बेंगलुरू (अमृता श्रीवास्तव की रिपोर्ट): क्रिएटिव माइंड साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था ने सृजन श्रृंखला के तहत देश विदेश के विभिन्न कोनों से जुड़े अपने स्थापित रचनाकारों के साथ हाल ही में पहली ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन किया। परिचर्चा को बेंगलुरु के रचनाकार जितेन्द्र तिवारी के नेतृत्व में आयोजित किया गया।
गौरतलब है कि जितेन्द्र पेशे से एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं और साथ ही साहित्य जगत में एक जाना पहचाना नाम हैं। इन्होने बैंगलोर एवं अन्य शहरो में कई कवि सम्मेलनों एवं काव्य गोष्ठियों में शिरकत की हैं। हाल ही में उन्हें इंदौर में आयोजित लफ्ज़-ओ-लिहाज़ युवा कवि सम्मलेन में आमंत्रित किया गया। इसी वर्ष जनवरी में उनकी ग़ज़लें उर्दू अदब की प्रतिष्ठित वेबसाइट रेख़्ता पर भी प्रकाशित की गयी हैं। इसके अलावा बिभिन्न ऑनलाइन प्लेटफार्म पर भी इनकी रचनाएँ सराही गयी है। प्रकाशन की बात करें तो राष्ट्रीय स्तर के कई समाचार पत्रों एवं ऑनलाइन पत्रिकाओं में आये दिन इनकी रचनाओं को स्थान दिया जाता है। अमेज़न पर इनकी कविताओं का साँझा संकलन ‘हौसला’ उपलब्ध है।
परिचर्चा का उद्देश्य
क्रिएटिव माइंड द्वारा शुरू की गयी इस सृजन श्रंखला का उदेश्य रचनाकारों की सृजनात्मक यात्रा को पाठको एवं नवोदित रचनाकारों के सामने लाना हैं जिससे उनकी यात्रा में आये उतार चढ़ाव और प्रेरणादायी प्रसंगो को सुनकर रचनाकार अपने विचारों के आत्ममंथन के लिए प्रेरित हो सके, साथ ही स्थापित रचनाकारों से जुड़कर उनसे कुछ सीखने का अवसर प्राप्त कर सकें। इस परिचर्चा का संचालन डॉ यास्मीन अली के कुशल हाथों में रहा है।
रोचक शुरुआत
साहित्य जगत में अपने पदार्पण का श्रेय वह अपने घनिष्ठ मित्र सोनू गोयल को देते हैं जिनके साथ वे एक काव्य गोष्ठी में दर्शक के रूप में शामिल होने गए। जितेन्द्र जी को जब पता चला कि उस गोष्ठी में दर्शक भी अपनी रचनाएँ प्रस्तुत कर सकते हैं तो उन्होंने अपनी लेखनी की धार को आज़माने का निर्णय लिया। हर मध्यम वर्गीय परिवार का एक सपना होता है कि उसका अपना एक घर हो पर यह सपना पूरा करने के लिए इंसान को होम-लोन रूपी समुन्दर को पार करने के लिए क़िस्त रूपी कश्ती का सहारा लेना पड़ता है। जब जितेन्द्र ने होम-लोन से जूझते इंसान की व्यथा को अपनी रचना के रूप में श्रोताओं के समक्ष प्रस्तुत किया तो तालियों के साथ मिली वाह-वाही ने इन्हें लेखन जगत से अटूट रिश्ते में बांध दिया।
समय का समायोजन जरुरी
“टुकड़ों से चट्टान बनाने लगती है,
रोज नई पहचान बनाने लगती है।
पहले तो इंसान बनाता है आदत,
फिर आदत इंसान बनाने लगती है।”
जितेन्द्र कहते हैं कि “वक़्त में से वक़्त निकालना सीखिए”। एक लेखक के लिए समय का समायोजन करना बहुत जरुरी है ताकि समय का सदुपयोग किया जा सके। उन्होंने दर्शको के सवाल का जवाब देते हुए कहा यदि आप किसी काम को बहुत दिनों से करना चाहते हैं और आपको लगता है कि आप समय की कमी से जूझ रहे हैं तो आपको समय निकालना सीखना होगा, जिसे आप आज से ही शुरू करें, धीरे धीरे यह आपकी आदत बन जाएगी और यह आपको आसान लगने लगेगा।
ज़िंदगी से जुडी घटनाओं पर रखें पैनी नज़र
जितेन्द्र का मानना है कि एक रचनाकार होने के नाते आपकी जिम्मेदारी काफ़ी बढ़ जाती है। एक लेखक का कर्तव्य है कि वह अपने आसपास घटित होने वाली हर घटना पर पैनी नज़र रखे एवं सच और झूठ को न्याय की कसौटी पर परख कर ही जनता के सामने प्रस्तुत करे।
अपनी व्यंग्यात्मक कविताओं तथा ग़ज़लों के माध्यम से आम जनता को जागरूक करना वो अपनी पहली ज़िम्मेदारी मानते हैं। यदि कुछ लोग भी उनकी रचना से प्रभावित होकर देश और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी के प्रति जागरूक होते हैं तो वो इसे अपनी उपलब्धि मानते हैं।
असफलताओं में छिपी है सफलता की कुंजी
नवोदित रचनाकारों से बात करते हुए उन्होंने स्पष्ट किया कि आरंभिक असफलताओं से घबरा कर पीछे न हटें। अपनी गलतियों से सीखना एवं खुद को परिष्कृत करते रहना बहुत ज़रूरी हैं। हमे अपने शब्द-भंडार पर एवं भाषा-ज्ञान पर बहुत मेहनत करनी चाहिए। यदि हम सच्ची लगन एवं ईमानदारी से आगे बढ़ेंगे तो हमारी लेखनी में धार आएगी एवं वांछित सफलताएं अवश्य मिलेंगी ।
सीखने के लिए आज का समय अनुकूल
उन्होंने परिचर्चा में स्पष्ट किया कि आज की पीढ़ी के लिए पुरानी पीढ़ी के मुकाबले कहीं ज्यादा अवसर उपलब्ध है। युवा रचनाकार आधुनिक तकनीक के माध्यम से अपनी स्रजनात्मक अभिव्यक्ति में वृद्धि कर सकते हैं एवं किसी भी भाषा पर अपनी पकड़ आसानी से बना सकते हैं। हमे इसका लाभ उठाना चाहिए। इसके साथ ही अपने वरिष्ठ जनों एवं मित्रों से भी मार्गदर्शन लेते रहें।
कार्यक्रम का समापन
श्री जितेन्द्र तिवारी के साथ हुई यह परिचर्चा सभी श्रोताओं के लिए काफ़ी मददगार साबित हुई। डॉक्टर यास्मीन अली ने कई सामायिक विषयों को इस परिचर्चा में शामिल किया और जितेन्द्र जी के समक्ष आज के नवोदित रचनाकारों के प्रश्न एवं शंकाये रखी जिनके उत्तर उन्होंने बहुत धैर्य के साथ दिए जिससे यह परिचर्चा अपने उदेश्य में सफल होती जान पड़ी। कार्यक्रम का समापन डॉक्टर यास्मीन अली के आभार संदेश के साथ हुआ।