केंद्रीय हिंदी संस्‍थान: ‘विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर विदेशी विद्यार्थियों से संवाद’ विषय पर परिसंवाद आयोजित

हैदराबाद: केंद्रीय हिंदी संस्‍थान, अंतरराष्‍ट्रीय सहयोग परिषद तथा विश्‍व हिंदी सचिवालय के तत्‍वावधान में वैश्विक हिंदी परिवार की ओर से हिंदी शिक्षण विमर्श की श्रृंखला के अंतर्गत ‘विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर विदेशी विद्यार्थियों से संवाद’ विषय पर परिसंवाद आयोजित किया गया।

सर्वविदित है कि दुनियाँ में हर वर्ष 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन 1975 में नागपुर में प्रथम विश्व हिंदीसम्मेलन आयोजित किया गया था। इसका उद्देश्य विश्व में हिंदीका प्रचार प्रसार, जागरूकता और अंतरराष्ट्रीयता में अभिवृद्धि है। इस वर्ष बारहवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन फ़िजी में आगामी फरवरी में होने वाला है। साप्ताहिक कार्यक्रम में विश्व हिंदी दिवस के आलोक में विशेषज्ञों ने बेबाक विशेषण के साथ मन्तव्य दिये और विभिन्न देशों के हिंदी विद्यार्थियों ने अपने विचार प्रकट किए। इसका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुधी श्रोताओं ने बड़े ही संयत भाव से ज्ञानार्जन किया।

कार्यक्रम की शुरुआत में साहित्यकार डॉ॰ राजेश कुमार द्वारा विश्व हिंदी दिवस की शुभकामनाओं के साथ प्रस्ताविकी प्रस्तुत की गई। इसके बाद केंद्रीय हिंदी संस्थान की ओर से डॉ॰ सपना गुप्ता द्वारा आत्मीयता से माननीय अध्यक्ष, मुख्य अतिथि, विशिष्ट अतिथि एवं वक्ताओं तथा श्रोताओं का स्वागत किया गया। आज के विशेष कार्यक्रम के संचालन का शालीनता से बखूबी दायित्व दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दू कालेज के प्रो. धर्मेंद्र प्रताप सिंह द्वारा संभाला गया और सादर समादर के साथ बारी बारी वक्ताओं को आमंत्रित किया गया।

दिल्ली विश्वविद्यालय में पीएच॰डी॰ की शोध छात्रा एवं श्रीलंका निवासी सिंहली मातृभाषी सुगांधी ने कहा कि उन्हे हिंदी से अनुरक्ति है और एक अच्छी हिंदी शिक्षिका बनना चाहती हैं। इसलिए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से एम.ए. हिंदी करने के बाद श्रीलंका, दुबई, ओमान और क़तर आदि देशों के 30 हजार विद्यार्थियों को हिंदी सीखा चुकी हैं और अपना ऑनलाइन फेसबुक “हिंदी विथ सुगंधा, भी चलाती हैं। ताशकंद के प्रो॰ नीलोफर ने इस अवसर पर हर्ष से कहा कि भारत और उजबेकिस्तान के संबंध प्रगाढ़ हो रहे हैं और दिल्ली में उज्बेकी सेंटर स्थापित होने से भाषा क्षेत्र में भी आपसी संबंध विकसित हो रहे हैं। अनुवाद श्रमसाध्य कार्य है। उनके देश में चिकित्सा क्षेत्र में अनुवादकों की बहुत कमी है। लिखित और मौखिक स्वरूप में अनुवाद निरंतर चलते रहना चाहिए। उन्होने उज्बेकिस्तान के स्वर्गीय फैजुल्ला के विशद हिंदी अनुवाद कार्य को याद करते हुए कहा कि उनके द्वारा भीष्म साहनी और कृशन चंदर की पुस्तकों के अनुवाद कार्य के अलावा रामायण और महाभारत को अपनी भाषा में अनूदित किया जो उज्बेकिस्तान के दूरदर्शन पर धारावाहिक रूप में प्रसारित हुआ।

