खून से लथपथ आंदोलन: कब रुकेगी नक्सल-पुलिस हिंसा..? (भाग-3), श्रीकाकुलम में ऐसे बोये गये बीज

[नोट- हमारे खास मित्र और तेलुगु दैनिक ‘निर्देशम’ के मुख्य संपादक याटकर्ला मल्लेश ने खून से “लथपथ” आंदोलन: कब रुकेगी नक्सल-पुलिस हिंसा..? को धारावाहिक प्रकाशित करने की अनुमति दी है। इसके लिए हम उनके आभारी है। विश्वास है कि पाठकों और शोधकर्ताओं को ये रचनाएं लाभादायक साबित होगी।]

तेलुगु दैनिक ‘निर्देशम’ के मुख्य संपादक याटकर्ला मल्लेश की कलम से…

नक्सलवाद आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वालों में शिक्षकों की भूमिका से कोई भी इनकार नहीं कर सकते। कोंडापल्ली सीतारामय्या और केजी सत्यमूर्ति से लेकर मुप्पल्ला लक्षण राव और इसी समय आंदोलन शामिल हुए वेम्पटपु सत्यम जैसे कईं नेताओं ने नेतृत्व किया। इनके नेतृत्व में किये गये आंदोलन से श्रीकाकुलम जंगल में दहाड़ उठा। क्योंकि जिन शिक्षकों को छात्रों को शिक्षित करना था, उन्होंने सड़े-गले समाज की सर्जरी करने का फैसला किया। श्रीकाकुलम जिले में 1960 से 1967 के बीच आदिवासियों का शोषण करने वाले भूस्वामियों के खिलाफ शिक्षक वेम्पटपु सत्यम ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया। आदिवासी लोग उसे प्यार से ‘गप्पगारा’ कहते थे। वेम्पटपु सत्यम ने अपने साथी अदिभटला कैलासम के साथ मिलकर श्रीकाकुलम के जंगलों में अनेक आन्दोलन चलाये। इस आंदोलन को देख जमींदारों की नींद हराम हो गई।

श्रीकाकुलम जिले के पार्वतीपुरम तालुका के बोरिकोंडला गांव में जुलाई 1970 में पुलिस ने वेम्पटपु सत्यम और आदिभटला कैलासम को पुलिस ने पकड़ लिया और गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। श्रीकाकुलम आंदोलन में वेम्पटपु सत्यम, सुब्बाराव पाणिग्रही, छागंटी भास्कर राव, मल्लिकार्जुनुडु, आदिभटला कैलासम, पंचादि कृष्णमूर्ति व पंचादि निर्मला (दंपति) और कई अन्य नेताओं ने नक्सल आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पहले तारिमेला नागी रेड्डी के नेतृत्व में श्रीकाकुलम जंगलों में आंदोलन करने वाले- वेम्पटपु सत्यम, पंचादी कृष्णमूर्ति, पंचादी निर्मला और कैलासम का संघर्ष नक्सल आंदोलन के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से लिखा जाएगा।

गुलामी की जंजीरें टूटी और बंदूकें उठी

जहाँ सत्ता होती है, वहाँ पर दमन भी होता है। जहाँ पर दमन होता है, वहाँ विद्रोह भी होता है। इतिहास की सच्चाई यह है वहां की मौजूदा परिस्थितियों के प्रभाव के चलते विद्रोह, आंदोलन और क्रांति रूप ले सकती हैं। नक्सलवादी आंदोलन भी इसका अपवाद नहीं है। अब सवाल उठता है कि कोई भी आंदोलन क्यों आरंभ होता है? जब इंसान को इंसान की पहचान नहीं मिलती या इंसान को इंसान से सम्मान नहीं मिलता या इंसान को ठीक से जीने नहीं दिया जाता या उस पर दमन होता है तो आंदोलन जन्म लेता है। तात्पर्य हालात ही इंसान को आंदोलन के लिए प्रेरित करती है। नक्सल आंदोलन के इतिहास को भी इसी नजरिए से देखा जाना चाहिए।

