हैदराबाद (डॉ जयशंकर यादव की की रिपोर्ट) : केंद्रीय हिंदी संस्थान, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद, विश्व हिंदी परिवार (सचिवालय) के संयुक्त तत्वावधान में वैश्विक हिन्दी परिवार द्वारा अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के उपलक्ष्य में देश- विदेश के रचनाकारों का ‘भारतीय भाषाओं में रचना पाठ’ का महत्वपूर्ण कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ जगदीश व्योम ने सभी रचनाकारों को समादर देते हुए कहा कि लोक साहित्य में संस्कृति बसती है और बोलियों से ही शब्दावली बनती है। हमें लुप्त होते शब्दों का संरक्षण और भाषाओं का संवर्धन करना चाहिए। उन्होने कन्नौजी-बुन्देली और आल्हा का विशेष रूप से उद्धरण दिया और आवाहन किया कि आइये हम सब भाषा की संपदा को बचाएँ।
मुख्य अतिथि के रूप में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव अतुल कोठारी ने शुभ कामनाएँ देते हुए मातृभाषा में शिक्षा की महत्ता को रेखांकित किया और विशेष रूप से भारतीय भाषाओं पर मंडरा रहे संकट से उबरने के लिए क्रमिक विकास की आंचलिक परियोजनाओं की निहायत जरूरत बताई। इस अवसर पर अनेक देशों के साहित्यकार, विद्वान-विदुषी, प्राध्यापक, शोधार्थी और भाषा प्रेमी आदि जुड़े रहे।
आरम्भ में रेलवे बोर्ड के राजभाषा निदेशक डॉ बरुण कुमार द्वारा मातृभाषा और इस दिवस की सारगर्भित संक्षिप्त पृष्ठभूमि प्रस्तुत की गई और सबका आत्मीयतापूर्वक स्वागत किया गया। तत्पश्चात सिंगापुर से पत्रकार एवं साहित्यकार श्रीमती आराधना झा श्रीवास्तव ने अपनी मधुर व स्पष्ट वाणी और सधे शब्दों में मर्यादित ढंग से संचालन का बखूबी दायित्व संभाला।
ज्ञातव्य है कि 21 फरवरी 1952 को ढाका में हुए भाषा आंदोलन में शहीद नौजवानों ने दुनियाँ को झकझोर दिया जिसमें विभाजन के बाद पूर्वी पाकिस्तान में उर्दू के स्थान पर बांग्ला लागू करने की मांग की गई थी। अतएव कालांतर में पुरजोर मांग पर संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मान्यता दी गई। बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न मैथिली कवयित्री आराधना ने बारी-बारी रचनाकारों का संक्षिप्त परिचय देते हुए सहज भाव से सादर रचना पाठ हेतु आमंत्रित किया।
आस्ट्रेलिया से जुड़े कन्नौजी साहित्यकार डॉ सुभाष शर्मा ने भारत से विछोह पर ‘सौतेली माँ’ शीर्षक से वेदनायुक्त रचना सुनाई और दूसरी रचना में सस्वर आल्हा रूप में ‘सर्जिकल स्ट्राइक’का वीर रस में वर्णन कर जोश से भर दिया। संयुक्त अरब अमीरात से मलयालम कवयित्री लता रजित ने मातृभाषा की पुकार और माँ की लोरीयुक्त रचना सुनाकर भाव विभोर कर दिया। उनकी रचना में संस्कृतनिष्ठ शब्दों ने मन मोह लिया।
ब्रिटेन से जुड़ीं तेलुगू कवयित्री एवं नृत्यांगना डॉ रागसुधा विंजमूरी द्वारा मातृभाषा की शोभा का बखान करते हुए पंच परमेश्वर और सात समुंदर पार जैसी अंकीय शैली और मीठी वाणी में भावपूर्ण कविता प्रस्तुत की गई। अपनी हरियाणवी रचना में कवि नवल पाल प्रभाकर ‘दिनकर’ ने ‘म्हारा हरियाणा प्यारा, भारत में न्यारा’ शीर्षक से हरियाणा की भूमि और धरती पुत्रों की वीरता की प्रशंसा की। उन्होने अपनी दूसरी रचना में हरियाणा की होली में देवर -भाभी के कथोपकथन रूप को सुनाकर आंचलिकता की छाप छोड़ी।
यूनाइटेड किंग्डम से बांग्ला कवयित्री मौसोमा सिन्हा ने साहित्यकार पूर्णेन्दु पत्री की प्रेम पर आधारित मनभावन रचना सुनाई। सऊदी अरब से कवयित्री आरती बिमल परीख द्वारा गुजराती में ‘आध्यात्मिक कविता’ का सुंदर ढंग से वाचन किया गया। उन्होने अपनी कविता में आत्मावलोकन, आत्मविश्लेषण, आत्मनिरीक्षण और आत्मचिंतन तथा निजदोषदर्शन हेतु विवश किया। सुधी श्रोताओं के आग्रह पर कार्यक्रम का सुचारु रूप से धारा प्रवाह संचालन कर रहीं मैथिली कवयित्री आराधना झा श्रीवास्तव द्वारा मातृभाषा में ‘किछ जोड़े किछ छोड़े ‘की सार्थकता सिद्ध की गई तथा मानवीय सम्बन्धों की भाषाई गहराई का एहसास कराया गया।
