[स्वतंत्रता सेनानी पंडित गंगाराम स्मारक मंच ने 15 सितंबर 2022 को विविध क्षेत्रों में अपनी सेवाएं प्रदान करने वाले 15 मान्यवरों और छात्रों को राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय जी के हाथों से सेवारत्न पुरस्कार 2022 से सम्मानित किया। इसी क्रम में मंच के अध्यक्ष भक्तराम जी ने हैदराबाद में निजाम शासन के खिलाफ लड़ने और आर्य समाज के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले ‘सेनानियों’ का जल्द ही बड़े पैमाने पर सम्मान करने का फैसला लिया है। इसकी तैयारियां भी शुरू कर दी है। साथ ही फरवरी में पंडित गंगाराम जी के जन्म दिन और संस्मरण दिवस पर भी अनेक कार्यक्रम करने का निर्णय लिया है। इसीलिए निजाम के खिलाफ लड़ने और आर्य समाज के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पंडित गंगाराम जी के योगदान के बारे में विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित सामग्री को ‘तेलंगाना समाचार’ में फिर से प्रकाशित करने का संकल्प लिया है। प्रकाशित करने का मकसद इतिहासकारों, शोधकर्ताओं और आने वाली पीढ़ी को निजाम खिलाफ लड़ने और आर्य समाज के विकास में योगदान देने वालों के बारे में सही जानकारी देना मात्र है। यदि कोई पाठक प्रकाशित सामग्री पर अपने विचार व्यक्त करना चाहते है तो telanganasamachar1@gmail.com
पर फोटो के साथ भेज सकते है। प्राप्त सामग्री को भी प्रकाशित किया जाएगा। क्योंकि ऐसे अनेक लोग हैं जो निजाम के खिलाफ लड़े है, मगर किसी कारणवश उनके नाम नदारद है। हम ऐसे लोगों के बारे में छापने में गर्व महसूस करते है। विश्वास है पाठकों को यह सामग्री उपयोगी साबित होगी।]
[आर्य समाज सुलतान बाजार महर्षि दयानन्द मार्ग हैदराबाद के शताब्दी समारोह के अवसर पर पंडित नरेन्द्र नगर हनुमान व्यायामशाला स्टेडियम हनुमान टेकडी में 1 मई 1992 को पंडित गंगाराम जी वानप्रस्थी का दिया गया स्वगताध्यक्ष भाषण । विश्वास है कि यह भाषण आज की पीढ़ी के लिए भी संदेशात्मक और प्रेरणादायक साबित होगी और है।]
ओ३म् विश्वानि देव सवितर् दुरितानी परासुव । यद् भद्रं तन्न आसुव ।।
नमो ब्राह्मणे नमस्ते वायो त्वमेव प्रत्यक्षं ब्राह्मासि। त्वामेव प्रत्यक्षं ब्रह्म वदिष्यामि ऋतं वदिष्यामि सत्यं वदिष्यामि तन्ममावतु तद् वक्तारमवतु । अवतुमाम् । अवतु वक्तारम्। ओ३म् शान्तिश्शान्तिशान्तिः।
पूज्य स्वामीजी एवं सम्मान के योग्य भद्र पुरुषों!
दक्षिणापथ के मुख्य द्वार हैदराबाद नगर में आए श्रद्धालु आर्य नर-नारियों का हार्दिक स्वागत करते हुए हमें अपार हर्ष एवं गौरव का अनुभव हो रहा है। महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती महाराज ने जिस विशाल परिवार का निर्माण किया है, वह परिवार आज विश्व के कोने-कोने में फैल चुका है। सारे विश्व को आर्य बनाने, श्रेष्ठ बनाने के महान् उद्देश्य व संकल्प को लेकर हमें आगे बढ़ना है। सन् 1892 ईस्वी में इन्ही संकल्पों को लेकर एक मशाल आर्य समाज रेसिडेन्सी नाम से निजाम शासन की इस राजधानी हैदराबाद में जलायी गयी थी। आज किसी क्षेत्र में आर्य समाज की स्थापना करना एक सरल कार्य है। वैसे हर समय धरती के किसी कोने में भी सत्य की मशाल को जलाना अपने आप में एक महान कार्य है। किन्तु हम सरल शब्द का प्रयोग सामाजिक वातावरण की दृष्टि से कर रहे है क्योंकि संसार जानता है कि हैदराबाद रियासत समूचे पराधीन भारत की एक मात्र ऐसी स्टेट थी, जहाँ यद्यपि प्रजा तथाकथित हिन्दू बहुल थी, किन्तु मुस्लिम स्टेट थी। यहाँ की राजनीति का आधार कठमुल्लापन या घोर साम्प्रदायिकता के उन्माद से परिपूर्ण था।
राजनीतिक कठोरता
देश के दूसरे भाग में केवल राजनीतिक कठोरता थी किन्तु धर्म के पालन व उसके प्रचार प्रसार की खुली छूट थी। यहाँ हम धर्म शब्द का प्रयोग आधुनिक मत मतान्तर और सम्प्रदाय के रूप में कर रहे है। क्योंकि ब्रिटिश एम्पायर मानता था कि भारत में जितने मत मतान्तर फैलेंगे उतना ही समाज मूलतः कमजोर होता जायेगा जिसका राजनीतिक लाभ उन्हें भारत में अपने शासन के पैर जमाये रखने में सुविधाजनक होगा। फूट डालो और शासन करो उनकी राजनीति का प्रमुख आधार था। किन्तु इसी युग में ब्रिटिश शासन के अन्तर्गत जो मुस्लिम शासन तन्त्र की सरकारें थी, उनका मूल आधार साम्प्रदायिक उन्माद था। वे चाहते थे कि अपनी रियासतो की प्रजा को येन केन प्रकारेण मुस्लिम बनाया जाये।
