[नोट-पाठक इस पर विषय अपने विचार व्यक्त कर सकते हैं। प्राप्त विचारों को तेलंगाना समाचार में प्रकाशित किया जाएगा]
इस सम्बन्ध में उतनी गहराई में जाकर तो मैने अध्ययन नहीं किया है, परन्तु जितना मुझे मालूम है वही बात संक्षेप मैं आपके समक्ष रख रहा हूँ: दक्षिण भारत में हिंदी के प्रचार और प्रसार के लिए त्रिभाषा सूत्र को अपनाया गया है। यानी कि छात्रों को अंग्रेजी और मातृभाषा के साथ-साथ हिंदी पढ़ना भी अनिवार्य रखा गया हैष इससे यहाँ पर किसी को कोई एतराज नहीं है। परन्तु हिंदी भाषा-भाषी प्रांतों में चूंकि उनकी मातृभाषा हिंदी ही है इसलिए केवल दो भाषाएं यानी कि अंग्रेजी और हिंदी ही अध्ययन के लिए रखा गया है।
MIDHANI
इसी से उन्हें एतराज है। दक्षिण भारत के लोगों का मानना है कि इससे हिंदी भाषा-भाषी प्रांतो के छात्रों से तुलना करने पर यहाँ के छात्रों पर ज्यादा भार पड़ेगा। बदले में वे चाहतें हैं कि हिंदी भाषा-भाषी प्रांतों में भी दक्षिण भारत की कोई एक भाषा पढ़ाई जाये। इससे हिंदी भाषा-भाषी प्रांतों के छात्रों को भी यहाँ के साहित्य और संस्कृति से परिचित होने का मौका ही नहीं मिलेगा, बल्कि आपसी सौहाद्र भी कायम होगा। पर इसका हिंदी भाषा भाषी प्रांतो में जमकर विरोध हुआ। यही कारण है कि दक्षिण भारत में हिंदी का विरोध हो रहा है।
मैने इस सम्बन्ध में हिंदी भाषी प्रांतों के कुछ विद्वानों और बुद्धिजीवियों से भी बात की थी। उनका भी मानना है- “गलती हम हिंदी वालों की है। दक्षिण भारत की भाषा सीखने से हमें परहेज नहीं होना चाहिए। इस भाषायी मनमुटाव का मुख्य कारण राजनैतिक स्वार्थ के अलावा और कुछ नहीं है।”
– लेखक और कहानीकार एन आर श्याम
मोबाइल नंबर- 8179117800
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