हैदराबाद : तुर्की और सीरिया में विनाशकारी भूकंप से मरने वालों की संख्या बढ़कर 15,000 पार कर गई है। इदलिब प्रांत में 1500 से ज़्यादा लोग मारे गए हैं। वहीं, घायलों की तादाद 35 हजार से ज्यादा है। दोनों ही देशों के भूकंप प्रभावित इलाकों में देशी-विदेशी राहतकर्मी बचाव के काम में जुटे हुए हैं। तबाही इतनी भयावह है कि हजारों लोगों तक अब भी मदद नहीं पहुंच सकी है। नागरिकों का गुस्सा सरकार के खिलाफ भड़क उठा है। पूछा जा रहा है कि भूकंप से निपटने के नाम पर जो टैक्स वसूला गया, वह रकम कहां है।
इसी क्रम में तुर्की ने 1999 के भयानक भूकंप के बाद एक नया टैक्स लगाया था। इससे जमा रकम का इस्तेमाल भूकंप या अन्य प्राकृतिक आपदा से निपटने में होना था। आधिकारिक रूप से इसका नाम ‘स्पेशल कम्युनिकेशन टैक्स’ है। इस टैक्स से करीब 88 बिलियन लीरा (4.6 बिलियन डॉलर) की रकम जुटाई गई। हालांकि, सरकार यह नहीं बताती कि यह पैसा कहां और कैसे खर्च किया जाता है।
सारिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद के सलाहकार ने कहा कि प्रतिबंधों के कारण सीरिया को ज़रूरत के मुताबिक मदद नहीं मिल पा रही है। आलोचकों का कहना है कि आपातकाल सेवाएं सुस्त रफ़्तार से काम कर रही हैं और सरकार की तैयारी भी सही नहीं है। राष्ट्रपति अर्दोआन ने माना की कुछ समस्याएं आई थीं लेकिन अब स्थिति नियंत्रण में है। लेकिन तुर्की की मुख्य विपक्षी पार्टी के नेता केमाइल कुलुचतरोलो ने इससे असहमति जताई।
उन्होंने कहा कि अगर इसके लिए कोई ज़िम्मेदार है तो वो अर्दोआन हैं। राष्ट्रपति ने इन आरोपों से इनकार किया है और कहा है कि आपदा के समय में एकजुटता की ज़रूरत होती है। उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में, मेरे लिए ऐसे लोगों को बर्दाश्त करना मुश्किल होता है जो राजनीतिक फायदे के लिए नकारात्मक अभियान चलाते हैं। सीरिया में लंबे समय से चल रहे टकराव के कारण बुनियादी ढांचा तबाह हो गया है जिससे वहां मदद पहुंचाने में मुश्किल आ रही है। भूकंप के बाद से तुर्की और सीरिया के बीच बाब अल-हवा क्रॉसिंग पूरी तरह से बंद है और सड़कें टूट गई हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के प्रमुख टेड्रोस अढनोम घेब्रेसियस ने चेताया है कि जो अब भी मलबे के नीचे दबे हुए हैं, उनके लिए समय निकलता जा रहा है। तुर्की और सीरिया के कई शहरों में तापमान शून्य से नीचे पहुंच गया है। संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि बर्फबारी और बारिश के कारण भूकंप से प्रभावित इलाकों में बचाव के काम पर असर पड़ रहा है। भूकंप का केंद्र रहे गंजियातेप में लोगों का कहना है कि तबाही के 12 घंटे बाद भी उन तक मदद नहीं पहुंची थी।
कुदरती आपदा से बुरी तरह प्रभावित इलाकों में कई परिवारों ने कहा कि बचाव का काम बहुत धीमा है। हमें परिजनों को मलबे से खोद निकालने में कोई मदद नहीं मिल रही है। आपदा से सड़कें टूट जाने के कारण भी दूरदराज के इलाकों तक पहुंचना मुश्किल हो गया है। जो इस विनाशकारी भूकंप झेल चुके हैं। उन्हें बर्फीले मौसम से जूझना पड़ रहा है। (एजेंसियां)