हैदराबाद (देवा प्रसाद मयला की रिपोर्ट) : राइटर्स एंड जर्नलिस्ट एसोसिएशन (WAJA) इंडिया, तेलंगाना इकाई के तत्त्वावधान में सुप्रसिद्ध गीतकार डॉ. एटुकूरि प्रसाद की तेलुगु में रचित ‘अरुण-तरुण’ गीतों का डॉ. टी. सी. वसंता, डॉ. बी. श्रीलक्ष्मी एवं देवा प्रसाद मयला द्वारा हिन्दी में अनुसृजित संग्रह ‘जन से जन में’ का लोकार्पण सुप्रसिद्ध साहित्यकार निखिलेश्वर के करकमलों से हुआ। लोकार्पण कार्यक्रम का आयोजन तिलक रोड स्थित तेलंगाना सारस्वत परिषद सभागार में हुआ। पोट्टि श्रीरामुलू तेलुगु विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. एस. वी. सत्यनारायणा ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की और लेखिका डॉ. आर. सुमन लता ने कार्यक्रम का संचालन किया।
मंचासीन विद्वत् जनों में मुख्य अतिथि रहे पुस्तक-लोकार्पणकर्ता निखिलेश्वर। विशिष्ट अतिथि डॉ. एम. रंगय्या एवं डॉ. अहिल्या मिश्र। विशेष अतिथि रहे डॉ. चाडा वेंकट रेड्डी, डॉ. माणिक्यांबा ‘मणि’, डॉ. चन्द्रशेखर रेड्डी एवं अइनंपूडि श्रीलक्ष्मी। आत्मीय अतिथि के रूप में मंचासीन रहे वाजा तेलंगाना इकाई के अध्यक्ष एन. आर. श्याम एवं वाजा तेलंगाना इकाई के महिला विभाग की अध्यक्षा डॉ. शकुंतला रेड्डी। साथ ही मंचासीन रहे तीनों अनुसृजनकर्ता। मंचासीन विद्वत् जनों द्वारा दीप प्रज्वलन अनंतर डॉ. बी. श्रीलक्ष्मी एवं सुश्री जयश्री ने डॉ. टी. सी. वसंता द्वारा रचित सरस्वती वंदना प्रस्तुत की।
पुस्तक लोकार्पण अनंतर डॉ. आशा मिश्र ‘मुक्ता’ ने एटुकूरि प्रसाद का परिचय दिया। पश्चात् वाजा तेलंगाना इकाई के पदाधिकारियों द्वारा डॉ. एटुकूरि प्रसाद का शॉल, स्मृतिचिह्न एवं फल से सम्मान किया गया। डॉ. मणि तथा डॉ भानु प्रसाद समेत कुछ अन्य प्रशंसकों ने एटुकूरि को शॉल से सम्मानित किया।
एटुकूरि प्रसाद ने अपने उद्गार में कहा कि हिन्दी जगत को अपने गीतों से परिचित करवाने का तीनों अनुसृजनकर्ताओं ने बहुत ही महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। कार्यक्रम के आयोजन से प्रभावित होकर अपनी खुशी ज़ाहिर करते हुए उन्होंने वाजा तेलंगाना इकाई को पांच हजार रुपये भेंट के रूप में प्रदान किये। अनंतर उन्होंने अपने एक गीत को सभा के समक्ष प्रस्तुत करके सबको मंत्रमुग्ध किया।
मंचासीन विद्वत् जनों का क्रम से परिचय दिया गया और उन्हें शॉल एवं स्मृतिचिह्न से सम्मानित करने के बाद उन्हें फल भेंट किये गए। एस. वी. सत्यनारायण का परिचय दिया अर्चना पांडे ने। उन्होंने ही निखिलेश्वर एवं डॉ. टी. सी. वसंता का परिचय दिया।
चाडा वेंकट रेड्डी एवं अइनंपूडि श्रीलक्ष्मी का परिचय दिया डॉ. बी. श्रीलक्ष्मी ने। डॉ. एम. रंगय्या तथा एन. आर. श्याम का परिचय दिया देवा प्रसाद मयला ने दिया। डॉ. सुमन लता ने चन्द्रशेखर रेड्डी, डॉ. शकुंतला रेड्डी एवं डॉ. मणि का परिचय दिया। श्वेता ने डॉ. बी. श्रीलक्ष्मी एवं देवा प्रसाद मयला का परिचय दिया।
अनंतर अइनंपूडि श्रीलक्ष्मी ने तेलुगु में धाराप्रवाह में अपने विचार रखते हुए कहा एक वे कवयित्री होने के नाते समझती हैं कि एटुकूरि प्रसाद में अपनी क्रांतिकारी विचारों को गीतों के रूप में आम जन तक पहुँचाने की बड़ी ललक है और वे अपनी मनोकामना पूरी करने में सक्षम हैं। मधुर एवं मृदुभाषी एटुकूरि प्रसाद को साधुवाद।
डॉ. मणि ने कहा कि अनुवाद करने के लिए अनुवादक को मूल रचयिता का परकाय प्रवेश करना होता है और अनुवादक की कलम को सीमाबद्ध रहना होता है, परन्तु अनुसृजन में लेखक को कुछ स्वतंत्रता मिलती है। इस अनुसृजन कार्य में तीनों ही सफल रहे हैं। डॉ. चन्द्रशेखर रेड्डी ने पहले तो तीनों अनुसृजनकर्ताओं को साधुवाद दिया और कहा कि एटुकूरि प्रसाद को वे विगत 50 वर्षों से जानते हैं, उनके गीतों को सुनते-पढ़ते बड़े हुए हैं। प्रसाद के प्रति उन्होंने आदर-भाव प्रकट किया।