दिल्ली विश्वविद्यालय के दौलतराम कालेज में बी॰ए॰ आनर्स हिंदी की छात्रा उज्बेकिस्तान निवासी जिलोला ने हिंदी के साथ अंग्रेज़ी के शब्दों पर आपत्ति जताई और हिंदीके प्रति अपने लगाव को आत्मीय बताया तथा आग्रह पर पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी की कविता सुनाई- ‘बेनकाब चेहरे हैं, घाव बड़े गहरे हैं, गीत नया गाता हूँ।‘ उज्बेकिस्तान निवासी और हिंदू कॉलेज दिल्ली में एम.ए. हिंदी के छात्र अब्दुमोमिन ने कहा कि हिंदीपढ़ना हर्षोल्लास की अवधि रही है। उन्होने कहा कि हिंदी फिल्में देखकर मेरा हिंदीकी तरफ रुझान और लगाव हुआ एवं इसमें निरंतर अभिवृद्धि हुई। उज्बेकिस्तान से दिल्ली में हिंदू कालेज की बी॰ ए॰ तृतीय वर्ष की छात्रा गुलबहोर का अपने मन की बात में कहना था कि बचपन से ही उन्हें हिंदी के प्रति लगाव था और केंद्रीय हिंदी संस्थान में पढ़ाई करते समय हिंदी में उच्च शिक्षा तथा भारतीय भाषा संस्कृति से प्रेम बढ़ता गया।उन्होने अपने देश और भारत के खान-पान तथा विविध व्यंजनों से शुरुआत कर आत्मीयता से हिंदी सीखने की प्रक्रिया उत्तरोत्तर बढ़ाई।

दक्षिण कोरिया की विद्यार्थी पार्क ने कहा कि कोरोना संकट में उनकी हिंदी कक्षाएँ प्रभावित हुईं किन्तु बाद में शिक्षकों ने हमें बखूबी सिखाया। उन्होंने कहा कि दुकान एवं पर्यटन स्थान आदि पर बात करते समय भी हिंदी सीख लेना स्वाभाविक है।
मुख्य अतिथि के रूप में पधारे दिल्ली विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय संबंध के प्रमुख डॉ॰ चंद्रशेखर ने अपने विशद अनुभव रखते हुए कहा कि हिंदी की वैश्विक क्षेत्र में प्रगामी प्रगति हो रही है जो सुखद है। एक उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि पिछले चार दशकों से फारसी हिंदी शब्दकोश के 8 खंड प्रकाशित हुए हैं जिसमें त्रिलोचन शास्त्री और गोविंद जी जैसे विद्वानों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने उज्बेकिस्तान के स्व. फैजुल्ला की व्यापी हिंदी साधना को याद करते हुए कहा कि आर्थिक संकट के बावजूद अवैतनिक रूप में विपुल अनुवाद कार्य से भारतीय भाषा और संस्कृति को समृद्ध किया। अब सभी महाद्वीपों में हिंदी सैकड़ों देशों में अबाध गति से आगे बढ़ रही है।

विशिष्ट अतिथि के रूप में केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा की निदेशक प्रो॰ बीना शर्मा ने अपने उद्बोधन में अभिप्रेरित करते हुए कहा कि विदेशी हिंदी विद्यार्थियों से मिलना, किसान द्वारा अपनी लहलहाती फसल देखने के समान है। विदेशी विद्यार्थी जीवन की दैनिक क्रियाओं जैसे उठना बैठना, आना-जाना, खाना-पीना और गाना बजाना आदि में सहज भाव से हिंदी सीखते और आत्मसात करते हैं। प्राध्यापक समुदाय भी नित नई रुचिकर प्रविधि अपनाकर हिंदी सिखाते हैं। निश्चय ही हिंदी की प्रगति से विश्व बंधुत्व बढ़ता है और वैश्विक पहचान बनती है। उन्होंने सभी को विश्व हिंदी दिवस की हार्दिक बधाई दी। कार्यक्रम में सभी महाद्वीपों के लगभग पच्चीस से अधिक देशों के सैकड़ों लेखक, विद्वान, साहित्यकार एवं विद्यार्थी आद्योपांत जुड़े रहे। चैट बॉक्स में भी लोगों द्वारा लिखना उत्साहवर्धक रहा।

