हैदराबाद : (डॉ जयशंकर यादव की रिपोर्ट) केंद्रीय हिंदी संस्थान, विश्व हिंदी सचिवालय, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद वातायन तथा भारतीय भाषा मंच के संयुक्त तत्वावधान में वैश्विक हिंदी परिवार द्वारा साप्ताहिक गोष्ठी के अंतर्गत ‘होली के अवसर पर व्यंग्य विशेष कार्यक्रम’ आभासी पटल पर आयोजित किया गया। रंगोत्सव होली की पूर्व संध्या पर वैश्विक हिंदी परिवार द्वारा रविवारीय कार्यक्रम में डॉ ज्ञान चतुर्वेदी को प्राप्त प्रतिष्ठित व्यास और वनमाली सम्मान के उपलक्ष्य में अभिनंदन और व्यंग्य पठन कार्यक्रम आयोजित किया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता के दौरान वरिष्ठ साहित्यकार सूर्यबाला ने सभी रचनाकारों को सौरमण्डल की संज्ञा देते हुए पैनी रचनाएँ सुनाने पर प्रशंसा की। उन्होने पद्मश्री से सम्मानित डॉ ज्ञान चतुर्वेदी को व्यंग्य का मिलखा सिंह और आधुनिक युग को ज्ञान चतुर्वेदी युग कहने पर सहमति देते हुए गर्व प्रकट किया। सूर्यबाला जी ने ज्ञान जी को अपने कर-कमलों से तीन बार शीर्षस्थ पुरस्कार देने पर हर्ष प्रकट किया। उन्होने कहा कि व्यंग्यकार बहुत गहरा सोचता है। ज्ञान जी चिकित्सा के जीवनदायी नुश्खे लिखते हुए बुलेट प्रूफ बेमिसाल योद्धा की तरह डटे हैं। उनके द्वारा नास्टेल्जिया उआ जन्म भूमि के प्रति ललक पर आधारित जहाज के किराये से संबन्धित अपना पुराना व्यंग्य सुनाकर व्यवस्था पर कटाक्ष किया गया। इस अवसर पर अनेक देशों के साहित्यकार, विद्वान-विदुषी,प्राध्यापक, शोधार्थी और भाषा प्रेमी आदि जुड़े थे।
अपने सम्मान के प्रतियुत्तर में डॉ ज्ञान चतुर्वेदी ने सभी के प्रति आभार प्रकट करते हुए कहा कि तारीफ़ें सुनना दुधारी तलवार सा है जो बचाती और काटती भी है। हम निहितार्थ समझकर अच्छे की पीठ थपथपाएँ। कमजोर रचना लेखक की कमजोरी है। कभी-कभी तारीफ़ों में कहे गए शब्द खोखले होते हैं जिनसे हमें बचना चाहिए। आज का समय जल्दबाज़ी का है। उपन्यास लिखना अपेक्षाकृत कठिन होता है। उन्होने अपनी किताब ‘एक तानाशाह की प्रेम कथा’ को संतोषजनक रचना माना और इसके अंत पर प्रसन्नता प्रकट की।
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भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित ज्ञान जी ने कहा कि सत्तर वर्ष की उम्र में प्रेम पर लिखना कठिन है। किसी को ज्यादा प्रेम करने पर वह तानाशाह सा हो जाता है। उन्होने बताया कि उनके पटकथा लेखन पर दो फिल्में आने वाली हैं तथा साधुओं के जीवन पर भी लेखन कार्य कर रहे हैं। उनके द्वारा युवा लेखकों को तिकड़मी रचनाकारों और सस्ती लोकप्रियता से बचने की सलाह दी गई।
आरम्भ में भोपाल से हिंदी साहित्यकार डॉ जवाहर कर्नावट द्वारा सारगर्भित संक्षिप्त पृष्ठभूमि सहित सबका आत्मीयतापूर्वक स्वागत किया गया। तत्पश्चात जयपुर से व्यंग्यकार एवं उद्घोषक प्रभात गोस्वामी ने अपनी मधुर व स्पष्ट वाणी और सधे शब्दों में मर्यादित ढंग से संचालन का बखूबी दायित्व संभाला गया। उन्होंने बारी-बारी व्यंग्यकारों का संक्षिप्त परिचय देते हुए प्रस्तुति हेतु आमंत्रित किया।
दिल्ली से जुड़े व्यंग्यकार डॉ राजेश कुमार ने होली की ठिठोली में ‘चुनाव का साल और होली का गुलाल’ शीर्षक से तुलनात्मक रचना सुनाकर व्यंग्य साधा और एकरूपता के साथ प्रहार किया। कनाडा से श्री धर्मपाल महेंद्र जैन ने व्यंग्य के अखाड़े के उस्तादों को नमन करते हुए ‘शब्द की कसरत’ शीर्षक से कलाबाजियाँ कराईं और व्यंग्यकारों को भाषा सुधारने की सलाह दी। व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन ने ‘मकान की डिजाइन, आर्किटेक्ट और नल की टोंटी’ के अदृश्य और न समझ आने वाले कार्य का उदाहरण देते हुए व्यवस्था पर चोट की और संभलकर चलने की सलाह दी। अगले चरण में रायपुर से संपादक गिरीश पंकज ने ‘देश के विकास में पियक्कड़ों का योगदान’ शीर्षक से सुबह और शाम, जो भरते हैं जाम, उनकी दशा और दिशा पर व्यंग्य कसा तथा भ्रामक तथ्यों से परे व आधारहीन बातों से बचने की सलाह दी।
