तेलंगाना की राजनीति इस समय गरम-गरम है। क्योंकि पांच महीने में तेलंगाना में चुनाव होने वाले हैं। बीजेपी की बात करें तो तत्कालीन अध्यक्ष बंडी संजय के नेतृत्व में की गई पदयात्रा और जन सभाओं के माध्यम से लोगों में जोश भर दिया था। ऐसे समय में उन्हें अध्यक्ष पद से हटाने के बाद बीजेपी में मायूसी छा गई है। एक तरह से देखा जाये तो इस समय बीजेपी दो गुटों में बट चुकी है। बंडी संजय के प्रशंसक अध्यक्ष पद से हटाने को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे है। प्रशंसकों का तर्क है कि बंडी संजय को हटाना पिछड़ी जाति का अपमान है।
बीजेपी के बंडी संजय को अध्यक्ष पद से हटाने के बाद सिकंदराबाद के सांसद और केंद्रीय मंत्री जी किशन रेड्डी को अध्यक्ष नियुक्त किया है। आलाकमान का मानना है कि किशन रेड्डी के नेतृत्व में प्रदेश में बीजेपी सरकार बनाएगी। किशन रेड्डी उच्च वर्ग के नेता है। सबकी नजरें इस समय बीआरएस पार्टी से निष्कासित और हुजूराबाद विधायक ईटेला राजेंदर पर है। क्योंकि बंडी संजय को अध्यक्ष पद से हटाये जाने के बाद उनकी रफ्तार अचानक तेज हो गई है।
न जाने क्यों ईटेला राजेंदर में जबरदस्त उत्साह देखने को मिल रहा है। इतने दिनों तक कोई पद नहीं मिलने से नाराज ईटेला अपने निर्वाचन क्षेत्र तक ही सीमित थे। अब गुलाब बॉस और मुख्यमंत्री केसीआर पर ‘तीर’ चलाने को तैयार हो गये हैं। जब से बंडी संजय को अध्यक्ष पद से हटाया गया तब से उनमें कुछ अज्ञात ताकत दिखाई दे रही है। कहा जा रहा है कि बंडी संजय और ईटेला के बीच मतभेद ही इस ताकत का कारण है। जैसे ही किशन रेड्डी को अध्यक्ष घोषित किया गया, तब से ईटेला की रफ्तार तेज हो गई है। ऐसा लग रहा है कि अब उनको कोई रोकने वाला तेलंगाना में पैदा ही नहीं हुआ है।
बीआरएस के अध्यक्ष और सीएम मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव के साथ तालमेल नहीं होने के कारण ईटेला को पार्टी से बाहर फेंक दिया गया। इसके बाद ईटेला बीजेपी में शामिल हो गये। इसके पीछे और अनेक कारण है। बीजेपी के टिकट पर हुजूराबाद में उपचुनावी मैदान में उतरे और जीतकर केसीआर को अपनी ताकत दिखाई दी। इस एक जीत से केसीआर को बड़ा झटका लगा। उस हार को केसीआर अब भी हजम नहीं कर पा रहे है। क्योंकि कहा जा रहा है कि उस चुनाव में केसीआर ने सबसे ज्यादा रकम खर्च किये। देश के इतिहास में इतना महंगा चुनाव अब तक कहीं पर भी नहीं हुआ। इस चुनाव के बाद ही गली से दिल्ली तक ईटेला राजेंदर का नाम गूंज उठा। मीडिया के लिए यह चुनाव बड़ी खबर बनी। हालाँकि तब प्रदेश अध्यक्ष रहे बंडी संजय के साथ ईटेला के बीच कुछ गलतफहमियाँ थीं। साथ ही इस बात से थोड़े नाखुश थे कि इतनी बड़ी जीत मिलने और वरिष्ठता के साथ मान्यता नहीं दी जा रही है।
इतना ही नहीं ईटेला राजेंदर एक ऐसे नेता है जो केसीआर की ताकत और कमजोरियों को अच्छी तरह से जानते हैं। तेलंगाना आंदोलन के भी नेता हैं। सबसे बढ़कर बीसी के नेता है। वे एक ऐसे नेता हैं पूरे राज्य में उनकी पहचान है। सभी को साथ लेकर चलने की मानसिकता है। एक प्रतिबद्ध नेता होने के कारण बीजेपी आलाकमान ने ‘समावेश समिति’ (‘Inclusion Committee’- ‘చేరికల కమిటీ’) का गठन किया। यह एक ऐसे समिति जो दुनिया में कहीं नहीं है। ईटेला राजेंदर को उसका अध्यक्ष नियुक्त किया। यह सर्वविदित है कि उसके बाद कितने लोग बीजेपी में शामिल हो गये।