एक जमाने में ‘सापादा लक्षदेश’ (एक ऐसी भूमि जहां एक लाख सोने के सिक्के मिलने वाला प्रांत) के नाम से पहचाने जाने वाले तेलंगाना के सभी जिलों की भूमि सदियों से उपजाऊ रही हैं। पहले सत्ता और उसका अधिकार क्षेत्र में समानता थी। लेकिन जैसे-जैसे सत्ता और अधिकार का विस्तार होने लगा तो लोगों पर दमन बढ़ते गये। इसके बाद के राजशाही ध्वस्त हो गई। उस ध्वस्त हो चुके अवशेषों से सामने आये निज़ाम युग के जागीरदारों और कुलीनों (तेलुगु- दोरा) द्वारा गरीबों पर शोषण किया और बंधुआ मजदूरी प्रथा को लागू किया। जिन कुलीनों ने कभी भी कड़ी मेहनत नहीं की, खेतों में पसीना नहीं बहाया वे गांव-गांव गये और जमीनों को अपने नाम लिखवा ली। इतना ही नहीं, जिस तरह से वो खेत, खलीहान, पहाड़, घाटी और जंगलों पर कब्जा किया, उसी तरह गांव के लोगों को भी अपनी खुद की संपत्ति बना लिया और उन पर दमन करना शुरू किया। हालांकि, चारों ओर से चले आंदोलन और भारत सरकार की सूझबूझ के चलते आखिरकार निजाम शासन का अंत हो गया।

निज़ाम शासन के अंत होने के बावजूद, अश्वेत कुलीन वर्ग की सत्ता जैसे की वैसी बरकरार रही। अश्वेत कुलीनों ने न केवल भूमि पर ही बल्कि लोगों के सम्पूर्ण जीवन तौर तरीके पर अपना दबदबा जमाया और उन पर राज किया। कुलीन ही गरीबों को मजदूरी पर रखते थे। कुलीन ही ब्याज पर पैसा देते थे। काम नहीं करने और पैसे नहीं लौटाने पर कुलीन ही उन्हें दंड देते थे। कुलीन ही पूरे गांव के लोगों पर राज करता थे। सदियों से चली आ रही यह अर्ध-औपनिवेशिक सामंती व्यवस्था को एक पीढ़ी ने सहन किया। एक और पीढ़ी ने इसे कर्म सिद्धांत मानकर बर्दाश्त कि गया। लेकिन नई पीढ़ी ने बदलाव के लिए विचार करना शुरू किया। शिक्षा (पढ़ाई) के नाम पर राजधानी (हैदराबाद) में आई नई पीढ़ी ने स्कूलों में नए सोच की शुरुआत की है। इन स्कूलों की नई सोच की हवा निजामाबाद, करीमनगर, वरंगल, मेदक और आदिलाबाद जिलों तक बहने लगी। स्कूल और कॉलेज के छात्रों ने दमनकारी व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाई। तब तक उन्हें इस बात का पता नहीं चला कि यह विद्रोह सदियों के इतिहास को नया आकार दे रहा है..!!

चिंगारी सुलग उठी

तारीखों, दिनों, हफ्तों को छोड़ दें तो तेलंगाना अनेक जिलों में नक्सल आंदोलन तब शुरू हुआ जब नक्सलबाड़ी आंदोलन के संस्थापक कॉमरेड चारू मजुमदार गुंटूर जिले के गुत्तिकोंडा बिलम में आए थे। जहां अशिक्षित पीढ़ी ने कर्म के सिद्धांत पर अपना जीवन छोड़ दिया, वहीं नई पीढ़ी ने ‘दुख के सरोवर’ में कारणों को खोजना शुरू कर दिया। कॉलेजों में पढ़ने के लिए छात्रों को नई चीजें सीखने को मिली। साल 1967 में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी में शुरू हुए आंदोलन ने छात्रों को प्रभावित किया और इस ओर प्रेरित किया। वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि शोषण मुक्त व्यवस्था का निर्माण सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से ही एक नई लोकतांत्रिक क्रांति संभव है। इन नई सोच के छात्रों ने समाज में परिवर्तन लाने के लिए सामंती व्यवस्था के लौह पैरों तले कुचले जा रहे गरीबों की मुक्ति के लिए आंदोलन का रास्ता चुना। आंदोलन के राह पर उच्च शिक्षा को बाधा मानकर उसे पूर्ण रूप से विराम लगा दिया। नक्सलबाड़ी में जमींदारों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष और श्रीकाकुलम किसान संघर्ष से प्रेरित होकर 1970 के दशक में तेलंगाना की धरती पर क्रांति की मशाल प्रज्वलित की। उस मशाल को प्रज्वलित वाले एकमात्र व्यक्ति कोंडापल्ली सीतारामय्या थे।