वैश्विक हिंदी परिवार के समस्त सहयोगियों का आभार जिसमें विश्व के 25 से अधिक देशों के हिंदी से जुड़े विचारकों, साहित्यकारों और भाषाकर्मियों का समूह सहभागिता करते हैं। आभारी हैं –

संयोजक: डॉ जवाहर कर्नावट, डॉ रमेश यादव (भारत), संध्या सिंह (सिंगापुर)। प्रो. बीना शर्मा निदेशक, केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा; पद्मेश गुप्त संयोजक, वैश्विक हिंदी परिवार; माधुरी रामधारी, उप महासचिव, विश्व हिंदी सचिवालय, मॅरिशस। मार्गदर्शक: संतोष चौबे, नारायण कुमार, प्रो. वी. जगन्नाथन। कार्यक्रम संयोजन : प्रो. राजेश कुमार; अंतरराष्ट्रीय संयोजक : शैलजा सक्सेना। तकनीकी सहयोग : डॉ. मोहन बहुगुणा, डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’। तकनीकी सहयोग : प्रो. विजय मिश्र, डॉ. गंगाधर वानोडे, डॉ. विजय नगरकर जी फेस बुक सोशल मीडिया के संचालन के लिए तथा रिपोर्ट लेखन में डॉ. जयशंकर यादव, डॉ. राजीव कुमार रावत का सहयोग प्राप्त हुआ। एवं अन्य सभी सहभागी का सहयोग प्राप्त हुआ।

अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के मानद निदेशक प्रो॰ नारायण कुमार की अपरिहार्य अनुपस्थिति में वयोवृद्ध भाषाशास्त्री प्रो. जगन्नाथन ने अध्यक्षीय उद्बोधन में अपार हर्ष प्रकट किया। उन्होंने कहा कि सरकारी सहयोग से दुनियाँ के अन्य देशों में प्राथमिक स्तर से हिंदी की पढ़ाई सुनिश्चित करना श्रेयस्कर होगा। स्वांतःसुखाय की प्रक्रिया निरंतर बढ़ती रहनी चाहिए। अंतरराष्ट्रीय स्तर का पाठ्यक्रम बने और पठन-पाठन का समुचित मूल्यांकन होना चाहिए।

अंत में वैश्विक हिंदी परिवार की ओर से डॉ॰ जयशंकर यादव ने आत्मीयता से माननीय अध्यक्ष, मुख्य अतिथि, विशिष्ट अतिथि, वक्ता विद्यार्थीवृंद तथा सभी विद्वान श्रोताओं के प्रति कृतज्ञता प्रकट की। उन्होंने इस कार्यक्रम से देश-विदेश से जुड़ी संस्थाओं एवं व्यक्तियों का नामोल्लेख सहित विशेष आभार प्रकट किया तथा कार्यक्रम में अमृतम प्रियदर्शनम एवं वसुधैव कुटुंबकम को चरितार्थ करने में सहयोग करने हेतु कृतज्ञता प्रकट की। डॉ॰ यादव द्वारा भारतीय भाषाओं और संस्कृति का वैश्विक गौरव बढ़ाने हेतु इस कार्यक्रम से जुड़े संरक्षकों, संयोजकों, मार्गदर्शकों, सहयोगियों, शुभचिंतकों तथा विभिन्न टीम सदस्यों को हृदय तल से धन्यवाद दिया गया। उन्होंने विश्व हिंदी की वैश्विक अभिलाषा में आभार सहित अभिव्यक्ति दी कि- “हिंदी अपनी गौरव अपना, विश्व प्रेम की भाषा। हिंदीमय हो विश्व हमारा, बने यही अभिलाषा।”

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