हैदराबाद: ओडिशा में शुक्रवार को हुई ट्रेन हादसे को लोग नहीं भूल पा रहे हैं। अधिकारियों ने कहा कि दुर्घटना में कुछ सेकेंड इधर-उधर होने से हालात काफी बदल सकते थे। दो यात्री ट्रेनों और एक मालगाड़ी की टक्कर में लगभग 300 से ज्या लोग मारे गए हैं। लगभग 900 लोग घायल हो गये। घायलों में कुछ की हालत अब भी गंभीर है। अधिकारियों ने कहा कि केवल चार मिनट के भीतर ही सब कुछ तबाह हो गया।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि शुक्रवार की शाम 6.50 बजे, शालीमार-चेन्नई कोरोमंडल एक्सप्रेस को बहनागा बाजार स्टेशन से गुजर जाना चाहिए था। इसके बाईं ओर लूप लाइन पर एक मालगाड़ी खड़ी रहती। लेकिन पटरियां बदलने वाले रूट रिले इंटरलॉकिंग सिस्टम में कुछ गड़बड़ी थी। नतीजा कोरोमंडल एक्सप्रेस इंटरचेंज से दूसरे ट्रैक पर नहीं गई। लूप लाइन पर खड़ी मालगाड़ी से 128kmph की स्पीड में जा टकराई।
इसके चलते कोरोमंडल का एक कोच दाहिनी ओर गिर गया। उस पटरी पर बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस गुजर रही थी। बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस को यहां से करीब ढाई घंटे पहले ही निकल जाना चाहिए था मगर वह लेट चल रही थी। अगर वह चंद सेकेंड पहले भी निकल जाती तो कई जिंदगियां बच सकती थीं। अगर कुछ सेकेंड और लेट होती तो मौत का आंकड़ा कहीं ज्यादा होता।
संबंधित खबर:
अधिकारी ने कहा कि चार मिनटों में सब कुछ बर्बाद हो गया। शाम 6.52 बजे शालीमार-चेन्नई कोरोमंडल एक्सप्रेस 128 किलोमीटर प्रति घंटा की स्पीड से खन्तापड़ा स्टेशन से गुजरती है। यह बहनागा बाजार स्टेशन से 10 किलोमीटर दूर है। 6.54 बजे कोरोमंडल एक्सप्रेस के लिए चेन्नई जाने वाली मेन लाइन पर सिग्नल होना था। रेलवे कंट्रोल रूम में कंट्रोल पैनल ने कंफर्म किया और रेलवे की जॉइंट इंस्पेक्शन रिपोर्ट भी यही कहती है। 6.55 बजे कंट्रोल सेंटर या केबिन गार्ड के एंड से गड़बड़ी के चलते कोरोमंडल एक्सप्रेस हाई स्पीड में लूप लाइन पर घुसी और वहां खड़ी मालगाड़ी से टकरा गई। 6.56 बजे टक्कर के चलते कोरोमंडल एक्सप्रेस का इंजन मालगाड़ी के ऊपर जा गिरा। कोरोमंडल एक्सप्रेस के 22 कोच बेपटरी हो गए। तीन कोच समानांतर में बनी लाइन पर जा गिरे। 6.56 बजे बगल के ट्रैक पर दूसरी ओर से बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस (12864) गुजर रही थी। ट्रेन के पिछले हिस्से से कोरोमंडल एक्सप्रेस के बेपटरी कोच जा टकराए।
साउथ ईस्टर्न रेलवे के सीपीआरओ आदित्य कुमार चौधरी ने कहा, “कोरोमंडल एक्सप्रेस टाइम पर थी। लेकिन बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस ढाई घंटे लेट थी। यह वाकई में दुखद संयोग रहा।” ईस्टर्न रेलवे के जनरल मैनेजर मनोज जोशी ने समझाया कि अगर बेंगलुरु-हावड़ा ट्रेन टाइम पर चल रही होती या इतनी लेट न होती तो कोरोमंडल एक्सप्रेस के पलटने से काफी पहले गुजर चुकी होती। उन्होंने कहा, “मृतकों की संख्या तब कम होती क्योंकि केवल एक यात्री ट्रेन की मालगाड़ी से टक्कर हुई होती।”
रेलवे सुरक्षा आयुक्त ने मामले की जांच की है। हादसे के कारण का पता लग गया है और इसके लिए जिम्मेदार लोगों की पहचान भी कर ली गई है। इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग में बदलाव के कारण यह दुर्घटना हुई। जोशी ने कहा कि रेल सिस्टम ऐसा है कि अगर दो ट्रेनें टाइम पर हैं तो वे एक-दूसरे को फुल स्पीड में क्रॉस करती हैं। उन्होंने कहा कि यह संयोग ही था कि रिले इंटरलॉकिंग सिस्टम फेल होने के बाद यात्रियों से खचाखच भरी दो ट्रेनों एक-दूसरे के पास से गुजरने वाली थीं।
https://twitter.com/ramasek53650396/status/1665202864749449216?ref_src=twsrc%5Etfw%7Ctwcamp%5Etweetembed%7Ctwterm%5E1665202864749449216%7Ctwgr%5Ee740b162cb98eb8a4b0090946467e589adf113eb%7Ctwcon%5Es1_&ref_url=https%3A%2F%2Fpublish.twitter.com%2F%3Fquery%3Dhttps3A2F2Ftwitter.com2Framasek536503962Fstatus2F1665202864749449216widget%3DTweet
जोशी ने कहा, “नहीं तो ड्राइवर को ब्रेक लगाने, डिस्ट्रेस सिग्नल भेजने के लिए लाइट फ्लैश करने का वक्त मिल जाता। मिनटों या सेकेंडों का अंतर दूसरी ट्रेन को बचा लेता या अगर मालगाड़ी का ड्राइवर अलर्ट होता, उसे अपने लोको से फ्लैशर लाइट जलाने का वक्त मिल जाता तो हादसे की भयावहता को कम किया जा सकता था।”
ट्रेन जानकार भास्कर ने कहा कि मृतकों की संख्या कहीं ज्यादा होती अगर ट्रेन में जर्मनी के बने एलएचबी कोच न लगे होते। यह कोच हल्के होते हैं और इन्हें अधिकतम 160kmph की स्पीड से चलाया जा सकता है। इनमें डिस्क ब्रेक और एंटी-क्लाइमिंग जैसे फीचर्स होते हैं। भास्कर ने कहा, “इससे मौत और चोटों का खतरा कम होता है। परंपरागत इंटीग्रल फैक्ट्री कोच में ये सेफ्टी फीचर नहीं होते। इसके अलावा एलएचबी कोच में खिड़की का साइज बड़ा होता है। वह भी एक तरह का सेफ्टी फीचर है।”