बहरहाल शीर्ष नेतृत्व ईटेला राजेंदर को ज्यादा तरजीह देता है या फिर कोई और सही कारण है पता नहीं चल पाया है। लेकिन अचानक बंडी संजय बनाम ईटेला राजेंदर जैसी स्थिति बदल गई। कोई माने या ना माने इस समय तेलंगाना बीजेपी दो गुटों में बट गई है। इतना ही नहीं बंडी संजय के खिलाफ अन्य नेताओं की पहले से ही कई शिकायतें आला कमान को मिली थी। शीर्ष नेतृत्व ने राज्य में चुनाव से पहले बीजेपी में असंतोष और वर्ग मतभेद को बढ़ावा ठीक नहीं समझा और किशन रेड्डी को अध्यक्ष पद सौंप दिया। किशन रेड्डी पहले ही अध्यक्ष के रूप में कार्य कर चुके थे। मौजूदा समावेश समिति के अलावा चुनाव प्रबंधन समिति की जिम्मेदारी ईटेला राजेंदर को सौंपे जाने से उन पर और भार बढ़ पड़ गया। बीजेपी के प्रमुख अनुयायियों का कहना है कि बंडी संजय को हटाया जाना और किशन रेड्डी को अध्यक्ष पद सौंपना यह सब ईटेला के लिए अनुकूल रहे है। एक शब्द में कहा जाये तो ईटेला राजेंदर के कारण ही बंडी संजय का अध्यक्ष पद चला गया। जब से बंडी संजय हट गये तब से ईटेला का रुख अचानक बदल गया। अब तक का हिसाब एक और इसके बाद का हिसाब एक जैसी स्थिति में बदल गई है।
अब तक सीएम केसीआर की कम से कम आलोचना करने वाले ईटेला राजेंदर जिम्मेदारियां संभालने के बाद ‘आक्रामकता’ तेज हो गई हैं। एक दायरे में केसीआर की ताकत, केसीआर की कमजोरियां, केसीआर की रणनीतियां, बीआरएस की ऊंचाइयां, तेलंगाना बीआरएस की अंदरूनी जानकारी होने का दावा करते हुए मीडिया के सामने आ रहे हैं। इन सब पर विचार करके कैसे आगे बढ़ना है, इन मुद्दों पर सामूहिक रूप से चर्चा करके आगे बढ़ते जा रहे हैं। ईटेला राजेंदर मीडिया के सामने बार-बार कह रहे है कि अगर बीआरएस आगामी चुनाव जीतती है, तो केसीआर के परिवार को फायदा होगा। यदि बीजेपी जीतती है, तो तेलंगाना के लोगों के साथ-साथ देश के लोगों को लाभ होगा। इतना ही नहीं नये अध्यक्ष किशन रेड्डी के साथ मिलकर ईटेला राजेंदर जमकर काम कर रहे है ताकि आलाकमान उसे शाबास कह सके। राजेंदर ने मीडिया के सामने खुलासा किया कि वह बीजेपी में मौजूदा स्थिति को सुधारने के लिए समावेशिता पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। अगर आप इन कमेंट्स पर नजर डालें तो समझ सकते हैं कि पहले और अब की ईटेला में कितना बदलाव आया है। जितने दिन तक बंडी संजय अध्यक्ष थे, तब तक इस तरह की महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ की नहीं की। जैसे ही किशन रेड्डी अध्यक्ष बनें ईटेला राजेंदर के सुर अचानक बदल गये। आक्रामकता बढ़ गई है।
एक जमाने में ईटेला के प्रशंसक, अनुयायी और कार्यकर्ता बीआरएस में नंबर-02 और संकटमोचक कहकर पुकारते थे। इसका मतलब है कि उन्हें केसीआर के बारे में, उस पार्टी के बारे में, उसकी कमियों के बारे में, बीआरएस नेताओं के बारे में सब कुछ जानते है। इसीलिए वह अपने पास मौजूद सभी हथियारों का इस्तेमाल करने जा रहा है। बीआरएस की गणना करने के बाद उन सभी को एक रिपोर्ट के रूप में आलाकमान के नेतृत्व को देने जा रहे हैं। इसके अलावा, वे बीआरएस और कांग्रेस पार्टियों के उन सभी नेताओं से परामर्श करने जा रहे हैं, जिनके साथ उनके अच्छे संबंध हैं। इसके बाद जल्द ही वे बड़े पैमाने पर भर्ती की योजना बनाने जा रहे हैं। दरअसल, इस समय बीआरएस में टिकटों को लेकर हंगामा चल रहा है। अब कुछ प्रमुख नेता, मौजूद नेता, वरिष्ठ नेता और पूर्व नेता अपनी भविष्य की गतिविधियों की घोषणा करने की तैयारी में हैं। इसलिए इसे सही समय मानकर अपनी टीम के साथ उनसे चर्चा करने की तैयारी कर रहे हैं।
कुल मिलाकर, अब हम ईटेला राजेंदर 2.0 के रूप में देखने जा रहे हैं। ईटेला की ओर से दागे जाने वाले तीर कितने काम आएंगे? किशन रेड्डी-ईटेला का नेतृत्व पिछले नेतृत्व की तुलना में नया नेतृत्व कितनी ऊंची छलांग लगाएंगी? यह सब जानने के लिए हमें चुनावी मौसम तक इंतजार करना होगा। (तेलुगु दैनिक आंध्राज्योति से साभार)