केंद्रीय हिंदी संस्थान : ‘रंजक क्रिया की शिक्षण प्रविधियाँ : चुनौतियाँ और संभावनाएँ’ संगोष्ठी

हैदराबाद : केंद्रीय हिंदी संस्‍थान, अंतरराष्‍ट्रीय सहयोग परिषद तथा विश्‍व हिंदी सचिवालय के तत्‍वावधान में वैश्विक हिंदी परिवार की ओर से भाषा विमर्श की श्रृंखला के अंतर्गत ‘रंजक क्रिया की शिक्षण प्रविधियाँ : चुनौतियाँ और संभावनाएँ’ विषय पर आभासी संगोष्ठी आयोजित की गई।

सर्वविदित है कि किसी भी भाषा का व्याकरण हमें ठीक-ठीक बोलना पढ़ना और लिखना आदि सिखाता है। हिंदी व्याकरण भी आसानी से सीखा जा सकता है किंतु जब हम क्रियाओं के रूप पर आते हैं तो सीखने में थोड़ा समय लगता है। इसमें रंजक क्रियाओं को ठीक से समझना आवश्यक है जो वाक्य में रंग भरती हैं। बेशक ये क्रियाएँ संख्या में मुख्य रूप से लगभग दर्जन भर ही हैं किंतु इनका सटीक प्रयोग होना चाहिए। इस आभासी संगोष्ठी रंजक क्रियाओं की शिक्षण प्रविधियों पर विशेष चर्चा हुई जिसमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त विद्वानों ने अपने विचार प्रकट किए। आज रंजक क्रिया की चुनौतियों और संभावनाओं पर खुलकर चर्चा हुई जिससे सैकड़ों की संख्या में देश विदेश से जुड़े प्रतिभागियों ने आभासी रूप से ज्ञानार्जन किया।

कार्यशाला के आरंभ में तकनीकीविद एवं साहित्यकार प्रो॰ राजेश कुमार द्वारा आरंभिक पृष्ठभूमि प्रस्तुत की गई। तत्पश्चात केंद्रीय हिंदी संस्थान के शिलांग केंद्र के क्षेत्रीय निदेशक प्रो॰ कृष्ण कुमार पाण्डेय द्वारा आत्मीयता से माननीय अध्यक्ष, प्रस्तोता, विद्वानों तथा श्रोताओं का स्वागत किया गया। संचालन का बखूबी दायित्व शिक्षा मंत्रालय के केंद्रीय हिन्दी संस्थान के मैसूरू केंद्र के क्षेत्रीय निदेशक डॉ॰ परमान सिंह द्वारा संभाला गया। भाषाविज्ञान के विद्वान डॉ॰ सिंह ने रंजक क्रियाओं को सोदाहरण स्पष्ट किया। उन्होंने मुख्य वक्ता एवं प्रख्यात भाषा विज्ञानी प्रो॰ वी. आर. जगन्नाथन को आदर सहित प्रस्तुति हेतु आमंत्रित किया। वयोवृद्ध विख्यात भाषा विज्ञानी प्रो॰ जगन्नाथन जी ने अपनी उत्कृष्ट पावर प्वाइंट प्रस्तुति में कहा कि रंजक क्रिया विशेष अर्थ देती है। यह भाषा संरचना का अंग है। प्रायः हमारे यहाँ व्याकरणिक चिंतन अधिक मात्रा में नहीं पाया जाता। कुछ लोग इसे “कलरिंग/वेक्टर या इंटेन्सिफ़ाइंग वर्ब भी कहते हैं। उन्होंने निम्न बिंदुओं पर विस्तार से सोदाहरण प्रकाश डाला। 1. रंकज क्रिया की परिभाषा 2. रंजक क्रिया की रचना, प्रकार और विशेषताएँ 3. पूर्णकालिक कृदंत से अंतर 4. क्रिया ‘ले’ के कार्य 5. वाक्यगत पर्याय, 6. भारतीय परिप्रेक्ष्य।

