विश्व भाषा अकादमी: दमदार रही ‘हिन्दी भाषा और क्षेत्रीय भाषाओं तथा बोलियों में परस्पर सामंजस्य’ विषयक गोष्ठी

हैदराबाद (सरिता सुराणा की रिपोर्ट) : विश्व भाषा अकादमी, भारत की तेलंगाना इकाई द्वारा विश्व हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य में एक परिचर्चा गोष्ठी का ऑनलाइन आयोजन किया गया। जिसका विषय था- ‘हिन्दी भाषा और क्षेत्रीय भाषाओं तथा बोलियों में परस्पर सामंजस्य’। संस्था अध्यक्ष सरिता सुराणा ने सभी सम्मानित अतिथियों और सदस्यों का हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन किया और विश्व हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं दीं।

उन्होंने यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, क्षेत्रीय महाप्रबंधक कार्यालय हैदराबाद के वरिष्ठ प्रबंधक (राजभाषा) श्री देवकांत पवार जी को गोष्ठी की अध्यक्षता करने हेतु एवं हिंदुस्तान पैट्रोलियम काॅरपोरेशन लिमिटेड के सेवानिवृत्त उप महाप्रबंधक श्री रविदत्त गौड़ जी को विशेष अतिथि के रूप में मंच पर आमंत्रित किया। श्रीमती सुनीता लुल्ला ने स्वरचित सरस्वती वन्दना प्रस्तुत की। तत्पश्चात् अध्यक्ष ने संस्था की गतिविधियों की संक्षिप्त जानकारी दी और विषय की प्रारम्भिक जानकारी देते हुए कहा कि हमारे देश में विविध भाषाएं और बोलियां बोली जाती हैं। सन् 1961 की जनगणना के अनुसार भारत में 1652 मातृभाषाएं और लगभग 19500 बोलियां बोली जाती थीं। जो 2011 की जनगणना तक आते-आते 1365 रह गई हैं। 121 ऐसी भाषाएं हैं, जो 10,000 लोगों द्वारा बोली जाती हैं। वहीं 4-5 भाषाओं के बोलने वालों की संख्या एक लाख से अधिक है। हिन्दी भाषा सर्वोच्च स्थान पर है।

मुख्य वक्ता श्रीमती सुनीता लुल्ला ने अपने वक्तव्य में कहा कि हिन्दी भाषा पूर्णतया वैज्ञानिक और समन्वयवादी भाषा है। जिस प्रकार गंगा नदी में अनेक नदियां आकर मिलती हैं, वह उन्हें आत्मसात करते हुए अपना मूल स्वरूप नहीं खोती है, उसी प्रकार हिन्दी भाषा में भी क्षेत्रीय भाषाओं और बोलियों के शब्द इस तरह घुल मिल जाते हैं कि हम उन्हें चाहकर भी अलग नहीं कर सकते। भावना पुरोहित ने कहा कि उनकी माताजी ने उन्हें- भाषाय नम: अर्थात् भाषा को नमन करना सिखाया क्योंकि भाषा के माध्यम से ही हम अपने भावों को अभिव्यक्त कर सकते हैं।

दर्शन सिंह ने कहा कि आज आवश्यकता है कि क्षेत्रीय भाषाओं व सर्वमान्य बोलियों का परीक्षण, संवर्धन और विकास किया जाए। उनसे हिन्दी शब्द ग्रहण करने के लिए तंत्र का निर्माण किया जाए और तकनीकी शब्दावली विकसित की जाए। हिन्दी सहित सभी क्षेत्रीय भाषाओं के साहित्य का अनुवाद किया जाए, इससे भारतीय भाषाओ में आपसी सामंजस्य, सहिष्णुता, सम्मान और सौहार्द बढ़ेगा। एक दूसरे के साहित्य को पढ़ने और समझने का अवसर मिलेगा। परिणाम सम्पर्क भाषा के रूप में हिंदी की स्वीकृति भी बढ़ेगी। निश्चित रूप से कल हमारा होगा और भारत विश्व के सर्वोच्च शिखर पर होगा।

रविदत्त गौड़ ने अपने वक्तव्य में कहा कि तस्य एव अहम् से जो यात्रा चली, उसमें विचार बदले, सरोकार बदले और वह तव एव अहम् पर आ पहुंची। आज हिन्दी भाषा राजनीति में भी भेद नीति का विषय बन गई है। उन्होंने देश भर में अपनी सेवाओं के बारे में और अलग-अलग राज्यों के साहित्य के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दी और कहा कि हमें कुछ अंशों में सभी भाषाओं का ज्ञान होना चाहिए जिससे हम वहां के मूल निवासियों से संवाद स्थापित कर सकें।

अध्यक्षीय टिप्पणी देते हुए देवकांत पवार ने कहा कि हिन्दी का शब्द भण्डार बहुत बड़ा है। हमें एक मजबूत सम्पर्क भाषा के रूप में हिन्दी को बढ़ावा देना चाहिए और तकनीकी लोगों को भी इसमें योगदान देना होगा। उन्होंने कहा कि बैंकिंग क्षेत्र में हिन्दी को साथ लेकर आगे बढ़ना होगा। अभी वे हैदराबाद में कार्यरत हैं तो हिन्दी-तेलुगु अनुवाद के माध्यम से कार्य को सुगम बनाने की कोशिश करते हैं। उन्होंने सभी वक्ताओं के विचारों का उल्लेख करते हुए कहा कि सभी ने बहुत ही सुन्दर और सार्थक विचार व्यक्त किए। उन्हें यह परिचर्चा गोष्ठी बहुत ही सारगर्भित लगी।

इस तरह के कार्यक्रम हमें एक दूसरे से जोड़ते हैं और परस्पर विचारों के आदान-प्रदान से ज्ञान में वृद्धि होती है। डॉ. संगीता शर्मा और के राजन्ना ने गोष्ठी को बहुत ही सफल और सार्थक बताया। इस गोष्ठी में श्री अनिल कुमार साहू, डॉ. सुमन लता और आर्या झा भी उपस्थित थे। सरिता सुराणा ने गोष्ठी की सफलता हेतु सभी अतिथियों और सदस्यों का हार्दिक आभार व्यक्त किया। सुनीता लुल्ला के धन्यवाद ज्ञापन से गोष्ठी सम्पन्न हुई।

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