जैन साहित्य संगम की गोष्ठी में बही कविताओं की रसधार, शीघ्र मिलने का किया वादा

हैदराबाद (सरिता सुराणा की रिपोर्ट) : जैन साहित्य संगम की द्वितीय काव्य गोष्ठी सफलतापूर्वक संपन्न हुई। तेलंगाना इकाई अध्यक्ष सरिता सुराणा ने जारी प्रेस विज्ञप्ति में यह जानकारी दी। अध्यक्ष ने नमस्कार महामंत्र के उद्घोष से कार्यक्रम आरम्भ किया और उपस्थित सभी रचनाकारों का शब्द-पुष्पों से हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन किया।

सरिता ने कहा कि इस मंच के संस्थापक जगदीप हर्षदर्शी ने सभी जैन साहित्यकारों को एक मंच पर एकत्रित करने और समय-समय पर विभिन्न साहित्यिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करने हेतु बनाया है। इसी उद्देश्य की पूर्ति करने हेतु तेलंगाना इकाई का गठन किया गया है। हम सब मिलकर उनके स्वप्न को साकार करने में सहयोगी बनें। यही हमारी मंगल कामना है।

मंच की महासचिव श्रीमती हर्षलता दुधोड़िया ने सुमधुर स्वर में सरस्वती वन्दना प्रस्तुत की। विशाखापट्टनम से कनक पारख ने अपनी मुक्त छंद कविता – बैर, क्रोध, मद छोड़ो मन से का पाठ किया, जिसे सभी ने सराहा। निर्मला बैद ने प्रथम जिनेश्वर देव को समर्पित रचना प्रस्तुत की। विमलेश सिंघी ने कल का दिन, प्रकृति का संतुलन और ये वृक्ष पुराना जैसी समृद्ध रचनाओं की शानदार प्रस्तुति दी। संस्था उपाध्यक्ष अशोक दोशी ने सुर साधना गीत के माध्यम से यह बताया कि जीवन में सुर, संगीत, साहित्य और सत्संग का कितना महत्त्व है। हर्षलता दुधोड़िया ने – बोलो पत्नी जी की जय, हास्य गीत (मैलोडी) की लाजवाब प्रस्तुति देकर सबका मन मोह लिया।

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अंत में अध्यक्षीय टिप्पणी देते हुए सरिता सुराणा ने सभी की शानदार रचनाओं की मुक्त कंठ से प्रशंसा की और भगवान महावीर के अनेकान्तवाद और स्याद्वाद से सम्बन्धित रचना – कौन हूँ मैं/ स्याद् अस्ति/स्याद् नास्ति का वाचन किया। साथ ही साथ हमारे मन में कविता कैसे जन्म लेती है, उससे सम्बन्धित रचना भी प्रस्तुत की। बहुत ही उत्साहपूर्ण वातावरण में गोष्ठी सम्पन्न हुई। अध्यक्ष ने सभी सहभागियों का हार्दिक आभार व्यक्त किया और पुनः एक और कार्यक्रम में शीघ्र मिलने के वादे के साथ गोष्ठी का समापन किया।

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