रंजक क्रिया की परिभाषा में उन्होंने अपनी ही पुस्तक “प्रयोग और प्रयोग से उद्धरण दिया। “दो धातुओं के योग से बनने वाली कुछ क्रिया रचनाएँ है, जिनमें एक ही धातु कोशीय अर्थ देती है और रंजक क्रिया कहलाने वाली दूसरी धातु अर्थ की विशेषता या रंजकता/कलरिंग जोड़ देती है। उदाहरण के लिए ‘निकाल देना’ क्रिया में ‘निकाल’ का ही अर्थ अभीष्ट है। रंजक क्रिया की अवधारणा और परंपरा में उन्होंने बताया कि भारतीय भाषाओं में रंजक क्रिया का आविर्भाव द्रविड़ भाषाओं से जनित लगता है। रूसी में रंजक क्रियाओं की व्यवस्था दिखाई देती है। इस संबंध में अध्ययन की आवश्यकता है। हिंदी की रंजक क्रियाएँ – आ, जाना, फेंक देना, ले लेना, कर बैठना, मार डालना आदि हैं। उन्होंने “केलाग और पीटर हक आदि का संदर्भ दिया।

हिंदी की क्रिया रचना में रंजक क्रिया निर्धारण आदि में “कामता प्रसाद गुरु आदि की विशेष भूमिका रही है जिन्होंने संयुक्त क्रियाओं के तीन प्रकार बताए हैं। 1. अवधारणा बोधक जैसे सो जाना, मार डालना, कह बैठना आदि कुल 9 हैं। 2. शक्तिबोधक, 3. पूर्णता बोधक। पूर्व ज्ञान पर आधारित – ‘ले, दे, जा’ क्रिया चलती है जिसमें वक्ता और श्रोता दोनों को किसी व्यापार के घटित होने की जानकारी होती है। जैसे शाम छह बजते ही हॉर्न की आवाज आने पर बच्चे बोलते हैं कि “पिताजी आ गए। कुछ घटनाएँ अचानक होती हैं जिनमें प्रत्यक्ष ज्ञान नहीं होता। जैसे – बच्चे ने खिलौना तोड़ दिया। अचानक बारिश आ गई। उसने मेरा बटुआ छीन लिया। ज्ञान साझा करने के लिए भी रंजक क्रिया का प्रयोग होता है। जैसे – सरकार ने अगले महीने से व्याज की दर बढ़ा दी है। रंजक क्रिया और पूर्णतासूचक ‘चुक’ क्रिया का भी विशेष संबंध है। जैसे – मैं फीस जमा कर चुका हूँ।

शक्तिसूचक ‘सक’ क्रिया का भी रंजक क्रिया से संबंध है। जैसे – इस गाड़ी में सब लोग आराम से जा सकेंगे। पूर्वकालिक कृदंत में भी रंजक क्रिया होती है। जैसे – लिखकर लाना या लिख लाना । ‘ले’ क्रिया के उभय अर्थ हैं। जैसे ले लेना, सो लेना, टंकण कर लेना आदि। पूर्व रंजक के अंतर्गत – दे मारा, दे पटका, आदि आता है। ‘वे अचानक एक दिन चल बसे।’ इसमें अन्य लोक में जाने का निहितार्थ बसा है। इसके अलावा पूर्व ज्ञान रहित ‘अन्य आर्थी स्थितियाँ’ भी होती हैं। जैसे – वह अचानक गिर पड़ा। दूध गिर गया। रंजक क्रिया स्थितिपरक भी होती है। जैसे – मैंने एक घर देख रखा है। इसके अलावा रंजक क्रिया का वाक्यगत संबंध भी होता है। जैसे – आप लोग अंदर बैठ जाएँ। निषेधार्थ के साथ रंजक क्रिया नहीं आ सकती। जैसे – उसने खाना नहीं खा लिया। अपवाद जैसी स्थितियों में ‘न’ का प्रयोग होता है किंतु यह निषेध नहीं है। जैसे – जब तक सब न आ जाएँ, हम बैठक शुरू नहीं करेंगे। वास्तव में इसका मूल सकारात्मक है – जब सब लोग आ जाएँगे, तभी हम बैठक शुरू करेंगे। अभ्यास बोधक रंजक क्रिया में – आ जाया करो, लिख लिया करो, आदि आता है। क्रिया रूपों का संयोजन भी होता है। जैसे – कर जाना। वाक्यगत पर्याय में – समझ लेना, समझ जाना आदि आता है। रोना आ गया/रोने को आ गया आदि। पाकिस्तानी प्रभाव के कारण कुछ लोग ‘हुआ हुआ है’ भी बोलते हैं। विद्वान प्रो॰ जगन्नाथन ने यह भी बताया कि तमिल में तीन–चार शब्द ही रंजक क्रियाओं हेतु प्रयुक्त होते हैं जबकि हिंदी में लगभग नौ दस हैं जिससे वाक्यगत पर्याय मिलते हैं।

