हैदराबाद रियल एस्टेट ने हाल ही में 100 करोड़ रुपये प्रति एकड़ का आंकड़ा पार कर लिया है। कोकापेट नियोपोलिस नीलामी में लगभग सभी प्लॉट 75-80 करोड़ प्रति एकड़ के हिसाब से बिके हैं। वहीं इस क्षेत्र में जमीन की कीमतें अचानक दुगनी हो गई हैं। यह खबर कुछ हफ्तों से न केवल दोनों तेलुगु राज्यों में बल्कि देशभर के रियल एस्टेट सेक्टर और दुनिया भर के भारतीय सॉफ्टवेयर इंजीनियरों के बीच एक गर्म विषय बन गई है। तेलंगाना की सत्ताधारी पार्टी बीआरएस भी बड़े गर्व से इसे शहर के विकास और भविष्य का सूचक बता रही है। अब देश के आईटी गलियारे में रियल एस्टेट के मामले में हैदराबाद एक महंगा शहर बन गया है। हालाँकि, ये रिकॉर्ड कीमतें अब शहर के सबसे महत्वपूर्ण आईटी क्षेत्र की वृद्धि को चुनौती दे रही हैं।
MIDHANI
हाल ही में आईटी निर्यात के मामले में देश में शीर्ष स्थान हासिल करने वाला हैदराबाद शहर उसे बचाये रखने के लिए यहां दशकों से मौजूद अनुकूल आईटी माहौल को जारी रखने की जरूरत है। 1990 के दशक में जब आईटी कंपनियां हैदराबाद आईं तो उनके लिए मुख्य आकर्षण बुनियादी ढांचा विकास और सस्ती जमीनें थी। भले ही तब से शहर का तेजी से विस्तार हुआ है, लेकिन हाल तक देश के अन्य मेट्रो शहरों की तुलना में यहां जमीन की कीमतें सस्ती बनी हुई थी। लेकिन, ताजा हालात में जमीन की बढ़ती कीमतें भी बहुराष्ट्रीय कंपनियों की दिल की धड़कनें तेज कर रही हैं। जहां दूसरे शहरों में सालाना 10-20 फीसदी की बढ़ोतरी हो रही है, वहीं हैदराबाद में यह सौ फीसदी बढ़ गई है, जिससे आईटी कंपनियों और कर्मचारियों को गहरा झटका लगा है।
देश की आईटी राजधानी बैंगलोर के साथ प्रतिस्पर्धा के रूप में हैदराबाद शहर विकसित होता आया है। उसका मुख्य कारण हैदराबाद शहर की खूबियाँ हैं। बेंगलुरु, मुंबई, दिल्ली और कोलकाता जैसे मेट्रो शहरों की तुलना में हैदराबाद में रहने की लागत बहुत कम थी। पांच साल पहले भी दूसरे राज्यों के लोग यहां का कम किराया देखकर आश्चर्य चकित होते थे। पांच साल पहले एक डबल बेडरूम फ्लैट 30-50 लाख में खरीदा/बेचा जा सकता था। यदि आप बाहरी रिंग रोड पार करेंगे तो आपको दस हजार रुपये गज जमीन मिल सकती थी। यदि मध्यम वर्ग के लोग घर बनाना चाहते हैं, तो हैदराबाद शहर सबसे अच्छा माना जाता था। उत्तर भारत के आईटी कर्मचारी बैंगलोर, मुंबई, पुणे, गुड़गांव में नहीं, बल्कि हैदराबाद में स्थायी निवास बनाना पसंद करते थे। बैंगलोर की तरह ही हैदराबाद में एक संतुलित जलवायु है। इसके चारों ओर बाहरी रिंग रोड होने से यातायात की समस्याएँ अधिक नहीं है।
हालाँकि, ओआरआर के साथ आईटी कॉरिडोर में निर्मित किये गये बड़े-बड़े भवन यातायात संबंधी समस्याएँ पैदा कर रही हैं। फ्लोर स्पेस इंडेक्स की कोई सीमा नहीं होने के चलते प्रति एकड़ 5 लाख वर्ग फुट से अधिक निर्माण की संभावना के कारण विशाल निर्माण हुए हैं। इस हिसाब से सड़कों का उतना चौड़ीकरण नहीं हुआ। इसके कारण शाम के समय टीएसपीए और कोकापेटा जंक्शन पर भारी ट्रैफिक जाम अपरिहार्य हो गया है। इससे निपटने के लिए नरसिंगी के पास एक नया इंटरचेंज स्थापित किया गया। कोकापेटा नियोपोलिस में एक और इंटरचेंज की योजना बनाई जा रही है। हैदराबाद के फायदों को भुनाने की कोशिश में रीयलटर्स ने जमीन की कीमतों में जबरदस्त बढ़ोतरी की है। इसके साथ ही, सभी समुदायों के लिए किफायती घर मिलना मुश्किल हो गया है। अब, शहर में कहीं भी एक डबल बेडरूम मकान की कीमत 60 लाख रुपये हैं। आईटी कॉरिडोर में तो करोड़ों रुपये का निवेश करना होगा। उस हिसाब से मकान का किराया भी आसमान पर है।
