17 सितंबर को ‘हैदराबाद मुक्ति दिवस’ के रूप में भी याद किया जाता है। यह अलग बात है कि विभिन्न राजनीतिक दल अपने वोट बैंक के लिए अलग-अलन नाम से यह दिवस मना रहे हैं। लेकिन हैदराबाद मुक्ति के लिए जो निजाम शासन के अधीन था, अनेक लोगों ने आंदोलन किया। इस आंदोलन में अनेक लोग शहीद भी हो गये। परिणाणस्वरूप हैदराबाद मुक्त हुआ और आजाद भारत में शामिल हो गया। इस अवसर पर हम एक व्यक्ति के संघर्ष याद करना हमारा कर्तव्य समझते है। क्योंकि वह एक मात्र व्यक्ति है जिसे निजाम सरकार ने पुरस्कृत किया। निजाम सरकार को यह नहीं मालूम था कि आगे चलकर यह व्यक्ति (बालक) हमारे खिलाफ ही संघर्ष करेगा।
प्रायः यही समझा जाता है कि साधन संपन्न परिवारों के बालकों को सुविधायें प्राप्त होने से माता-पिता की देखभाल के कारण जीवन में बहुत आगे निकल जाते हैं। कुछ बनकर दिखला देते हैं किन्तु, इतिहास इस सोंच को झुठलाता है। आंशिक रूप से ही यह कथन ठीक है। प्रत्येक देश में और प्रत्येक जाति के इतिहास में हम अच्छी संख्या में साधनहीन परिवारों के अनाथ बच्चों के भी और असाधारण उपलब्धियां प्राप्त करने के उदाहरण पाते हैं।
पंडित गंगाराम जी एडवोकेट 3 वर्ष के थे जब उनके पिता चल बसे। परिश्रमी माता ने पाला पढाया। अपनी लगन, पुरुषार्थ तथा सत्संग व सेवा से हैदराबाद स्टेट के एक महान क्रांतिकारी, स्वाधीनता सेनानी, उच्च शिक्षा प्राप्त, आर्य विचारक, लोकप्रिय समाजसेवी, परोपकारी आर्यसमाजी नेता के रूप में बहुत प्रसिद्धि, मान, सम्मान तथा प्रतिष्ठा प्राप्त करके इतिहास में स्मरणीय महापुरुष बने। निजाम के दमन और क्रूरता काल में क्या-क्या कष्ट झेले! गोली भी खाई, लघु लुहान हुये परंतु दबे न लड़खड़ाये। बढ़ते चले गए।
पंडित गंगाराम जी का जन्म 1916 को बसंत पंचमी के दिन मंगलवार 8 फरवरी को चंद्रिकापुर, हैदराबाद में हुआ। एक साधारण से परिवार में जन्मे पंडित गंगाराम जी ने अपने आप में इतिहास का एक अध्याय बन गये। बासर ग्राम के निकट उफनती गोदावरी नदी में डूबती एक बाल – विधवा को बचाने की अदम्य साहसिक घटना से पंडित गंगाराम के बाल्य – जीवन की सेवा – कहानी आरंभ होती है। जब वह केवल 17 वर्ष के थे, साहसिक कारनामों के लिए निजाम सरकार ने और जागीरदार ने आपको साहस और वीरता के प्रथम पुरस्कार से पुरस्कृत व सम्मानित किया।
आर्य समाज से 10-11 वर्ष की आयु से ही लगाव था, लगन थी। इसीलिए निजाम के अत्याचारों का विरोध करने और सत्याग्रह के लिए और पार्श्वभूमि तैयार करने पंडित दत्तात्रेय प्रसाद जी एडवोकेट के साथ मिलकर “आर्यन डिफेंस लीग ” की स्थापना 1936-37 में की। इस आर्य रक्षा समिति के साथी श्री राजपाल जी, श्री ए बाल रेड्डी जी, श्री सोहन लाल जी, श्री प्रताप नारायण जी, श्री विश्वनाथ जी और अन्य। इनका कार्य बस्तियों में जाकर लोगों को सत्याग्रह और रजाकारों से मुकाबला करने के लिए संगठित कार्य करने और प्रशिक्षण दिया जाना था।
1937-38 में हैदराबाद शहर के बीचो-बीच मोजमजाही मार्केट के पास, निजाम सरकार के विरुद्ध पहला “बम विस्फोट” हुआ और इस तरह तीन और बम विस्फोट अलग-अलग स्थान पर किए गए, जिसमें एक की मौत हुई, इस बम कांड ने निजाम शाही की कमर तोड़ कर रख दी। इस बम कांड में गंगाराम जी को गिरफ्तार कर जेल में ठूंसा गया । इसी के साथ “चकोलियां वाला कांड” में भी गिरफ्तारी हुई। ” प्रतापसिंह बम केस ” में फिर से जेल में डाला गया।