नेपाल के काठमाण्डू में त्रिभुवन विश्वविद्यालय के केंद्रीय हिंदी विभाग की सह प्राध्यापक डॉ. श्वेता दीप्ति ने कार्यक्रम में सहभागिता पर प्रसन्नता प्रकट की। उन्होंने भी कम मात्रा में होने वाली व्याकरणिक चर्चाओं पर सहमति व्यक्त की। नेपाली विद्यार्थियों को हिंदी पढ़ाने वाली विदुषी प्रोफेसर ने बताया कि नेपाली व्याकरण में रंजक क्रिया नहीं मिलती। संभवतः शोध की कमी रही। यहाँ विद्यार्थी नेपाली शैली में हिंदी लिखते हैं। उन्होंने कहा कि आज के कार्यक्रम से हम भी लाभान्वित हुए हैं। स्वीडन के उप्साला विश्वविद्यालय में भाषा विज्ञान व वाङ्ग्मय शास्त्र के प्रोफेसर हाइन्स वर्नर वेसलर ने स्पष्ट और मीठी वाणी में हिंदी बोलते हुए ज्ञानवर्धक पावर प्वाइंट प्रस्तुति दी। उन्होंने कहा कि व्यावहारिक और विश्लेषणात्मक पक्ष में हम यूरोपीय देशों में विश्लेषणात्मकता पर अधिक ध्यान देते हैं। पश्चिमी देशों में मेग्रेगर की किताब ज्यादा प्रयोग की जाती है। हम रंजक क्रिया को मुहावरेदार पाते हैं। इसे ‘वेक्टर वर्ब’ भी कहा जाता है। इस क्षेत्र में ‘हिंदी क्रिया कोश और मैक्सिकल क्रिया कोश’ आदि के माध्यम से उल्लेखनीय कार्य हुआ है। उपन्यास और कहानी आदि में रंजक क्रिया भावना के साथ बहती चली जाती है। विश्वविख्यात प्रोफेसर वर्नर ने इस क्षेत्र में अपेक्षाकृत अधिक शोध की आवश्यकता बताई।

उज्बेकिस्तान के ताशकंद में सरकारी प्राच्य विद्या संस्थान की प्रोफेसर उल्फ़त मुखीबोवा ने आज के कार्यक्रम को अत्यंत ज्ञानवर्धक बताया। उन्होंने कहा कि उज्बेकिस्तान में रंजक क्रिया को ‘इन्सेस्टियर’ भी कहा जाता है और महसूस करके बोला जाता है। जाहिर है कि पहली क्रिया मुख्य क्रिया होती है और दूसरी रंजक क्रिया होती है। इस संबंध में सामग्री का अभी भी अभाव है। प्रो॰ मुखिबोवा ने नई सामग्री हेतु जिज्ञासा जताई। पुर्तगाल के लिस्बन विश्वविद्यालय में कला संकाय में प्राध्यापक डॉ॰ शिव कुमार सिंह ने अपनी प्रस्तुति में रंजक क्रियाओं का उदाहरण और अभ्यास पाठ दर्शाया। उन्होने इस संबंध में चार पक्ष रखे। 1. आश्चर्य, 2. अचानक, 3. अपार खुशी, 4. अलग तथ्य । उन्होंने रंजक क्रिया से युक्त शिक्षक और छात्र के बीच मुलाकात का एक रोचक उदाहरण भी दिया जिसमें छात्र ने साथ चाय पीकर कहा कि – सर, चायवाले को मैं ही पैसे दे देता हूँ।