शिकागो से तमिल कवयित्री श्रीमती राजलक्ष्मी कृष्णन ने माँ के बिना हम अधूरे हैं शीर्षक से रचना सुनाई और तमिल में लयबद्ध रूप में देवी माँ की कृपा बनी रहने हेतु प्रार्थना की। तमिलनाडु में प्रायः अपनी भाषा तमिल को देवी रूप में संज्ञा दी जाती है। अपनी ओडिया रचना में कवयित्री धरित्री प्रियदर्शनी ने अनेकता में एकता का दर्शन कराते हुए मातृभूमि और मातृभाषा को सँजोये एक- अनेक शीर्षक से समां बाँधा। पंजाबी कवि नलिन शारदा ने पंजाब दी गल निराली शीर्षक वाली कविता में पंजाब का बखान किया। भोजपुरी कवयित्री श्रीमती अलका सिन्हा ने मातृभाषा को नाभिनाल ने जोड़ते हुए भोजपुरी में बेटी बचाओ और बढ़ाओ का सदेश देती संतोषी बेटी की रचना हमार अनुकृति सुनाकर भाव विह्वल कर दिया।
वैश्विक हिन्दी परिवार के अध्यक्ष एवं कवि अनिल जोशी ने सभी रचनाकारों की प्रशंसा करते हुए कहा कि भारत में भाषा सहोदरी और समानताओं के यत्र तत्र सर्वत्र दर्शन होते हैं। हमारी भाषाएँ जन मन में व्याप्त हैं। ये केवल शब्दकोशों में समाहित नहीं हैं। निश्चय ही पहला मोर्चा भाषा का है। उन्होंने अपनी उदवेलित करने वाली रचना सुनाई-हैरान परेशान ये हिंदोस्तान है ये होठ तो अपने हैं,पर किसकी जुबान है? हँसकर मेकाले ने कल हमसे जब पूछा, तलवार तुम्हारी है, पर किसकी म्यान है? अमेरिका से भाषाशास्त्री आचार्य सुरेन्द्र गंभीर ने कहा कि हमें मातृभाषा के सतही ज्ञान की नहीं बल्कि गहन ज्ञान की निहायत जरूरत है। अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के मानद निदेशक डॉ नारायण कुमार ने देसिल बयना सब जन मिट्ठा की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए मातृभाषा को पीयूष पान की संज्ञा दी।
कार्यक्रम में अमेरिका से अनूप भार्गव, मीरा सिंह, यूके की साहित्यकार सुश्री दिव्या माथुर, शैल अग्रवाल, अरुणा अजितसरिया, रूस से प्रो म्यूद्विला, चीन से प्रो विवेक मणि त्रिपाठी, सिंगापुर से प्रो संध्या सिंह, कनाडा से शैलेजा सक्सेना, खाड़ी देश से आरती लोकेश, थाइलैंड से प्रो शिखा रस्तोगी तथा भारत से साहित्यकार भगवती प्रसाद निदारिया, शशिकला त्रिपाठी, रामचन्द्र स्वामी, प्रो दीपमाला, प्रो राजेश गौतम, राजू मिश्रा, संध्या सिलावट, हरीराम पंसारी, एस आर अतिया, विजय नगरकर, किरण खन्ना, प्रबोध मल्होत्रा, सावित्री मंधारे, ऊषा गुप्ता, नीलिमा, परमानंद त्रिपाठी, अरविंद शुक्ल, प्रेम वीरगो, संजय आरजू, सुषमा देवी, पूनम सापरा, ऊषा सूद, मधु वर्मा, के एन पाण्डेय, रश्मि वार्ष्णेय, डालचंद, महबूब अली, सत्य प्रकाश, सोनू कुमार, अंजलि, वंदना, कविता, सरोज कौशिक, ऋषि कुमार, परशुराम मालगे, विनय शील चतुर्वेदी, जितेंद्र चौधरी, स्वयंवदा एवं अनुज आदि सुधी श्रोताओं की गरिमामयी उपस्थिति रही।
तकनीकी सहयोग का दायित्व कृष्णा कुमार द्वारा बखूबी संभाला गया। इस अवसर पर अनेक शोधार्थी उपस्थित थे। समूचा कार्यक्रम विश्व हिन्दी सचिवालय, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद, केंद्रीय हिन्दी संस्थान, वातायन और भारतीय भाषा मंच के सहयोग से वैश्विक हिन्दी परिवार के अध्यक्ष अनिल जोशी के मार्गदर्शन और सुयोग्य समन्वयन में संचालित हुआ। अंत में आत्मीयता से नामोल्लेख सहित माननीय अध्यक्ष, मुख्य अतिथि, वक्ताओं, संरक्षकों, संयोजकों और कार्यक्रम सहयोगियों आदि को धन्यवाद दिया गया। समूचा कार्यक्रम मातृभाषा की महत्ता से ओतप्रोत था। यह कार्यक्रम वैश्विक हिन्दी परिवार शीर्षक से यू ट्यूब पर उपलब्ध है।