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वैश्विक हिंदी परिवार के अध्यक्ष एवं व्यंग्यकार अनिल जोशी ने सम्मानित किए गए साहित्यकार डॉ ज्ञान चतुर्वेदी का सबकी ओर से अभिनंदन किया तथा व्यंग्य के शलाका पुरुष डॉ प्रेम जनमेजय को 75वें जन्म दिन की बधाई दी। उन्होने व्यंग्य के क्षेत्र में नामचीन हस्तियों की उपस्थिति पर हर्ष प्रकट किया। श्री जोशी जी ने ‘मैच फिक्सिंग’ शीर्षक से व्यंग्य सुनाते हुए भ्रष्टाचार के विषाक्त माहौल पर प्रहार किया जो केवल क्रिकेट तक ही नहीं बल्कि भर्ती और नौकरी आदि अनेक क्षेत्रों में व्याप्त है। कार्यक्रम का संचालन कर रहे व्यंग्यकार श्री प्रभात गोस्वामी ने ‘क्रिकेटर का प्रेम’ शीर्षक से व्यंग्य सुनाया और रोमांस के मायाजाल से बचने की सलाह दी।
दशकों से ‘व्यंग्य पत्रिका’ का सम्पादन कर रहे व्यंग्यकार डॉ प्रेम जनमेजय ने अपने पचहत्तरवें जन्म दिन की बधाई स्वीकार करते हुए कृतज्ञता प्रकट की। उन्होने ‘प्रजातन्त्र का कृपा काल’ शीर्षक से कवितामय उक्तियों वाला सशक्त व्यंग्य सुनाया। उनका कहना था कि प्रजातन्त्र बिना कृपा तंत्र के नहीं चलता। तुम मुझे वोट दो मैं तुम्हें कृपा दूंगा। चुनाव की दुपहरी में भी आंधी चलती है। उसमें भी साकार और निराकार रूप निहित हैं। इसलिए हमें शतरंज के पैदल सिपाही की तरह बचकर बाहर निकल जाना चाहिए। राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत व्यंग्यकार डॉ हरीश नवल ने ‘तुसी करदे की हो’ यानी तुम करते क्या हो शीर्षक से व्यंग्य सुनाकार प्राध्यापको और साहित्यकारों की सामाजिक हेय समझे जाने वाली स्थिति पर प्रहार किया जिसे सुनने के बाद धूल झाड़कर चल देने के सिवा किसी के पास कोई विकल्प नहीं था।
कार्यक्रम में अमेरिका से अनूप भार्गव, मीरा सिंह, यूके की साहित्यकार सुश्री दिव्या माथुर, शैल अग्रवाल, अरुणा अजितसरिया, आशा बर्मन, रूस से प्रो म्यूद्विला, अल्पना दास, सरोज शर्मा, चीन से प्रो विवेक मणि त्रिपाठी, सिंगापुर से प्रो संध्या सिंह, कनाडा से शैलेजा सक्सेना, थाइलैंड से प्रो शिखा रस्तोगी तथा भारत से साहित्यकार नारायण कुमार, भगवती प्रसाद निदारिया, शशिकला त्रिपाठी, सत्येंद्र सिंह, कृष्णा नन्द पाण्डेय, बिप्लव चौधरी, राज कुमार शर्मा, प्रो राजेश गौतम, माधुरी क्षीरसागर, संध्या सिलावट, हरीराम पंसारी, एस आर अतिया, प्रबोध मल्होत्रा, अंकित अग्रवाल, ऊषा गुप्ता, नीलिमा, परमानंद त्रिपाठी, अरविंद शुक्ल, संजय आरजू, सुषमा देवी, पूनम सापरा, ऊषा सूद, रश्मि वार्ष्णेय, डालचंद, सत्य प्रकाश, सोनू कुमार, अंजलि, वंदना, कविता, सरोज कौशिक, ऋषि कुमार, विनय शील चतुर्वेदी, जितेंद्र चौधरी, स्वयंवदा एवं अनुज आदि सुधी श्रोताओं की गरिमामयी उपस्थिति रहीं।
तकनीकी सहयोग का दायित्व कृष्णा कुमार द्वारा बखूबी संभाला गया। समूचा कार्यक्रम विश्व हिंदी सचिवालय, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद,कें द्रीय हिंदी संस्थान, वातायन और भारतीय भाषा मंच के सहयोग से वैश्विक हिंदी परिवार के अध्यक्ष श्री अनिल जोशी के मार्गदर्शन और सुयोग्य समन्वयन में संचालित हुआ। अंत में माननीय अध्यक्ष, अतिथिवक्ताओं, संरक्षकों, संयोजकों और कार्यक्रम सहयोगियों आदि को धन्यवाद दिया गया। समूचा कार्यक्रम होली के हास्य और लास्य से ओतप्रोत जीवन तरंगों से उल्लासित था। यह कार्यक्रम “वैश्विक हिंदी परिवार शीर्षक” से यू-ट्यूब पर उपलब्ध है।