हालांकि, उस आग में घी डालने और उसे फैलाने वालों में- के जी सत्यमूर्ति उर्फ ​​शिवसागर, अप्पल सूरी, कोलीपारा नरसिम्हा राव, महादेवन, मुक्कु सुब्बारेड्डी उर्फ ​​रंगन्ना, आई. वी. संबाशिव राव, मल्लिकार्जुन शर्मा शामिल है। उस भड़की हुई आग से निकली चिंगारी पूरे देश में फैल गई। नक्सल आंदोलन की आग को पूरे देश में लगाकर एक नई लोकतांत्रिक क्रांति का सपना देखकर वे लगातार संघर्ष करते गये और अब भी कर रहे हैं। यह नक्सल आंदोलन एक ‘रेल वैगन’ है और उसकी मंजिल ‘क्रांति’ है। हकीकत यह है कि ‘क्रांति’ कोई प्रीतिभोज नहीं है। उस रेलगाड़ी में बहुत से लोग चढ़ते हैं। गंतव्य तक पहुंचने से पहले (कुछ लोग कमजोरियों और स्वार्थी इच्छाओं के आगे झुक जाते हैं) वे जबरन कारण ढूंढते हैं और उतर जाते हैं। फिर आंदोलन के गद्दार एसी कमरों में बैठकर आंदोलन की आलोचना करते हैं। कुछ सरकारी पुरस्कारों के लालच में आकर पार्टी की जानकारी उजागर करते हैं। फिर भी, उस आंदोलन की रेलगाड़ी में अंत तक सफर करने वालों के नाम, संघर्ष और बलिदान हमेशा इतिहास में रह जाते हैं।

कोंडापल्ली सीतारामय्या का जीवन भी बलिदानों से भरा है। वह अपने छात्र जीवन से ही कम्युनिस्ट आंदोलन में सक्रिय रहे हैं। वे एक पेशेवर क्रांतिकारी है। कोंडापल्ली सीतारामय्या के साहस, आंदोलन की रणनीति और व्यूह रचना के बारे में दुश्मन को भी मानना पड़ा था। उनके द्वारा जलाई गई चिंगारी से निकल वालों में- सुरपनेनी जनार्दन राव, मुप्पल्ल लक्ष्मण राव, मल्लोजुला कोटेश्वर राव, मल्लोजुला वेणुगोपाल, नल्ला आदिरेड्डी, कुमार रेड्डी, विजयकुमार (पत्रकार), डॉ. विजयकुमार, मीसाला राजी रेड्डी, गज्जेला गंगाराम, नरेश (सत्यम), तुचरकांत भट्टाचार्य, चंद्रशेखर (चंद्रम), नारायण, चाहू, डॉ. श्रीनिवास, डॉ. नलिनी, डॉ. चंद्रावती, गादे इन्नय्या, डॉ. साईनाथ, डॉ. वेणु, डॉ. सूरी, डॉ. चिरंजीवी, गाजर्ला राजकुमार, जुन्नू चिन्नलु, वेंकट रमणी, आइलय्या, अल्लम नारायण, नारादास लक्ष्मण दास, विश्वेश्वर राव, शिवाजी, बंडा प्रकाश, नारायण रेड्डी, कृष्णा रेड्डी, तिरुपति रेड्डी, डॉ. बाबूराव, बर्ला यादगिरी राजू, के. सत्यनारायण, पामुला रामचंदर, के वी तिलक और कोरेड्डी वेंकट रेड्डी जैसे कई क्रांतिकारी हैं। उनके दिखाये गये आंदोलन के राह पर चल पड़े।

