[नोट- इस लेख में व्यक्त विचार लेखिका सरिता सुराणा जी के हैं। इस पर संपादक का सहमत होना आवश्यक नहीं है।]
तीनों सेनाओं में सैनिकों की भर्ती के लिए केंद्र सरकार की नई अग्निपथ योजना के खिलाफ आज सैकड़ों प्रदर्शनकारी, जिनमें से अधिकांश के चेहरे रूमाल से ढके हुए थे, शुक्रवार सुबह लगभग 9 बजे सिकंदराबाद रेलवे स्टेशन पर इकट्ठे हो गए। वे नई योजना की जगह लंबी अवधि की सेना भर्ती की मांग को लेकर हिंसा और आगजनी पर उतारू हो गए। प्रदर्शनकारियों ने तीन ट्रेनों और कई स्टालों को आग के हवाले कर दिया, ट्रेनों में तोड़फोड़ की, दोपहिया वाहनों, लकड़ी के बक्से, कचरे के डिब्बे, रेलवे पोर्टर्स के व्हीलबैरो को नुकसान पहुंचाया और साथ ही पार्सल कार्यालय से सामानों को भी चुराया।
प्रदर्शनकारियों ने प्लेटफॉर्म नंबर 1 और 10 पर कार्यालयों को भी क्षतिग्रस्त कर दिया, कंप्यूटर और इलेक्ट्रॉनिक्स में तोड़फोड़ की, सभी 10 प्लेटफाॅर्मों पर सीसीटीवी कैमरे, लाइट और पंखे नष्ट कर दिए और पुलिस पर पथराव किया। सभी प्लेटफाॅर्मों पर भोजन और सुविधा स्टालों को भी लूट लिया और आग लगा दी। जैसे ही प्रदर्शनकारियों ने इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव इंजन में घुसने की कोशिश की तो रेलवे अधिकारियों को मजबूरन रेलवे स्टेशन की बिजली काटनी पड़ी।
निश्चित रूप से ऐसा एक सोची-समझी साजिश के तहत किया गया। भारतीय सेना में कठोर अनुशासन का पालन किया जाता है, ऐसे में अगर सेना में भर्ती के इच्छुक उम्मीदवार इस तरह हिंसा, तोड़फोड़ और आगजनी करके राष्ट्रीय सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाएं और आम यात्रियों को परेशान करके उनके जान-माल को क्षति पहुंचाएं तो इसे क्या कहा जाएगा?
संबंधित खबर :
हमारी सेना के जवान, जो कठिन से कठिन परिस्थितियों में हमारी रक्षा करते हैं, क्या उसमें भर्ती होने के इच्छुक उम्मीदवारों से हम ऐसी अनुशासनहीनता की अपेक्षा करते हैं? आपका विरोध केन्द्र सरकार से है तो आप अपनी बात सरकार तक पहुंचाएं लेकिन रेलवे की राष्ट्रीय सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाने, आम आदमियों के वाहनों को आग लगाने और पुलिस पर पथराव करने का अधिकार किसने दिया? अगर आप शान्तिपूर्ण तरीके से अपना विरोध प्रदर्शन करना चाहते थे तो आपके पास पत्थर, लाठियां और गाड़ियों में आग लगाने का सामान कहां से आया? एक साथ हजारों की भीड़ रेलवे स्टेशन पर अचानक कहां से जमा हो गई?
पिछली बार शुक्रवार को रांची में हिंसा और आज सिकंदराबाद में हिंसक प्रदर्शन कहीं सोची-समझी साजिश तो नहीं है? चाहे जो भी हो लेकिन इतना तो तय है कि आज की घटना सिर्फ विरोध प्रदर्शन नहीं कही जा सकती, यह निश्चित रूप से योजनाबद्ध तरीके से किया गया आक्रमण है। कुछ लोग अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए देश के युवाओं को दिग्भ्रमित कर रहे हैं, जो न तो उनके लिए और न ही देश के लिए हितकारी है।
– सरिता सुराणा स्वतंत्र पत्रकार ओर लेखिका