व्याकरण विशेषज्ञ प्रो॰ योगेंद्र नाथ मिश्र ने कहा कि रंजक क्रियाओं के अंग्रेज़ी अनुवाद से हम सहमत नहीं हैं। दोनों रंजक क्रियाएँ कोशीय हैं। पहली मुख्य अर्थ देने वाली और दूसरी सूक्ष्मता या विविधता लाने वाली होती है। बेशक इसमें आठ दस क्रियाएँ सक्रिय हैं किन्तु महत्वपूर्ण यह है कि कैन सी क्रिया किसके साथ जुड़ेगी। जापान से जुड़े पद्मश्री प्रो॰ तोमियो मिजोकामी ने जापानी के साथ तुलनात्मक पक्ष प्रस्तुत किया और बताया कि रंजक क्रिया का कोशीय प्रयोग नहीं है। जैसे – मेरे साथ लड़कियाँ हो लीं। यह रूढ़ प्रयोग है। केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा की निदेशक प्रो॰ बीना शर्मा ने आज के कार्यक्रम पर प्रसन्नता प्रकट करते हुए रंजक क्रिया में कहा कि आज हम सबकी बहुत अच्छी कक्षा लग गई। बहुभाषी विद्यार्थियों को रंजक क्रिया पढ़ाते समय कठिनाई आना स्वाभाविक है। रंजक क्रिया संबंधी वाक्यों का अभ्यास कराना श्रेयस्कर होता है। केंद्रीय हिंदी संस्थान की ओर से ‘व्यावहारिक हिंदी संरचना’ नामक पुस्तिका तैयार की गई है।

अपने सारगर्भित अध्यक्षीय उद्बोधन में अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिल्वेनिया के सेवानिवृत्त प्राचार्य प्रो॰ सुरेन्द्र गंभीर ने कार्यक्रम को सार्थक और ज्ञानवर्धक बताया। उन्होने अपने विशद अनुभव से कहा कि लगभग दो सप्ताह में हिंदी सीखी जा सकती है किन्तु क्रियाओं का पाठ अधिक समय लेता है। तीन काल, संयुक्त क्रियाएँ और रंजक क्रियाएँ गहन समझ मांगती हैं। अमेरिका में संयुक्त क्रियाओं का प्रयोग अलग रखा जाता है। हम सरल से कठिन की ओर जाते हैं। इसके तीन पक्ष हैं। 1. पूर्णता, 2. बदलाव, 3. बलाघात। रंजक क्रियाओं के लिए भाषा वैज्ञानिक दृष्टि लाभकारी है। हम सबको शैक्षिक दृष्टि से गहन चिंतन, मनन, गठन, कथन और अनुश्रवण करना चाहिए।

केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के उपाध्यक्ष एवं इस कार्यक्रम के प्रणेता श्री अनिल जोशी जी ने आज के विषय विशेषज्ञों और प्रतिभागियों की सराहना की तथा भाषा की शुद्धता के साथ नए गवाक्ष खुलने की ओर ध्यान खींचा।उन्होने वैश्विक स्तर पर कार्यक्रम से लाभान्वित होने हेतु ध्यान आकृष्ट किया। अंत में वैश्विक हिंदी परिवार की ओर से चीन से जुड़े प्रो॰ विवेक मणि त्रिपाठी ने आत्मीयता से माननीय अध्यक्ष, विशिष्ट वक्ता, अतिथि वक्ताओं, सभी विद्वानों और सुधी श्रोताओं के प्रति कृतज्ञता प्रकट की। उन्होंने इस कार्यक्रम से देश-विदेश से जुड़ी संस्थाओं एवं व्यक्तियों का नामोल्लेख सहित विशेष आभार प्रकट किया। डॉ॰ त्रिपाठी ने वैश्विक भाषायी गौरव बढ़ाने हेतु त्वरित गति से शोध कार्य की सदिच्छा प्रकट की तथा इस कार्यक्रम से जुड़े संरक्षकों, संयोजकों, मार्गदर्शकों, सहयोगियों, शुभचिंतकों तथा विभिन्न टीम सदस्यों को हृदय की गहराइयों से धन्यवाद दिया। यह कार्यक्रम यू ट्यूब पर ‘वैश्विक हिंदी परिवार’ शीर्षक से उपलब्ध है। रिपोर्ट लेखन का कार्य डॉ॰ जयशंकर यादव जी ने संपन्न किया।

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