हैदराबाद : हिंदी साहित्य भारती और हिंदी महाविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में ‘व्याख्यान और काव्यगोष्ठी’ का आयोजन किया गया। हिंदी महाविद्यालय के प्रांगण में आयोजित इस कार्यक्रम का विषय ‘सृजन का सहारा और तनाव प्रबंधन’ रहा है। कार्यक्रम का आरंभ मां सरस्वती के चरणों में पुष्पार्पण और ज्योति प्रज्वलन के साथ हुआ।
स्वागत भाषण देते हुए प्रदेश प्रभारी डॉ सुरभि दत्त ने कहा कि तेलंगाना हिंदी साहित्य भारती, हिंदी महाविद्यालय की प्रेरणा का ही परिणाम है। इस संस्था से जुड़े लोग हिंदी महाविद्यालय से सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं। हिंदी महाविद्यालय साहित्यिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने में अग्रणीय है। इस महाविद्यालय की अद्वितीय सेवाओं से अनेकों को सुफल प्राप्त हुए हैं। तेलंगाना हिंदी साहित्य भारती भी उनमें से एक है।
शिक्षा, समाज और साहित्य तीनों क्षेत्रों में सक्रिय है। विषय पर विचार रखते हुए- आह से उपजा होगा गान पंक्तियों को उद्धृत करते हुए जयशंकर प्रसाद जी की कामायनी की चर्चा की। महाकाव्य रामायण, रामचरितमानस और महाभारत युद्ध में व्यथित अर्जुन को कृष्ण का उपदेश जो भगवद्गीता नाम से विख्यात है, के उदाहरण रखते हुए कहा, वेदना की पृष्ठभूमि में लिखे गए ये तीनों ग्रंथ आज विश्व में लोकप्रिय हैं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए हिंदी महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ बाला कुमार ने कहा कि हिंदी भाषा बहुत ही प्यारी भाषा है। संवैधानिक रूप से राष्ट्रभाषा के रूप में इसे स्थान अभी तक न मिल पाना अत्यंत दुखद है। उन्होंने बताया कि साहित्य सुनना-पढ़ना भी तनाव को कम करता है। मैं भी भक्ति साहित्य एवं हिंदी के गीत गुननाकर अक्सर आराम का अनुभव करती हूँ।
हिंदी महाविद्यालय प्रबंधन समिति के सचिव शील कुमार जैन जी अपना व्रत और व्यस्तताओं के बाद भी बड़े उत्साह के साथ कार्यक्रम में सम्मिलित हुए। हिंदी के लिए बहुत कुछ करने की अभिलाषा उनके वक्तव्य का सार था। हिंदी महाविद्यालय हिंदी के लिए सदैव हरसंभव प्रयास करता रहेगा ऐसा उन्होंने आश्वासन दिया। उन्होंने व्याख्यन विषय के महत्व पर प्रकाश डालते हुए जयशंकर प्रसाद की पंक्तियाँ भी सुनाईं। पाठ्यपुस्तकों में दोहों की सार्थकता एवं उपादेयता पर भी प्रकाश डाला। तनाव कम करने के सूत्र सुझाए।
हिंदी महाविद्यालय के उपाध्यक्ष श्याम सुंदर मूंदड़ा का वक्तव्य सुनना ईश्वर का प्रसाद पाने से कम नहीं। उनकी वाणी और व्यक्तित्व का प्रभाव ऐसा है कि जो उनका दर्शन कर ले तनाव मुक्त हो जाए। उन्होंने कहा कि जीवन के तनाव को दूर करने में साहित्य की महत्वपूर्ण भूमिका है। मैं स्वयं रोज साहित्य का एक पन्ना अवश्य पढ़ता हूँ। हिंदी सिनेमा के गीत भी साहित्य का ही हिस्सा हैं। जब कभी आप तनाव में हों हिंदी के पुराने गीत सुनें आपको तनाव प्रबंधन में सृजन के सहारे का तुरंत अनुभव हो जाएगा। उन्होंने तेलंगाना हिंदी साहित्य भारती द्वारा की जा रही साहित्यिक, सामाजिक और शैक्षिक गतिविधियों के प्रोत्साहन की प्रशंसा की।
