“हां, मैं गजवेल के साथ-साथ कामारेड्डी विधानसभा से भी चुनाव लड़ रहा हूं। कोई सवाल करता है कि क्यों सर? उनको मेरा जवाब है- पार्टी ने यह फैसला लिया है। पार्टी को दिक्कत नहीं है तो आपको क्या तकलीफ है?” प्रगति भवन में बीआरएस उम्मीदवारों की सूची जारी करने के दौरान बीआरएस के अध्यक्ष और तेलंगाना के सीएम केसीआर ने यह टिप्पणियां कीं। केसीआर की योजना के मुताबिक, वह इस बार दो सीटों से चुनाव लड़ेंगे। विपक्ष कह रहे है कि केसीआर के दो जगह से चुनाव लड़ने का हार के डर से लिया गया फैसला है। कुल मिलाकर देखा जाये तो गजवेल से हार का विकल्प ही कामारेड्डी है। आइए कुछ पल के लिए इस बात को बाजू में रखते है।
“అవును, నేను గజ్వేల్తో పాటు కామారెడ్డి అసెంబ్లీ నుండి కూడా పోటీ చేస్తున్నాను. ఎవరో ఎందుకు సార్ అని అడిగారు? వారికి నా సమాధానం – పార్టీ ఈ నిర్ణయం తీసుకుంది. పార్టీకి ఇబ్బంది లేకపోతే మీ సమస్య ఏమిటి?” ప్రగతి భవన్లో బీఆర్ఎస్ అభ్యర్థుల జాబితా విడుదల సందర్భంగా బీఆర్ఎస్ అధ్యక్షుడు, తెలంగాణ సీఎం కేసీఆర్ ఈ వ్యాఖ్యలు చేశారు. కేసీఆర్ ప్లాన్ ప్రకారం ఈసారి రెండు స్థానాల్లో పోటీ చేయనున్నారు. ఓటమి భయంతోనే కేసీఆర్ రెండు స్థానాల్లో పోటీ చేయాలని నిర్ణయించుకున్నారని విపక్షాలు చెబుతున్నాయి.”
दोनों सीटों पर जीत गये तो क्या होगा?
सबसे मुख्य सवाल है कि अगर केसीआर इस चुनाव में कामारेड्डी और गजवेल यानी दोनों सीटों पर जीत गये तो क्या होगा? क्या गजवेल छोड़ेंगे या कामारेड्डी छोड़ेंगे? इस विषय को लेकर बीआरएस हलकों में अब यही बड़ी बहस चल रही है। अगर कामारेड्डी को छोड़ते है तो वहां से कौन चुनाव लड़ेगा? अगर गजवेल विधायक पद से इस्तीफा दे देते हैं तो आगे क्या होगा? यह लाख टके का सवाल सब के मन में है।
गजवेल छोड़कर कामारेड्डी क्यों
केसीआर के राजनीति में आने के बाद 1983 में पहली बार सिद्दीपेट निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ा और हार गए। 1985 में केसीआर ने सिद्दीपेट निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। तब से केसीआर कभी नहीं हारे। उन्होंने क्रमशः 1989, 1995 और 1999 में सिद्दीपेट निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव जीता। 2001 में टीआरएस पार्टी की स्थापना के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया और उसी निर्वाचन क्षेत्र से उपचुनाव जीता। उन्होंने 2004 का चुनाव सिद्दीपेट से जीता। 2006 में करीमनगर के सांसद के रूप में चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। 2008 में भी वे विधायक के तौर पर जीते। 2009 में महबूबनगर से सांसद के रूप में जीत हासिल की। 2014 में उन्होंने गजवेल से चुनाव लड़ा और मुख्यमंत्री बन गये। उन्होंने 2018 में भी वहीं से चुनाव लड़ा।
केसीआर के गढ़
नतीजतन, उधर सिद्दीपेट और इधर गजवेल दोनों विधानसभा सीटें तब से केसीआर के गढ़ रहे हैं। हालांकि, केसीआर अगले विधानसभा चुनाव में गजवेल के साथ कामारेड्डी निर्वाचन क्षेत्र से भी चुनाव लड़ रहे हैं। बीआरएस हलकों में चर्चा है कि केसीआर को लग रहा है कि अगर वह कामारेड्डी से चुनाव लड़ते हैं तो वह संयुक्त निज़ामाबाद जिले में क्लीन स्वीप कर सकते हैं, क्योंकि यहां से बीआरएस के अध्यक्ष चुनाव लड़ रहे हैं। इसके अलावा, कामारेड्डी निर्वाचन क्षेत्र के कोनापुर केसीआर का पैतृक गांव है।
अगर गजवाल को छोड़ना पड़े तो…
केसीआर ने कहा है कि वह दो निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ेंगे। एक सीएम के रूप में वह दोनों निर्वाचन क्षेत्रों में प्रतिष्ठा के रूप में लेकर जीत भी जाएंगे। इसके बारे में कोई संदेह नहीं है। लेकिन सवाल है कि दोनों सीटों पर जीतने के बाद क्या होगा? क्या केसीआर उनका गढ़ कहे जाने वाले गजवेल को छोड़ेंगे या वैकल्पिक माने जाने वाले कामारेड्डी को छोड़ंगे? कोई एक तो छोड़ना तो तय है। बीआरएस नेताओं, कार्यकर्ताओं और प्रशंसकों से अब सवाल है आ रहे हैं कि उस निर्वाचन क्षेत्र से कौन चुनाव लड़ेगा?