डॉ. कोल्लुरी चिरंजीवी नक्सल आंदोलन के मार्ग से विचलित होने वाले पहले व्यक्ति थे। चिरंजीवी को नागापुर में आयोजित उत्तर तेलंगाना अधिवेशन के बाद पुलिस ने गिरफ्तार किया था। इसके बाद उसने पुलिस के पक्ष में बयान दिया। कुछ साल बाद मुक्कु सुब्बा रेड्डी, शिवाजी, अल्लम नारायण और बंडा प्रकाश जैसे कई नेता बंदूकें छोड़कर लोकतांत्रिक जीवन की धारा में शामिल हो गए। कुछ नक्सल को पुलिस ने गिरफ्तार किया और उन्हें यातनाएं दी गई। तुचरकांत भट्टाचार्य जैसे नेता अवैध मामलों को लेकर कोर्ट-कचहरी के चक्कर काट रहे हैं। कुछ नेता अभी भी उस आंदोलन को आगे बढ़ा रहे हैं जिस पर वे विश्वास करते हैं। ये सभी पहली और दूसरी पीढ़ी के क्रांतिकारी हैं। इसके बाद आंदोलन में कूदने वाले- पटोल्ला सुधाकर, माधव, संतोष रेड्डी, दोंतु मार्केंडेय, रमाकांत (आरके) और जम्पन्ना जैसे हजारों नेता नक्सलवादी आंदोलन के राह पर चल पड़े हैं।

Also Read-

చండ్ర పుల్లారెడ్డి
పుచ్చలపల్లి సుందరయ్య
దేవులపల్లి వెంకటేశ్వర్‌రావు
రక్తంతో ‘‘తడిసిన’’ ఉద్యమం
నక్సల్స్ – పోలీసుల హింస ఆగేదెప్పుడు..?

ధారావాహిక – 03

శ్రీకాకుళం ఉద్యమం

నక్సల్స్‌ ఉద్యమంలో కీలక పాత్ర పోషించిన వారిలో ఉపాధ్యాయుల పాత్రను ఎవరు కాదనలేరు. కొండపల్లి సీతారామయ్య, కేజీ సత్యమూర్తి నుంచి ముప్పాళ్ల లక్షణరావు వరకు మధ్యలో వెంపటాపు సత్యంలాంటి ఇంకెందరో ఉన్నారు. విద్యార్థులకు విద్య బోధన చేయాల్సిన ఆ ఉపాధ్యాయులు కుళ్లిన సమాజానికి శస్త్ర చికిత్స చేయాలని నిర్ణయించారు. శ్రీకాకుళం జిల్లాలో 1960 – 67 మధ్య కాలంలో గిరిజనులను దోపీడి చేసే భూస్వాములకు వ్యతిరేకంగా ఉపాధ్యాయుడు వెంపటాపు సత్యం ఉద్యమానికి నాయకత్వం వహించారు. ఆయనను గిరిజనులు ప్రేమతో ‘గప్పగార’ అంటూ పిలిచే వారు. సహాచరుడు ఆదిభట్ల కైలాసంతో శ్రీకాకుళం అడవులలో ఉద్యమాలు నిర్వహించి భూస్వాముల గుండెల్లో బాంబులా తయరయ్యారు వెంపటాపు సత్యం.

పార్వతీపురం తాలుకాలోని బోరికొండలలో 1970 జూలై నెలలో వెంపటాపు సత్యం, ఆదిభట్ల కైలాసంలను పట్టుకుని పోలీసులు కాల్చి చంపారు. శ్రీకాకుళం ఉద్యమంలో వెంపటాపు సత్యం.. సుబ్బరావు పాణిగ్రహి.. ఛాగంటి భాస్కర్‌ రావు.. మల్లిఖార్జునుడు.. ఆదిబట్ల కైలాసం.. పంచాది కృష్ణమూర్తి.. పంచాది నిర్మల (దంపతులు)తో పాటు ఎందరో నక్సల్స్‌ ఉద్యమంలో కీలక పాత్ర పోషించారు. మొదట తరిమెల నాగిరెడ్డి నాయకత్వంలో శ్రీకాకుళంలో పని చేసిన వెంపటాపు సత్యం, పంచాది కృష్ణమూర్తి, పంచాది నిర్మల, కైలాసం శ్రీకాకుళం అడవులలో చేసిన ఉద్యమం చరిత్రలో నిలుస్తోంది.

