तेलंगाना समाचार: गुरुकूल बुक ऑफ द ईयर अवार्ड्स 2024 से सम्मानित भगवती अग्रवाल के साथ खास संवाद

लेखिका भगवती अग्रवाल को पुस्तक ‘पूजा या विसर्जन अंतर्द्वद से रौशनी की ओर’ के लिए हाल ही में गुरुकूल पब्लिशिंग हैदराबाद की ओर से गुरुकूल बुक ऑफ द ईयर अवार्ड्स 2024 से सम्मानित किया गया। भगवती ने हमें भी इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया। इससे पहले भी इस पुस्तक लोकार्पण कार्यक्रम में भी हम मौजूद थे। हमने पहली बार देखा कि एक पब्लिशर ने प्रकाशित पुस्तकों के 63 लेखकों का सम्मानित किया। सम्मान कार्यक्रम भी बहुत मनोरंजक था। गुरुकूल पब्लिशिंग के संस्थापक डॉ विनीत गेरा लेखकों को मंच पर बुलाते गये और साहित्यकार संगीत की धून पर नाचते मंच पर आये और अवार्ड्स प्राप्त किया। इस दौरान लेखकों ने अपना संक्षिप्त परिचय दिया और पुस्तक पर अपने विचार व्यक्त किये। लेखकों ने जो संदेश दिया वह आने वाली पीढ़ी के लिए संदेशात्मक रही है। इसी क्रम में हमने भगवती अग्रवाल से तेलंगाना समाचार के लिए उनके बारे में बताने और उभरते लेखकों को संदेश देने की अपील की। हमारी अपील को उन्होंने स्वीकार किया। विश्वास है कि लेखन कार्य से जुड़े लेखकों को यह संक्षिप्त संवाद उपयोगी साबित होगी।

तेलंगाना समाचार : नमस्ते भगवती जी, सबसे पहले आपको गुरुकूल बुक ऑफ द ईयर अवार्ड्स 2024 से सम्मानित होने पर बहुत-बहुत बधाई। अवार्ड्स से सम्मानित होने पर कैसे लग रहा है?

भगवती अग्रवाल : नमस्ते राजन्ना जी। धन्यवाद आपका। अवार्ड्स हमेशा अच्छे होते हैं। आपका मनोबल बढ़ाते हैं। आप अच्छा कर रहे हैं ये सोच आपको ख़ुशी और प्रेरणा देती है।

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तेस : यह बताइए कि आपका मूल निवास और परिवार की पृष्ठिभूमि, आप कब से लिख रही और लेखन के लिए प्रेरणा कहां से मिली है?

भअ : मेरी जन्मभूमि राजस्थान, शिक्षा और संस्कार राँची (तब का बिहार,अब झारखंड) और कर्मभूमि हैदराबाद। अब तो हैदराबाद में तीन दशक पूरे हो गए हैं। पर हम सबसे पहले भारतीय हैं। देश के किसी कोने में चले जाओ मुझे हर जगह अपनापन लगता है। मैं मध्यमवर्गीय परिवार से हूँ। पिताजी की किराने की दुकान थी राँची में, उसी से उन्होंने हम नौ (आठ बहन, एक भाई) बच्चों को पाला पोसा, बड़ा किया और इस योग्य बनाया। मेरी मम्मी और पापा से ही हमने ज़िंदगी के ज़्यादा सबक़ लिए हैं.

