कुछ दिनों से बीआरएस और बीजेपी में पहले जैसे लड़ाई-झगड़े नहीं है। गाली-गलौज नहीं है। सवाल-प्रतिसवाल नहीं है। चुनौतियाँ-प्रति चुनौतियां नहीं है। एक नेता की टिप्पणी पर दूसरे नेता टिप्पणी नहीं कर रहे हैं। दिल्ली शराब घोटाले का जिक्र कहीं पर भी नहीं है। कविता को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया जाएगा, जैसे कोई डायलॉग नहीं हैं। आम लोग चर्चा कर रहे है कि हर मुद्दे पर एक-दूसरे को चुनौती देने वाले बीआरएस और बीजेपी के नेताओं में अचानक इतना बदलाव कैसे आ गया? सवाल कर रहे है कि क्या दोनों पक्षों के बीच कोई आंतरिक समझौता हुआ है? क्या समझौते के तहत ही बीजेपी ठंडी पड़ गई है? बीआरएस के प्रति बीजेपी किसके लिए नरम रवैया अपना रही है? क्या नेतृत्व परिवर्तन के कारण बीजेपी के नेताओं ने बीआरएस के नेताओं पर ‘हमला’ करना कम या बंद कर दिया है? इन सब सवालों का जवाब हां ही मिल रहा है। विश्लेषकों का मानना है कि खामोशी का मतलब है कि बीजेपी और बीआरएस के बीच अब गहरी दोस्ती हो चुकी है।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का यह भी मानना है कि हाल में दोनों पार्टियों के व्यवहारशैली को देखकर ऐसा लग रहा है कि कुछ हद तक दोनों के बीच गठबंधन मजबूत हुआ है। कहा जा रहा है कि बीआरएस पार्टी ने खासकर दिल्ली शराब मामले में आरोपों का सामना कर रही एमएलसी कल्वाकुंट्ला कविता के प्रकरण से बीजेपी के साथ अपनी दोस्ती में सुधार किया है। अन्यथा अब तक कविता गिरफ्तार हो चुकी होती और बीआरएस का ग्राफ थोड़ा नीचे चला गया होता। कहा जा रहा है कि सीएम केसीआर ने खुद मैदान में उतरकर दिल्ली शराब मामले को ठीक किया और बीजेपी से समझौता करने में सफल हो गये।
सभी को याद है कि 4 मई की सुबह केसीआर दिल्ली गए थे और वहां बीआरएस का कार्यालय उद्घाटन किया था। लेकिन उसी दिन शाम को केसीआर वापस हैदराबाद आ गए। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस दौरे के बाद ही बीजेपी और बीआरएस के बीच गठबंधन (दोस्ती) की शुरुआत हो चुकी थी। तब से बीजेपी के नेता बीआरएस के खिलाफ अपनी आक्रामकता कम कर दी। बताया जा रहा है कि बीजेपी के आलाकमान से हरी झंडी मिलने पर ही तेलंगाना बीजेपी के नेताओं का पारा ठंडा हो गया है। ऐसा कहा जाता है कि केसीआर मैदान में उतरे, क्योंकि यह खबर जोरों पर फैल चुकी थी कि दिल्ली शराब मामले में कविता को ईडी गिरफ्तार करेगी। इसके चलते बीआरएस के कार्यकर्ताओं में चिंता की लहर फैल चुकी थी।
बताया जा रहा है कि कविता को बचाने की मंशा से केसीआर ने बीजेपी नेताओं से अंदरूनी चर्चा की। बाद में 24 और 25 जून को मंत्री केटीआर दिल्ली भी गए और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और दो अन्य केंद्रीय मंत्रियों से मुलाकात की। हालांकि उन्हें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिलना था, लेकिन आखिरी वक्त में मुलाकात रद्द कर दी गई। फिर खबर आई कि केटीआर कविता के लिए ही दिल्ली गए हैं। बताया जाता है कि शराब मामले में गिरफ्तारी से बचने के लिए कविता की पैरवी की गयी थी। कहा जा रहा है कि इस तरह के घटनाक्रम से बीजेपी कुछ हद तक पीछे हट गई है और पार्टी भी यही चाहती है।
सच यह है कि 2018 में सत्ता में आई बीआरएस शुरू में केंद्र की भाजपा के साथ अच्छी दोस्ती थी। प्रधानमंत्र नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री केसीआर के बीच कोई बड़े मतभेद नहीं थे। लेकिन 2019 के अंत के बाद से दोनों पार्टियों और दोनों नेताओं के बीच तनाव बढ़ गया। 2020 तक तो यह नौबत आई कि एक दूसरे का अपमान करने तक पहुंच गई। उसी साल मार्च में बीजेपी के तेलंगाना अध्यक्ष नियुक्त किये गये बंडी संजय ने बीआरएस पर आक्रामक रुख अपनाया। वे सरकार की नीतियों की आलोचना कर सीएम केसीआर और मंत्री केटीआर पर हमले करना शुरू कर दिया। इससे दोनों पार्टियों के बीच दूरियां बढ़ती गई। जब भी प्रधानमंत्री मोदी हैदराबाद आते हैं तो सीएम केसीआर स्वागत करने नहीं जाते थे। इससे बीजेपी नेतृत्व नाराज हो गया। केसीआर और मोदी के बीच हैं स्थिति इतनी बदल चुकी थी कि तू कौन और मै कौन?