బాంచను బతుకుల్లో మొలిచిన బందూకులు

‘ఎక్కడ అధికారం ఉంటుందో అక్కడ అణచివేత ఉంటుంది. ఎక్కడ అణచి వేత ఉంటుందో అక్కడ తిరుగుబాటు ఉంటుంది. ఆయా పరిస్థితులు పరిమితులను బట్టి తిరుగుబాట్లు, ఉద్యమాలు, విప్లవాలుగా రూపొంతరం చెందుతాయనడానికి చరిత్ర చెబుతున్న సత్యం. నక్సల్స్‌ ఉద్యమం ఇందుకు మినహాయింపు కాదు.’ ఏ ఉద్యమమైన ఎందుకు మొదలవుతుంది..? మనిషిని మనిషిగా గుర్తించని, గౌరవించని, బతుకనీయని పరిస్థితులు ఏర్పడినప్పుడే. నక్సల్స్‌ ఉద్యమ చరిత్రను ఆ దృక్కోణంలోంచే చూడాలి. ఒకనాడు ‘సాపాద లక్షదేశమని’ (వెయి బంగారు నాణేల కప్పం లభించే ప్రాంతం) పిలిచే భూబాగంలో ఉన్న తెలంగాణలోని జిల్లాలు శతాబ్దాల నాడు సస్యశ్యామల దేశమే. రాజ్యం, దాని తాలూకు అధికారం కడుదూరంగా ఉన్న జనపదం, రాజ్యం విస్తరించడం మొదలయ్యాక పీడన మొదలైంది. తర్వాత కాలంలో రాచరికాలు కుప్పకూలినా అవ్యవస్థ అవశేషాలైన నిజాం జమానాలు జాగీర్దారులు, దొరలు వెట్టి చాకిరీ కట్టుబానిసతనాన్ని అమలు చేశారు. ఒల్లు వంచి చుక్క చెమట రాల్చని దొరలు ఊళ్లకు ఊళ్లు భూములన్నీ రాయించేసుకున్నారు. పొలాలు, పుట్రలు, కొండలు, కోనలు అడవుల్లాగే ఊళ్లో జనాన్ని కూడా తమసొంత ఆస్తిగా మార్చుకున్నారు. అజామాయిషీ చేశారు.

నిజాం పాలన అంతమైనా నల్లదొరల అధికారం చెక్కుచెదరలేదు. భూమిపైనే కాక జన జీవనాన్ని మొత్తంగా దొరలే నిర్ణయించారు. నిర్దేశించారు. కూలీ చేయించేది దొరే. వడ్డీలకు డబ్బులిచ్చేది దొరే. శిక్షలు వేసేది దొరే. పల్లె జీవనానికి దొరే సర్వం. శతాబ్దాలుగా కొనసాగిన ఈ అర్ధవలస భూస్వామ్య వ్యవస్థను ఒక తరం భరించింది. మరోతరం కర్మ సిద్దాంతంతో సరిపెట్టుకుంది. కొత్తతరం మార్పు కోసం ఆలోచన చేసింది. చదువు పేరిట రాజధాని చేరిన కొత్తతరం విద్యాలయాలలో కొత్త ఆలోచనలకు శ్రీకారం చుట్టారు. అక్కడి కొత్త గాలులు నిజామాబాద్‌, కరీంనగర్‌, వరంగల్‌, మెదక్‌, ఆదిలాబాద్‌ జిల్లాలకు వ్యాపించాయి. పీడిరచే వ్యవస్థపై పిడికిలి బిగించాయి. ఆ తిరుగుబాటు శతాబ్దాల చరిత్రను తిరగారాస్తున్నందన్న విషయం అప్పుడు వారికి తెలియదు..!!

నిప్పురవ్వపుట్టింది..