आर्य जगत के प्रसिद्ध इतिहासकार श्री राजेंद्र जिज्ञासु जी ने “जीवन संग्राम – क्रांतिवीर पंडित गंगाराम वानप्रस्थी” ( शीघ्र ही लोकार्पण होने वाली है) में लिखा है कि पंडित गंगाराम जी का एक पैर कोतवाली में तो दूसरा कोर्ट में। समाज सेवा, मैदान में सक्रिय होते ही गंगाराम जी का एक पैर कोतवाली में और दूसरा कोर्ट में होता था। जेल में आना जाना दंडित होना तो आपके जीवन की एक सामान्य सी बात हो गयी थी। ऐसे विषम परिस्थिति में, सरकारी नौकरी में रहना मुश्किल हुआ और उन्होंने नौकरी त्याग दी। गिरफ्तारियों से बचने और हैदराबाद निजामशाही के विरुद्ध लगातार संघर्षशील रहते भूमिगत रहकर शोलापुर, अहमदनगर और हैदराबाद केंद्रों से सत्याग्रह संचालन में सक्रिय सहयोग देते रहे।
1942-43 में उस्मानिया विश्वविद्यालय की ओर से भारतीय वायुसेना के लिए चयन लिस्ट में प्रथम नाम आया और भारत छोड़ो आंदोलन के उपलक्ष्य में जवान बंदी और विश्वविद्यालय तथा केशव स्मारक आर्य विद्यालय की अध्यापक दोनों से सरकार द्वारा निष्कासित कर दिए गए। हैदराबाद और निजाम शासन के विरुद्ध रणनीति बनाने जम्मू कश्मीर, पेशावर, रावलपिंडी, लाहौर, अमृतसर, देहरादून आदि में 6 मास चिंतन मनन और रणनीति के लिए भूमिगत होकर कार्य किया। 1944 में पंडित गंगाराम आर्यवीर दल के प्रधान व मुख्य संघटक रहे और चतुर्थ आर्य सम्मेलन गुलबर्गा में गुण्डों और असामाजिक तत्वों के संयुक्त आक्रमण से आर्यनगर का साहसपूर्ण संरक्षण किया।
1946 में आर्य प्रतिनिधि सभा के मंत्री नियुक्त हुए और इनका कार्यकाल 1950 तक मंत्री बने रहे। भारत की अग्रेजों से आजादी और हैदराबाद का भारत में विलय का यही महत्त्वपूर्ण समय रहा। निजाम और रजाकारों के अत्याचारों और आक्रमणों से परेशान हिंदू केवल आर्य समाज पर निर्भर रहते थे। इस परिस्थिति में, निजाम शाही का वारंट गिरफ्तारी से बचकर फरार हुए नोआखली। बंगाल असम आर्य समाज रिलीफ सोसायटी, कलकत्ता के महामंत्री नियुक्त। नोआखली, कोम्मिल्ला, फैनी, चिटगांव आदि जिलों में मुसलमान बनाए गए चार लाख हिंदुओं को वापस लाने में गांधी जी के साथ काम किया । गांधी जी के कहने पर पटना, बिहार शरीफ, राजगृह आदि जिलों का दौरा किया।
29 जुलाई 1947 को लातूर से हैदराबाद आने पर स्टेशन से ही पंडित गंगाराम जी, पंडित दत्तात्रेय प्रसाद जी वकील और वैद्य वामनराव जी को बंदी बना लिया गया और हैदराबाद सेंट्रल जेल भेज दिया गया। बाद में गंगाराम जी को गुलबर्गा सेंट्रल जेल में स्थांतरण किया गया। हैदराबाद मुक्ति आंदोलन की इस तरह सफलता की ओर पहुंचना तथा सरदार वल्लभभाई पटेल तत्कालीन भारत सरकार के उप प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के सफल पोलो ऑपरेशन से हैदराबाद निजाम राज्य का भारत में विलय हो सका। आर्य समाज के इस पुण्य कार्य को यहां के लोगों को कभी नहीं भूलना चाहेंगे। इतिहास को भूलना यानी संस्कृति को भूलने के बराबर है। इसीलिए आर्य समाज के हम ऋणी हैं जो इतने और ऐसे अनेकों क्रांतिकारी वीरों को उत्पन्न किया तथा समाज में सम्मिलित और संगठित कार्य करने में हैदराबाद विश्व में प्रसिद्ध हुआ।
– श्रुतिकांत भारती
मिलिंद प्रकाशन एवं मंत्री स्वतंत्रता सेनानी पण्डित गंगाराम स्मारक मंच