टोक्यो ओलंपिक- 2020 में भारत गोल्ड मेडल्स के बहुत ही करीब पहुंच गया है। हमारे खिलाड़ियों का प्रदर्शन ऐसा ही रहा तो गोल्ड मेडल्स पक्के हैं। भारत के खेल प्रेमियों की धड़कने तेज हो गये हैं। वैसे तो भारत के लिए ओलम्पिक का इतिहास हमेशा से ही आशा के साथ जुडी कुछ गहरी पीड़ा और फिर कुछ पदकों तक ही सीमित रहा है। साल 1900 में खेलों में अपनी शुरुआत के बाद से दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश भारत पदकों की तलाश या तो एक अंक की संख्या के साथ समाप्त हो जाती है या बिना किसी पदक के संतोष करना पड़ा है।
टोक्यो ओलंपिक-2020 शुरू होने के एक हफ्ते बाद आज फिर से भारत पदकों की खोज में अपना पुराना इतिहास दोहराता नजर आ रहा है। इस समय पदकों की संख्या तीन है। पहला पदक भारोत्तोलक मीराबाई चानू ने 49 किग्रा वर्ग में रजत पदक जीत कर हासिल किया है। दूसरे पदक की आशा बॉक्सर लवलीना बोर्गोहेन के रूप में बंधी है, जिन्होंने भारत को कांस्य पदक की गारंटी दे दी है, जब वह वेल्टर-वेट सेगमेंट में सेमीफाइनल के लिए योग्य घोषित की गयी। इसका मुकाबला बुधवार को होगा।
बैडमिंटन स्टार पीवी सिंधु ने भी रविवार को तीसरे स्थान के प्ले-ऑफ के दौरान चीन की ही बिंगजियाओ को 21-13, 21-15 को हराकर कांस्य पदक अपने नाम कर लिया। रियो डी जनेरियो में हुए पिछले ओलंपिक में रजत पदक जीतने वाली सिंधु ने इस बार अपनी इस जीत के साथ भारत की पदक शैली में कांस्य पदक का योगदान देकर ओलंपिक में दो पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनी है।
मणिपुर, असम की रहने वाली मीराबाई और लवलीना ने अपने कारनामों के माध्यम से उत्तर-पूर्वी राज्यों में झिलमिलाती समृद्ध खेल क्षमता का परिचय दिया है। मीराबाई और लवलीना ने जहाँ अपनी जीत का श्रेय परिवार और भारतीय खेल प्राधिकरण के समर्थन के अलावा अपनी कड़ी मेहनत को दिया है। वहीं सिंधु की जीत ने इस बात को साबित किया कि नारियां किसी से पीछे नहीं है।
टोक्यो में खेले जा रहे ओलंपिक खेलों में भारतीय महिला हॉकी टीम ने तो इतिहास रच दिया है। महिला हॉकी टीम ने क्वार्टर फाइनल मुकाबले में ऑस्ट्रेलिया को 1-0 से हराकर पहली बार सेमीफाइनल में अपनी जगह पक्की कर ली है। भारत की तरफ से एकमात्र गोल दागकर गुरजीत कौर ने विजय की कहानी लिख डाली। पुरे खेल के दौरान महिला हॉकी टीम ने अपना आक्रामक रूप दिखाया और पूरे मैच में ऑस्ट्रेलिया टीम पर हावी रही है।
कप्तान रानी रामपाल के नेतृत्व में में भारतीय महिला हॉकी टीम ने 41 सालों में पहली बार ऐसी जीत हासिल की है। साल 1980 में स्वर्ण जीतने के बाद भारतीय पुरुष हॉकी टीम पदक के लिए बैचेन रही है। इस बार के ओलिंपिक में एक और ओलंपिक पदक जीतने के लिए पुरुष हॉकी टीम ने भी गति पकड़ी है और आगे की राह कठिन लग रही है पर यह संघर्ष दिलचस्प होगा इससे इंकार नहीं किया जा सकता।
इसी क्रम में कमलप्रीत कौर का डिस्कस थ्रो में 64 मीटर का शानदार थ्रो किसी जादू से कम नहीं था। कमलप्रीत ने सोमवार को फाइनल के लिए क्वालीफाई किया। अब बहुत कुछ इस पर निर्भर करता है कि आगे का उनका प्रदर्शन कैसा रहता है। जहां ऐसे प्रदर्शनों ने भारत की उम्मीद को को बचाए रखा, वहीँ कुछ प्रदर्शन हताश करने वाले भी रहे है। मुख्य रूप से मैरी कॉम की मुक्केबाजी में हार शामिल है। निशानेबाजी और तीरंदाजी परिणाम कुछ खास नहीं रहे हैं। निशानेबाज- सौरभ चौधरी और मनु भाकर के पास अपने कुछ अच्छे पल जरूर रहे है, लेकिन पदक ले लिए वे पर्याप्त नहीं थे।
यह एक सर्व व्यापी तथ्य है कि कोई भी खेल खिलाड़ियों को अत्यधिक दबाव में रखता हैं, क्योंकि हमेशा व्यक्तिगत उत्कृष्टता को राष्ट्रीय गौरव के साथ जोड़ता है। टेनिस चैम्पियन नोवाक जोकोविच कांस्य पदक भी नहीं जीत सके, जबकि जिम्नास्ट सिमोन बाइल्स ने मानसिक थकान का हवाला देते हुए टूर्नामेंट से नाम वापस ले लिया। कोई भी खेल स्पर्धा आसान नहीं होता है। हर खिलाडी अपने राष्ट्र के लिए पदक की होड़ में नये-नये कीर्तिमान रचने के लिए प्रयासरत रहते हैं। कुल मिलाकर भारत को टोक्यो ओलंपिक-2020 में अब गोल्ड मेडल की तलाश है।
– अमृता श्रीवास्तव, वरिष्ठ लेखिका बेंगलुरु कर्नाटक की कलम से…