देश के अन्य आईटी गलियारों की तुलना में हैदराबाद में ही जमीन की कीमतें फिलहाल ऊंची हैं। बैंगलोर व्हाइटफील्ड्स, इलेक्ट्रॉनिक सिटी, सरजापुर रोड में प्रति एकड़ 30-40 करोड़ रुपये हैं। अब तक की सबसे ऊंची कीमत सिर्फ 60 करोड़ रुपये मात्र है। यहां तक कि मुंबई के पनवेल-ऐरोली आईटी कॉरिडोर में भी एक एकड़ केवल 25-30 करोड़ रुपये मिल रहे हैं। नोएडा में प्रति एकड़ 45 करोड़ रुपये है। पुणे के हिंजवडी और खराडी इलाकों में 18-30 करोड़ रुपये हैं। हैदराबाद के कोकापेट ने 100 करोड़ रुपये का रिकॉर्ड बनाया है। पिछले साल जुलाई में नीलामी में प्रति एकड़ औसतन 40 करोड़ रुपये की बोली लगी थी। ताजा नीलामी में 73.23 करोड़ रुपये हो गई है। आरोप हैं कि एक साल के अंदर रकम दोगुनी होने के पीछे रियल एस्टेट कंपनियों का हाथ है।
हैदराबाद को/में हर तरफ अबाधित विस्तार करने की मौका/क्षमता है। चारों ओर एक बाहरी रिंग रोड है। उसके ऊपर क्षेत्रीय रिंग रोड बन रही है। यानी, अगर सरकार का सभी को घर उपलब्ध कराने का नेक इरादा है, तो यह पता लगाने के लिए रियल एस्टेट कंपनियों के साथ मिलकर एक सामाजिक अध्ययन किया जाए कि कहां और किस क्षेत्र में मांग अधिक है और क्या जरूरतें हैं तो यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि शहर अगले सौ वर्षों तक विकसित होता रहे। लेकिन वो कोशिश नहीं हो पाई है। देश के किसी भी अन्य मेट्रो शहर की तरह फ्लोर स्पेस इंडेक्स (एफएसआई) की सीमा हटा दिए जाने के कारण दक्षिण भारत में सबसे ऊंची इमारते हैदराबाद में आ रहे हैं। मांग की गणना किए बिना सभी भवन एक ही स्थान बनाये जाते है तो क्या वो बेचे जाएंगे? यह शंका भी उत्पन्न होता है।
हैदराबाद में जमीन की कीमतों की उपलब्धता के कारण बड़ी संख्या में बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने हैदराबाद में अपने कार्यालय स्थापित किए हैं। बेंगलुरु व चेन्नई की कंपनियां भी आयी हैं। हाल ही में नियोपोलिस नीलामी का असर आसपास की जमीन की कीमतों पर पड़ रहा है। गंडीपेट में एक एकड़ की कीमत 35 करोड़ रुपये थी और अब अचानक यह 50 करोड़ रुपये हो गई। यदि जमीन की कीमतें कम हैं तो बहुराष्ट्रीय कंपनियां इसे कार्यालय स्थान के लिए लीज पर लेने की बजाय खरीदने में अधिक रुचि रखती हैं। नवीनतम कीमतों से ऐसा मौका नहीं रहा है। कोकापेट में भूमि की कीमतों के प्रभाव के कारण कार्यालय स्थान के लिए भवन बनाना भविष्य में एक महंगा मुद्दा बन जाएगा। अन्य राज्यों की आईटी कंपनियों को इतनी ऊंची कीमतों पर हैदराबाद में कार्यालय स्थान किराए पर लेने की आवश्यकता नहीं है।
एक राय है कि अगर हैदराबाद के पोचारम, आदिभट्ला, कोमपल्ली जैसे शहर के सभी हिस्सों में आईटी स्पेस का विस्तार होगा, तभी शहर में यह सेक्टर खड़ा हो पाएगा। आईटी कंपनियां जहां भी काम करती हैं, उनके लिए प्रौद्योगिकी समान है। मुख्य बात मानव संसाधन है। कार्यालय वहां स्थानांतरित हो जाएंगे जहां कर्मचारियों के लिए रहने की कम लागत पर कार्यालय और अन्य बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध होंगी। अगर हैदराबाद ने अपना सस्ता लाभ खो दिया है, तो कंपनियां यहां से हटने के लिए एक सेकंड के लिए भी नहीं सोचेंगी।
तेलंगाना सरकार अपनी जरूरतों के लिए जमीन की नीलामी करने से रियल एस्टेट समुदाय को फायदेमंद साबित हुआ है। वे इस नीलामी को जमीन की कीमतें बढ़ाने के लिए एक बेंचमार्क के रूप में उपयोग कर रहे हैं। शहर के चारों ओर उप्पल भगायत, रंगारेड्डी, मेडचल-मल्काजीगिरी, तोर्रूर, बहादुरपल्ली, तुर्कयांजाल, कुरमलगुडा, बाचुपल्ली, मेडिपल्ली, कोकापेटा, मोकिला, शाबाद, बुदवेल भूमि की हाल ही में ऑनलाइन नीलामी की गई। निर्विवाद लेआउट होने के कारण अपसेट कीमतों से 100 से 300 प्रतिशत अधिक दाम पर बिके हैं। तब से उन क्षेत्रों में कृत्रिम भूमि संचलन जारी है। उपर्युक्त बातों से स्पष्ट होता है कि अब हैदराबाद शहर दुनिया में सबसे महंगा शहर होता जा रहा है।