हैदराबाद: महर्षि दयानंद मार्ग सुलतान बाजार स्थित आर्यसमाज में रविवार को दिवंगत श्रीमती सुखदा जी के आत्मा को शांति प्रदान करने की प्रार्थना हेतु शोकसभा का आयोजन किया गया। साप्ताहिक यज्ञ के पश्चात शोकसभा का आयोजन किया गया। आपको बता दें कि सुखदा जी का 28 जून को आकस्मिक निधन हो गया था।
शोकसभा की अध्यक्षता पंडित प्रियद्त्तजी शास्त्री जी ने किया। श्रीमती सुखदा जी, स्वतंत्रता सेनानी, वर्णाश्रम पत्रिका के संपादक और हैदराबाद मुक्ति संग्राम में आर्यसमाज का नेतृत्व करनेवाले स्वर्गीय पंडित गंगाराम जी वानप्रस्थी एवम् स्वर्गीय श्रीमती इंद्राणी देवीजी की बहु है।
सभा के पहले श्रीमती सुखदाजी के बहुओं- श्रीमती सुचित्रा चंद्र, श्रीमती कुमुद ने मिलकर ‘एक कल्पना’ कविता का गायन किया। यह गीत स्व सुखदाजी ने लिखी थी। यह गीत प्रो धर्मवीर जी ने अपनी पत्रिका ‘परोपकारी’ में अक्तूबर प्रथम 2014 में प्रकाशित की थी।
इस शोकसभा में अनेक वक्ताओं ने सुखदा के साथ बिताये अपने अनुभव साझा किया। साथ ही उनकी आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना की। कार्यक्रम में उपस्थित श्रीमान रतनलाल जाजू जिन्होंने 29 मई 2022 को अपनी आयु कें सौ वर्ष पूर्ण किए। कहा कि सुखदा की निधन से उन्हें गहरा सदमा हुआ। स्व सुखदा जी एवं भक्तराम जी कई बार उनके साथ कुछ पल बिताने तथा उनसे आशीर्वाद लेने पहुंच जाते थे। मुंबई हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस (Retd) नरेशजी पाटील ने भी भक्तरामजी और परिवार से मिलकर अपनी संवेदनाएं प्रकट की।
इस अवसर पर आर्यसमाज सुलतान बाजार के मंत्री डॉ प्रताप रुद्रजी ने श्रद्धा सुमन अर्पित किए। श्रीमान सुरेंद्रजी आर्य ने स्व श्रीमती सुखदाजी एवं भक्तरामजी के आर्यसमाज के प्रति निरंतर योगदान को याद किया। श्रीमती विभा भारतीजी ने कहा की हमे मृत्यु का वैदिक ज्ञान होते हुए भी अपनों का असमय जाना झकझोर देता है। श्रीमान श्रुतिकांत जी ने उनके बचपन में स्व गंगारामजी के घर बिताए क्षणों को याद किया। डॉ धर्म तेजाजी ने उनके योगमय जीवन को याद किया।
डॉ विद्याधरजी ने उनके विद्यार्थी जीवन में स्व गंगारामजी के साथ के पलों को याद किया। प्रिंसिपल सविता तिवारीजी ने कहा कि स्व सुखदाजी एक आदर्श व्यक्तिमत्व थी। आयुर्वेद का ज्ञान भी रखती थी तथा उनसे बहुत कुछ सिखने जैसा था।
श्रीमान सुबोध जी उदगीर महाराष्ट्र उन्होंने भावुक होकर उनकी बातों को याद किया। श्रीमती मैत्रेयी जी कहा कि हम आदर्श किताबों में ढूंढते हैं परंतु एक आदर्श जीवनशैली अपने आंखों के सामने थी।
तत्पश्चात प्रियदत्त शास्त्री ने कर्मफल पर आधारित भजन प्रस्तुत किया एवं मृत्यु पर वैदिक मान्यताओं पर भाष्य किया।
शांतिपाठ कर शोकसभा का समापन हुआ।