తేదీలు.. తిథులు.. వారాలు వదిలేస్తే తెలంగాణ జిల్లాలలో నక్సల్స్‌ ఉద్యమం నక్సల్బరీ ఉద్యమ నిర్మాత కామ్రేడ్‌ చారుమజుందర్‌ గుంటూర్‌ జిల్లా గుత్తికొండ బిళంకు వచ్చిన సందర్భంలో పురుడు పోసుకుంది. చదువు లేని తరం కర్మ సిద్దాంతానికి తమ బతుకులు వదిలేయగా కొత్త తరం మాత్రం ‘బాధల కేదారంలో శోధన మొదలెట్టింది. చదువుకోసం కాలేజ్‌కు వెళ్లిన విద్యార్థులు కొత్త విషయాలు తెలుచుకున్నారు. 1967లో పశ్చిమబెంగాల్‌లోని నక్సల్‌బరిలో పుట్టిన ఉద్యమం యువతకు స్పూర్తి నిచ్చింది. సాయుధ పోరాట మార్గంలో నూతన ప్రజాస్వామిక విప్లవం ద్వారానే దోపీడి లేని వ్యవస్థ నిర్మాణం సాధ్యమన్న నిర్ణయానికి వచ్చారు వారు. సమాజంలో మార్పు కోసం, భూస్వామ్య వ్యవస్థ ఉక్కుపాదాల కింద నలిగి పోతున్న బడుగు జనం విముక్తి కోసం, ఉద్యమ మార్గాలను ఎన్నుకుని దీనికి ప్రతిబందకంగా నిలిచే తమ ఉన్నత విద్యకు స్వప్తీ పలికారు. నక్సల్బరిలో భూస్వాములకు వ్యతిరేకంగా జరిగిన సాయుధ పోరాట నమూనాతో, శ్రీకాకుళం రైతాంగ పోరాటం ఆధర్శంగా 1970 దశకంలో తెలంగాణ గడ్డపై విప్లవ కెరటాల నిప్పు రాజుకుంది. ఆ నిప్పును రాజేసింది ఒకే ఒక్కడు కొండపల్లి సీతారామయ్య.

కానీ, ఆ నిప్పుకు ఆజ్యం పోసి మంటలు పెరుగడానికి కారణమయ్యారు కె. జి. సత్యమూర్తి అలియాస్‌ శిలసాగర్‌, అప్పల సూరి, కొలిపార నరసింహారావు, మహాదేవన్‌, ముక్కు సుబ్బరెడ్డి అలియాస్‌ రంగన్న, ఐ.వి.సాంబశివరావు, మల్లిఖార్జున శర్మ. ఆ ధగధగమండే ఆ మంటల నుంచి ఎగిరి పడ్డ నిప్పు కణాలే దేశం నలుమూలల అగ్గి రాజేసింది. నక్సల్స్‌ ఉద్యమ మంటలను దేశ వ్యావ్తంగా ముట్టించి నూతన ప్రజాస్వామిక విప్లవం వస్తుందని నిరాంతంర ఉద్యమిస్తున్నారు. ఉద్యమించారు వారు. ఆ నక్సల్స్‌ ఉద్యమం ‘రైల్‌ బండి’ గమ్యం ‘విప్లవం’ నిజానికి విప్లవం విందు బోజనం కాదు. ఆ రైల్‌లో ఎందరో ఎక్కుతారు. గమ్యం రాక ముందే (బలహీనతలతో, స్వార్థమైన కోరికలతో లొంగిపోతారు) బలవంతంగా కారణలు వెతుక్కొని దిగుతారు. ఆ తరువాత ఎసీ గదులలో కూర్చుండి ఉద్యమాన్ని విమర్శిస్తుంటారు ఉద్యమ ద్రోహులు. కొందరైతే ప్రభుత్వం ఇచ్చే పారితోషికంకు లొంగి పార్టీ సమాచారం చెపుతారు. అయినా ఆ ఉద్యమ రైలు బండి బాటలో ప్రయాణం చేసినంతా కాలం వారు చేసిన పోరాటాలు, త్యాగాలు చరిత్రలో నిలుస్తాయి.