मैंने राजनीति विज्ञान में स्नातक किया है और गारमेन्ट्स मैन्युफ़ैक्चरिंग मास प्रोडक्शन किया है।मेडिटेशन और साउंड हीलिंग भी सीखी है। वो ज़माना कुछ और ही था सिर्फ़ परिवार ही नहीं उस वक़्त पड़ोसी भी एक-दूसरे का संबल हुआ करते थे। मैं बचपन से लिख रही हूँ और मैंने एक डायरी भर दी थी लिखकर जो कहीं गुम हो गई है। शादी के बाद आप अचानक से बड़े हो जाते हैं और मैं भी हो गई… कुछ सपनों को जीती रही… कुछ को सँभालकर रख दिया। पर कविता जीवन से गई कभी नहीं, वो बराबर मेरे साथ बनीं रही। कविता कोशिश करके नहीं लिखी जाती। कोई संवेदना आपको छूती है… कुछ भाव भरी तरंगें उत्पन्न होती हैं जो अंदर हलचल मचाती है और शब्दों के माध्यम से बाहर आती है और ये किसी के लिए किसी भी वक़्त हो सकता है। मैं ईश्वर की कृपाओं में विश्वास करती हूँ, वही है जो मुझमें आकर लिख जाता है।

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तेस : अबतक कितने पुस्तकें प्रकाशित हुई। ‘पूजा या विसर्जन अंतर्द्वद से रौशनी की ओर’ पुस्तक किस विषय पर फोकस है?

भअ : अभी तक सिर्फ़ एक ही पुस्तक आई है ‘पूजा या विसर्जन’ अंतर्द्वंद्व से रोशनी की ओर. यह एक भावनात्मक सफ़र है… जिससे काफ़ी लोग जुड़ाव महसूस करेंगे।

तेस : पाठक ‘पूजा या विसर्जन अंतर्द्वद से रौशनी की ओर’ को क्यों पढ़ना चाहिए?

भअ : ये बहुत ही सीधी और सच्चाई से भरी पुस्तक है। कोई लाग-लपेट और बनावट नहीं है। इसमें हर-एक व्यक्ति को अपनी ज़िंदगी से जुड़े सवालों के जवाब मिलेंगे और वो भी बेहतर बनने के लिए संदेश और प्रेरणा देती है।

तेस : आप लेखन के लिए ज्यादातर कौन सा समय चुनते हैं?

लिखने के लिए मेरा कोई विशिष्ट समय नहीं है। ये २४ घंटे में कभी भी हो सकता है।

तेस : आजकल मोबाइल फोन पर चिपक कर रहने वाले युवकों और नव लेखकों को क्या संदेश देना चाहती हैं?

भअ : फ़ोन ने हमें बहुत सारी सुविधाएँ दीं हैं, पर बदले में हमसे बहुत कुछ छीन लिया है। भाषण हम सब दे सकते हैं पर सच ये है कि हम सब इसके ट्रेप में फँस चुकें है कोई कम और कोई ज़्यादा। पर हम कुछ नियम बना सकते हैं अपनी रूटीन के हिसाब से। हमारी प्राथमिकताएँ हमें खुद ही सेट करनी पड़ेगी। अपनी ज़िंदगी में परिवार, प्रकृति, समाज और राष्ट्र की महत्ता को जाने और सबको साथ ले के चलें। आज का साहित्य ही कल का इतिहास बनेगा। हर एक लेखक का नज़रिया अलग हो सकता है पर हमें सच्चे और सौहार्दपूर्ण शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। शब्दों की शक्ति का सही उपयोग ही हमारी ताक़त है।

ऐसे सुंदर वातावरण में एक कविता तो बनती है…

परिचय

मैं हूँ एक सरल मनुष्य
लिंग-भेद से परे
सबको मानूँ अपना
बिना किसी पूर्वाग्रह के,
प्रकृति मेरी सहचरी
ब्रह्माण्ड मेरा आराध्य
कण कण में, क्षण क्षण में
प्राण-वायु सा विचरती
कभी पागल कभी बुद्धू…
बिना बात ही मुस्कुराती
कभी गूढ़-गहन विचार भर
संसार का भार उठाती
कभी पहाड़ों से दुख में
चट्टानों सी अडिग रहती
कभी चींटी से दुख में भी
भरभरा कर ढह जाती
वसुधैव-कुटुम्बकम मेरा लक्ष्य
बस मेरा यही परिचय.

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