इसी बीच यानी 2022 में दिल्ली शराब कांड सामने आया। जैसे ही इसमें केसीआर की बेटी कविता का नाम सामने आया, तो बीआरएस को बीजेपी पूरी तरह से दुश्मन नजर आने लगी। तब तक राजनीतिक दुश्मनी थी। दिल्ली शराब कांड मामला वित्त से जुड़ा था। इसीलिए बीजेपी के खिलाफ बीआरएस नाराज हो गई और दोनों दल कट्टर दुश्मन बन गये।
दिल्ली शराब मामले में कविता के नाम को देखकर तेलंगाना बीजेपी के नेता और आक्रामक हो गए हैं। जब भी प्रवर्तन निदेशालय की ओर से के कविता को पूछताछ के लिए बुलाया जाता था तो बीजेपी के नेताओं ने बीआरएस को निशाना बनाया। इस मौके को इन नेताओं ने पार्टी का ग्राफ बढ़ाने का संकल्प लिया। बीजेपी के नेताओं ने लोगों के सामने बीआरएस को दोषी ठहराने की कोशिश की गई। खासकर बीजेपी तेलंगाना के अध्यक्ष बंडी संजय ने इस मामले को खूब उठाया। एक इंटरव्यू में कविता की गिरफ्तारी को लेकर की गई टिप्पणी से बड़ा हंगामा मच गया।
बीआरएस के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की। बंडी संजय की गिरफ्तारी के लिए मामले और कोर्ट में मुकदमें दर्ज किये गये। राज्य महिला आयोग ने भी इस मामले को गंभीरता से लिया और मामला दर्ज कर लिया। संजय को महिला आयोग के समक्ष सुनवाई के वक्त हाजिर होना होना पड़ा। इस तरह दोनों पार्टियों ने एक तरह से शत्रुता की भूमिका निभाई और तेलंगाना की राजनीतिक को गरम कर दिया। लेकिन अब अचानक मामला शांत हो गया। दोनों पार्टियों के बीच किसी प्रकार की तकरार नहीं है। सब कुछ शांत हो गया है। अब चर्चा है कि बीआरएस और बीजेपी एक हो गए हैं। ऐसी राय व्यक्त की जा रही है कि इसकी वजह सीएम केसीआर हैं।
विश्लेषकों का कहना है कि बीजेपी ने सोचा कि अगर बीआरएस उनके सामने झुक जाती तो तेलंगाना में कांग्रेस को नेस्तानबूद देंगे और कुछ सीटें जीतेंगे। कहा जा रहा है कि 4 मई को केसीआर के दिल्ली दौरे पर गये तब कुछ बीजेपी नेताओं से मिले और एक कदम पीछे हटने का फैसला किया। इसके बाद से बीजेपी ने बीआरएस के प्रति कुछ नरम रुख अपनाया। इसीलिए बीजेपी के नेता बीआरएस की आलोचना नहीं कर रहे हैं। भले ही केंद्रीय मंत्री किशन रेड्डी कभी-कभी फंड की बात कर रहे हैं, लेकिन बंडी संजय और पार्टी अन्य नेता पहे जैसे ज्यादा शोर नहीं मचा रहे हैं। पार्टी के नेता अंदर ही अंदर इस बात की चर्चा कर रहे हैं कि इस ट्रेंड से बीजेपी का ग्राफ गिर रहा है।
पार्टी के नेता कोंडा विश्वेश्वर रेड्डी ने एक मौके पर कहा था कि कविता की गिरफ्तारी न होने से बीजेपी का प्रभाव कम हो रहा है। ऐसा लगता है कि ईटेला राजेंदर की भी यही राय है। बीजेपी में अब भी यह राय सुनाई दे रही है कि अगर कविता को गिरफ्तार कर लिया गया तो पार्टी की छवि में सुधार होगा। लेकिन दोनों पार्टियों के बीच समझौता होने के कारण ही एमएलसी कविता को गिरफ्तार नहीं किया जा रहा है। उपर्युक्त बातों से स्पष्ट होता है कि इस समय बीजेपी और बीआरएस के बीच प्रतिद्वंद्विता कम और दोस्ती ज्यादा बढ़ गई है। चुनाव के लिए पांच महीने बाकी है। विधायक टी राजा सिंह पर लगाया गया प्रतिबंध अब भी लंबित है। कहा जा रहा है कि यह सब केसीआर के साथ हुए समझौते के तहत हो रहा है।