ओंटेरु प्रताप रेड्डी
चर्चा है कि अगर गजवेल को छोड़ दिया जाए, तो ओंटेरु प्रताप रेड्डी को टिकट आवंटित किए जाने की अच्छी संभावना है। प्रताप रेड्डी एक बार केसीआर के खिलाफ चुनाव लड़ा था और हार गए थे। इसके बाद बीआरएस में शामिल हो गये। अब तेलंगाना वन निगम के अध्यक्ष है। क्योंकि उस निर्वाचन क्षेत्र में बीआरएस का कोई नेता नहीं है। उन्होंने 2014 और 2018 के चुनावों में केसीआर के खिलाफ कड़ी टक्कर दी थी। 2014 के चुनाव में प्रताप रेड्डी ने टीडीपी की ओर से चुनाव लड़ा था, लेकिन केसीआर महज 19,391 वोटों के अंतर से जीत गए थे। वोटों की गिनती के दिन लग रहा था कि केसीआर की हार होगी। इसके चलते केसीआर ने 2014 के चुनावों में सावधान हो गये।
प्रताड़ रेड्डी पर जीत
2018 के चुनावों के लिए कड़ी योजना बनाई और प्रताड़ रेड्डी पर 58,290 के बहुमत से जीत हासिल की। उसके बाद ओन्टेरू को पार्टी में शामिल करवा लिया औ महत्वपूर्ण पद पर बिठा दिया। अब केसीआर के निर्वाचन क्षेत्र की हर चीज का प्रताप रेड्डी ख्याल रख रहे हैं। इसलिए ऐसी चर्चा है कि अगर केसीआर यहां से इस्तीफा देना पड़ा तो प्रताप रेड्डी को एक मौका दिया जाएगा।
अगर कामारेड्डी में जीत गए तो आगे क्या होगा?
दो सीटें जीतने के बाद अगर केसीआर का गढ़ कहे जाने वाले गजवेल छोड़ने को तैयार नहीं हुए तो कामारेड्डी के विधायक पद से इस्तीफा देना होगा। उपचुनाव हुआ तो किसे मैदान में उतारा जाएगा? क्या गंपा गोवर्धन को दोबारा टिकट देंगे या अन्य किसी व्यक्ति को टिकट देंगे। इस पर अनेक संदेह है। बीआरएस गलियार में चर्चा है कि अगर कामारेड्डी को छोड़ना पड़ा तो अवश्य गोवर्धन को टिकट दिया जाएगा और उन्हें कैबिनेट में भी शामिल किया जाएगा।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म
क्योंकि केसीआर के लिए अपना गोवर्धन ने सीट का त्याग किया था। अगर कामारेड्डी नहीं छोड़ा गया तो गोवर्धन को एमएलसी बनाकर विधान परिषद भेजा जाएगा। यानी गंपा गोवर्धन को विधायक का टिकट मिला तो मंत्री या नहीं मिला तो एमएलसी बनेंगे। कुल मिलाकर गोवर्धन विधानसभा में रहेंगे। इस समय गजवेल और कामारेड्डी को लेकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इन मुद्दों पर बड़े पैमाने पर चर्चा हो रही है।
ईटेला राजेंदर
इस समय यह भी चर्चा है कि पूर्व मंत्री और वरिष्ठ नेता ईटेला राजेंदर इस बार गजवेल से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे। पता चला है कि दिल्ली हाईकमान ने भी इसके लिए हरी झंडी भी दे दी है। वहीं कामारेड्डी सीट पर कांग्रेस की ओर से वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री शब्बीर अली चुनाव लड़ेंगे। शब्बीर अली 2014 के चुनाव में 18,683 वोट और 2018 में 5,007 वोटों के अंतर से गंपा गोवर्धन से गए थे। इस चुनाव में केसीआर के खिलाफ उधर गजवेल और इधर कामारेड्डी से कौन चुनाव लड़ेंगे? जीतने के बाद केसीआर क्या फैसला लेंगे इस पर सबकी दिलचस्पी है। हमें इंतजार करना होगा और देखना होगा कि आगे क्या होता है।