कहा कि महापुरुषों के विचारों को जीवन में उतारना व उन पर चलना होगा। जो लोग सक्षम हैं वे मृतक की स्मृति में विद्यालयों, अस्पतालों, अनाथालयों आदि में धन सामान दें जिससे समाज के जरूरतमंद लोग लाभ उठा सकें।
मृतक की पत्नी
डॉक्टर रामकरन निर्मल (निवर्तमान प्रदेश अध्यक्ष लोहिया वाहिनी) ने कहा कि समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोग सक्षम लोगों का अनुकरण कर मृत्युभोज करते हैं। बेहतर होगा कि इस कुप्रथा का अंधानुकरण न कर धन को अपने बच्चों की अच्छी शिक्षा, अच्छे स्वास्थ्य पर खर्च करें, और गरीब कन्याओं की शादी आदि में मदद करें।
कार्यक्रम को जिला पंचायत सदस्य वार्ड नं 1 श्रीमती विजमा दिवाकर ने कहा कि मृत्युभोज जैसी कुरीति को खत्म करने के निर्णय में हमारी बहनों को भी साथ आना चाहिए। रामनरेश चौधरी ने कहा समाज के लोग शिक्षित बनें, तर्कशील बनें और सोंचें कि जब अंतिम संस्कार हो गया फिर उसके बाद तेरहवीं जैसा संस्कार कहाँ से आया। रामनाथ ने कहा कि सामाजिक कुप्रथाओं को जड़ से समाप्त करने हेतु हम सभी को आगे आना होगा।
डॉक्टर नरेन्द्र दिवाकर ने कहा कि मृत्युभोज एक अभिशाप की तरह है जिसे हमें तो दूर करने का प्रयास करना ही चाहिए, परंतु राजस्थान सरकार की तरह ही हर प्रदेश में इसके रोकथाम हेतु कानून बनाएं और सख्ती से लागू करें। साथ ही हम सबको चाहिए कि मृतक के परिजनों को मृत्युभोज करने हेतु नैतिक दबाव न डालकर उनका जरूरी सहयोग व संबल प्रदान करें।
कार्यक्रम को रामसरन निर्मल, भैया लाल, साथी संतोष चौधरी, अमित बौद्ध, कौशलेंद्र दिवाकर आदि लोगों ने भी आपने विचार रखे।
इस असवर पर राधे लाल निर्मल, राम लौटन, राम मिलन, राजेन्द्र प्रसाद दिवाकर, भगौती प्रसाद चौधरी, प्रवीण दिवाकर, राजेश चौधरी, सुनील चौधरी, निरंजन चौधरी, वतन चौधरी, अमरनाथ, उद्धव श्याम यादव, इंद्रजीत गौतम, धर्मेंद्र दिवाकर, जैगम अब्बास, शुशील दिवाकर, रूपचंद चौधरी, मोना, वर्मा, आकांक्षा निर्मल, निखिल, ऋषिकेश निर्मल, अपेक्षा निर्मल आदि सहित सैकड़ों लोग उपस्थित रहे।