डॉ. अहिल्या मिश्र ने संक्षिप्त में एटुकूरि की रचनाओं की तुलना कुछ पौराणिक रचनाओं से की और कहा कि ऐसी क्रांतिकारी रचनाएँ समाज में चेतना जगाती हैं, जिनके हक़ छिने जाते हैं उन्हें इन्साफ़ दिलाने में कामयाब रहती हैं। एटुकूरि की तरह रमणिका गुप्ता ने भी आदिवासियों के उत्थान में अपना बड़ा योगदान दिया है। इस अनुसृजन कार्य में भाषा सरल व शिष्ट है। तीनों अनुसृजनकर्ताओं को साधुवाद।
चाडा वेकटरेड्डी ने अपने विचारों को संक्षिप्त में व्यक्त करते हुए कहा कि अनुवाद करना एक यज्ञ है, बहुत कम अनुवादक अपने काम के साथ न्याय कर पाते हैं। यहाँ पर ये तीनों अनुवादक न्याय करते गोचर हो रहे हैं। इसी बीच लोकार्पित पुस्तक में से एक गीत डॉ. बी. श्रीलक्ष्मी एवं सुश्री जयश्री ने तथा एक और गीत कवि पुरुषोत्तम कड़ेल ने गाकर प्रस्तुत किया।
निखिलेश्वर ने अपने मित्र एटुकूरि प्रसाद का समाज के प्रति दायित्व तथा उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला और कहा कि उन्होंने समाज एवं परिवार के प्रति अपना दायित्व बखूब निभाया है। अध्यापन एवं लेखन के क्षेत्र में उन्होंने अपार ख्याति प्राप्त की है। बहुत कम तेलुगु भाषी होंगे जो इनके गीतों से प्रभावित न हुए हों। अब इन्हें ‘जन से जन में’ के माध्यम से हिन्दी भाषी भी जानने लगे हैं।
तुरंत बाद अनुसृजनकर्ता डॉ. टी. सी. वसंता, डॉ. बी. श्रीलक्ष्मी एवं देवा प्रसाद मयला का शॉल एवं स्मृतिचिह्न से सम्मानित किया गया। फल भी भेंट में दिये गए। तीनों की ओर से डॉ. टी. सी. वसंता ने अपने उद्गार प्रस्तुत किये। कहा कि उनके जीजाजी एटुकूरि प्रसाद अक्सर कहते है- ‘जागृत करनेवाली कलम कभी सूखती नहीं/ युद्धरत हृदय की धड़कन कभी रुकती नहीं’ और यही कारण है कि 87 की उम्र में भी एटुकूरि की कलम चल रही है। उनके क्रांतिकारी विचार एवं मानवता के प्रति जागरूकता ने ही हम तीनों को उनकी रचनाओं का हिन्दी में अनुसृजन करने की प्रेरणा दी है।
संदर्भ में वाजा तेलंगाना इकाई के अध्यक्ष एन. आर. श्याम ने कहा कि एटुकूरि प्रसाद के तेलुगु गीत संग्रह ‘जनम नुंचि जनम लो कि’ का हिन्दी में जिस प्रकार का अनुसृजन हुआ है, प्रशंसनीय है। तीनों ही अच्छे अनुवादक हैं। आगे भी ऐसे कार्यों को प्रोत्साहन मिलना चाहिए। मानवतावादी एटुकूरि प्रसाद के कार्य सराहनीय हैं। राष्ट्रीय वाजा के महासचिव शिवेन्द्र प्रकाश द्विवेदी को स्मरण करते हुए श्याम ने बताया कि कार्यक्रम में उनकी अनुपस्थिति का कारण है लखनऊ में एक अन्य साहित्यिक कार्यक्रम में उनकी व्यस्तता।
पश्चात् वाजा द्वारा कार्यक्रम के संचालन के लिए अपने तेलंगाना इकाई के महिला विभाग की उपाध्यक्ष डॉ. आर. सुमन लता का शॉल, स्मृतिचिह्न एवं फल भेंट करके सम्मानित किया गया। पत्रकार के. राजन्ना का तथा कवि पुरुषोत्तम कड़ेल का सम्मान किया गया। अध्यक्षीय वक्तव्य में एस. वी. सत्यनारायण ने एटुकूरि प्रसाद को महान गीतकार-साहित्यकार बताया। केवल गीत लिखने में ही नहीं, प्रसाद एक अच्छे संपादक एवं पत्रकार भी हैं। वे कई वर्षों तक नवचेतन प्रकाशन से जुड़े रहे। उन्होंने संक्षिप्त में प्रसाद के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला।
डॉ. टी. सी. वसंता के परिवार के सदस्यों ने जलपान एवं अल्पाहार की व्यवस्था की। श्रोताओं में उपस्थित रहे डॉ. जे. एल. रेड्डी, जी. डॉ. कंचन जतकर एवं उनके पति दिलीप दतकर, डॉ. जयप्रकाश, परमेश्वर, पुन्ना कृष्णमूर्ति, कल्पना, सुहास भटनागर, उमेश श्रीवास्तव व अन्य। देवा प्रसाद मयला ने धन्यवाद ज्ञापित किया।