కొండపల్లి సీతారామయ్య జీవితం కూడా త్యాగాల పుట్ట. విద్యార్థి దశ నుంచే కమ్యూనిష్టు ఉద్యమంలో పని చేసిన వృత్తి విప్లవకారుడు అతను. కొండపల్లి సీతారామయ్య సహాసం, ఉద్యమ ఎత్తుగడలు, వ్యూహాల గురించి శతృవు కూడా ఒప్పుకోవాల్సిందే. అతను రాజేసిన నిప్పురవ్వ నుంచి ఎగిసిపడిన నిప్పు కణాలే సురపనేని జనార్ధన్‌రావు, ముప్పళ్ల లక్ష్మన్‌రావు, మల్లోజుల కోటేశ్వర్‌రావు, మల్లోజుల వేణుగోపాల్‌, నల్లా ఆదిరెడ్డి, కుమార్‌రెడ్డి, విజయకుమార్‌ (జర్నలిస్టు), డాక్టర్‌ విజయకుమార్‌, మీసాల రాజిరెడ్డి, గజ్జెల గంగారాం, నరేష్‌ (సత్యం) తుచర్‌ కాంత్‌ బట్టచార్య, చంద్రశేఖర్‌ (చంద్రం), నారాయణ, చాహు, డాక్టర్‌ శ్రీనివాస్‌, డాక్టర్‌ నళిని, డాక్టర్‌ చంద్రవతి, గాదే ఇన్నయ్య, డాక్టర్‌ సాయినాథ్‌, డాక్టర్‌ వేణు, డాక్టర్‌ సూరీ, డాక్టర్‌ చిరంజీవి, గాజర్ల రాజ్‌కుమార్‌, జున్ను చిన్నలు, వెంకట రమణి, ఐలయ్య, అల్లం నారాయణ, నారాదాస్‌ లక్ష్మన్‌దాస్‌, విశ్వేశ్వర్‌రావు, శివాజీ, బండ ప్రకాష్‌, నారాయణరెడ్డి, క్రిష్ణారెడ్డి, తిరుపతిరెడ్డి, డాక్టర్‌ బాబురావు, బార్ల యాదగిరి రాజు, కె. సత్యనారాయణ, పాముల రాంచందర్‌, కె. వి. తిలక్‌, కోరేడ్డి వెంకట్‌రెడ్డి ఇలాంటి విప్లవ కారులు ఎందరో ఉద్యమ బాటలో ప్రయాణం చేసారు.

ఆ ఉద్యమ బాట నుంచి మొదట తప్పుకుంది డాక్టర్‌ కొల్లూరి చిరంజీవి. నాగాపూర్‌లో జరిగిన ఉత్తర తెలంగాన ప్లీనరి తరువాత పోలీసులకు పట్టుబడిన చిరంజీవి పోలీసులకు అనుకూలంగా స్టేట్‌మెంట్‌ ఇచ్చాడు. కొన్నెళ్ల తరువాత ముక్కు సుబ్బరెడ్డి. శివాజీ, అల్లం నారాయణ, బండ ప్రకాష్ ఇలా చాలా మంది తుపాకీ వదిలి జనజీవన స్రవంతిలో కలిశారు. మరి కొందరు పోలీసులకు పట్టుబడి చిత్రహింసలు అనుభవించారు. తుచర్‌కాంత్‌ బట్టచార్య లాంటోళ్లు అక్రమ కేసులతో కోర్టు చుట్టూ తిరుగుతున్నారు. నమ్మిన ఆశయం కోసం ఇంకా ఆ ఉద్యమాన్ని బలోఫేతం చేస్తున్న వారు మరి కొందరు. వీళ్లంతా మొదటి, రెండవ తరం విప్లవకారులు. ఆ తరువాత ఉద్యమ రణరంగంలో దూకిన వీరులు పటోళ్ల సుధాకర్‌, మాధవ్‌, సంతోష్‌రెడ్డి, దొంతు మార్కెండెయా, రమాకాంత్‌ (ఆర్‌.కె.), జంపన్న వేల మంది నక్సలైట్‌ ఉద్యమ బాట పట్టారు. (విద్యార్థులకు విప్లవ రాజకీయాలు నేర్పి పోరుబాట చూపిన కొండపల్లి సీతారామయ్య. ఆయన ఆలోచన నుంచి పుట్టిన ఉద్యమం ఏమైందో రేపటి ఎపిసోడ్ లో చూద్దాం)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent Posts

Recent Comments

    Archives

    Categories

    Meta

    'तेलंगाना समाचार' में आपके विज्ञापन के लिए संपर्क करें

    X