मुख्य वक्ता डॉ रजनी धारी ने कहा कि तनाव से बचने के लिए सबसे जरूरी है- सकारात्मक सोच। नकारात्मक विचार से हम जितना बचेंगे उतना ही तनाव से दूर रहेंगे। उन्होंने बड़े ही व्यवस्थित ढंग से तनाव से जुड़ी मनोवैज्ञानिक, सैद्धांतिक और व्यावहारिक बातें बताईं। सृजित साहित्य से उन्होंने अनेक कवियों की रचनाएँ अपनी बातों को प्रमाणित करने के लिए सुनाईं, जैसे- ‘नर हो, न निराश करो मन को’, ‘अग्निपथ… अग्निपथ’ आदि। हिंदी में सृजित साहित्य की खूबसूरत प्रस्तुति ने श्रोताओं को सृजन से तनाव मुक्ति की प्रक्रिया का अनुभव भी करवा दिया।
महाविद्यालयके संयुक्त सचिव प्रदीप दत्त ने कहा कि व्याख्यान का विषय बहुत गहरा और उपयोगी है। साहित्य पठन और लेखन दोनों आवश्यक हैं। साहित्य का संवेदना से गहरा संबंध है। सकारात्मक सृजन तनाव से मुक्त करता है। नकारात्मक सृजन से बचना चाहिए क्योंकि यह पढ़ने वाले को तनाव में घेर लेता है। स्वांत सुखाय, पर हिताय सृजन का प्रथम धर्म है।
समिति सदस्य डॉ चंद्रप्रकाश चौहान ने कहा कि तनाव स्वभावतः एक कमजोरी है। तनाव लेने वाला छोटी-छोटी बातों से तनाव ले लेता है, जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। हमें इससे जितना संभव हो बचना चाहिए। तनाव से दूर रखने में सृजन बड़ी भूमिका निभाता है। सहायक प्रभारी लेफ्टिनेंट कर्नल दीपक दीक्षित ने कहा कि तनाव मानसिक दुर्बलताओं की उपज है। क्योंकि सृजन एक मानसिक आनंद की प्रक्रिया है। इसलिए स्वाभाविक है कि इससे तनाव भी आनंद में बदल जाएगा।
महामंत्री डॉ. दयाशंकर प्रसाद ने विषय पर बोलते हुए अपना स्वानुभव सुनाया। उन्होंने कहा कि मैं कविता-सृजन के माध्यम से स्वयं यह महसूस कर रहा हूँ कि यह बात सौ प्रतिशत सही है। उन्होंने हिंदी महाविद्यालय का इस आयोजन में सहयोग के लिए धन्यवाद भी दिया।
डॉ राजीव सिंह ‘नयन’ (अध्यक्ष हिंदी साहित्य भारती, तेलंगाना) ने कहा कि सृजन करना हो, सुनना हो, पढ़ना हो, देखना हो, या सृजनशील लोगों की सद्संगति में बैठना हो, ये सब तनाव प्रबंधन के अचूक हथियार हैं। विगत कुछ दशकों से व्यक्ति का बुद्धि के प्रति आकर्षण और हृदय से विकर्षण आधुनिक समाज के तनाव का मूल है। हर आयु का व्यक्ति आज तनाव-ग्रस्त दिख रहा है। यहाँ तक कि बच्चे भी तनाव का शिकार हो रहे हैं। वह भी उस युग में जब माना जा रहा है कि तकनीक ने मनोरंजन के अनेक साधन विकसित कर दिए हैं। निश्चय ही तनाव से बचना है तो अपने मस्तिष्क को हृदय के निकट ले जाना होगा। हृदय से किया गया काम ही सृजन है।
दूसरा सत्र में काव्यगोष्ठी का आयोजन किया गया। छोटे से यज्ञ में सुगंधित काव्य केसर ने सभी को बरखा ऋतु में भिगो दिया। इस काव्यगोष्ठी में हरिओम पांडेय, प्रतीक्षा, ममता सक्सेना, तनिष्का, पुरुषोत्तम कड़ेल, डॉ. रजनी धारी, डॉ. डाके किरन, श्याम सुंदर मूंदडा, डॉ. चंद्र प्रकाश चौहान, डॉ. दयाशंकर प्रसाद, लेफ्टिनेंट कर्नल दीपक दीक्षित, डॉ. सुरभि दत्त, डॉ. राजीव नयन ने काव्य पाठ किया। डॉ रजनी धारी द्वारा प्रस्तुत धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम पूर्ण हुआ।