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महाभारत युद्ध
19 वीं शताब्दी की या यूँ कहें कि महाभारत युद्ध के बाद अर्थात् विगत साढे पाँच हजार वर्षो के बाद एक युगान्तकारी घटना घटित हुई। यह घटना सामाजिक क्रान्ति के तीव्रतम भूकम्प के रूप में महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा सन् 1875 में आर्य समाज की स्थापना की थी। आर्य समाज की स्थापना के प्रचण्ड तेज को देखकर एक पाश्चात्य विद्वान ने कहा है “मैं पूर्व दिशा से धधक रही एक ज्वाला को देख रहा हूँ। आगे चलकर इस ज्वाला में सारे पाखण्ड और अन्धविश्वास धू-धू कर जल जायेंगे और पराधीनता की बेडियाँ कडकडाकर टूट जायेंगी।” मानव सुधार और उसके सर्वांगीण विकास की धधकती ज्वाला से निकली एक चिंगारी ने तत्कालीन हैदराबाद स्टेट के रेसिडेन्सी क्षेत्र में एक दीप आर्य समाज रेसिडेन्सी के नाम से प्रज्ज्वलित किया। संस्कृत व्याकरण के प्रकाण्ड विद्वान प्रज्ञाचक्षु स्वामी गिरानन्द जी, जो उत्तर भारत से प्रचारार्थ मद्रास आये हुये थे, उन्हें हैदराबाद स्टेट के सुप्रसिद्ध वकील श्री रामचन्द्रजी पिल्हे हैदराबाद ले आये। रेसिडेन्सी क्षेत्र में स्वामीजी के प्रभावशाली भाषण हुये। श्री लक्ष्मणदास जोकि एक मेडिकल साइन्स के छात्र थे, उनके पिता प्रज्ञाचक्षु स्वामी गिरानन्द जी को अपने घर ले गये और उनके घर पर ही यज्ञ सम्पन्न हुआ। वहीं यज्ञ के बाद आर्य समाज की स्थापना हुई। निर्वाचन में पण्डित कामता प्रसादजी आर्य समाज रेसिडेन्सी के पहले प्रधान और श्री लक्ष्मणदास मन्त्री चुने गये।
हाथीखाने के दारोगा
पंडित कामताप्रसाद जी आला हजरत मीर महबूब अली खान (छठे निजाम) के हाथीखाने के दारोगा थे। उन दिनों राजाओं की सवारी हाथी पर ही निकला करती थी। दारोगा होने के नाते पंडित कामताप्रसाद जी का निजाम से प्रायः साक्षात्कार होता ही रहता था। इस प्रकार पंडित कामताप्रसाद का उस समय के समाज में एक महत्वपूर्ण स्थान था। ऐसे सुयोग्य प्रभावशाली व्यक्ति के प्रथम प्रधान चुने जाने से आर्य समाज के पैर सुदृढ हुए। पहले तो मेडिकल छात्र श्री लक्ष्मणदास के घर पर ही आर्य समाज के सब कार्य चलते रहे। किन्तु बहुत शीघ्र ही यह अनुभव किया जाने लगा कि आर्य समाज के कार्य को सुचारु रूप प्रदान करने एक पृथक स्थान आवश्यक है। इस परिस्थिति में पुतली बावली के सामने सेठ जमुनादास जी का घर पाँच रुपये मासिक किराये पर लिया गया। पं. सत्यनारायण सामवेदी एक सनातनी पंडित थे जो आर्य समाज के सामने ही बने हुए एक शिवलिंग की पूजा किया करते थे। उन्होंने सेठजी से आर्य समाज की निन्दा की कि आर्य समाज नास्तिकों का समाज है, ये मूर्ति पूजा के विरोधी होते है आदि। परिणामतः सेठ जमुनादास ने अपना मकान खाली करने के लिए कह दिया।
सुप्रसिद्ध उर्दू दैनिक मुशीरे- दक्कन के सम्पादक
पं. कामताप्रसाद जी, प्रधान आर्य समाज बडे परेशान हो गए। वे स्वयम् एक नये मकान की खोज में निकले। अचानक रास्ते में ही उनकी भेंट श्री किशनराव जी से हुई जोकि हैदराबाद के तत्कालीन सुप्रसिद्ध उर्दू दैनिक मुशीरे- दक्कन के सम्पादक थे। वार्तालाप में उन्होंने बताया कि हश्मतगंज के पीछे वाली गली जो नरसिंह मंदिर से होती हुई वर्तमान में गांधी ज्ञान मंदिर के पास कोठी पर निकलती है, उस गली में मेरा एक घर खाली है। बस पं. कामताप्रसाद जी ने छः रुपये मासिक किराये पर उक्त घर आर्य समाज रेसिडेन्सी के लिये प्राप्त कर लिया । वहाँ से पुनः राजा प्रतापगिरि जी की कोठी में एक कमरा लेकर आर्यसमाज का कार्य चलाया गया। कालान्तर में सुलतान बाजार क्षेत्र में सेठ इंद्रजीतजी चारकमान वालों ने भूमि क्रय कर आर्यसमाज को दान कर दी जिस पर वर्तमान भवन का निर्माण किया गया और तभी से इसे आर्यसमाज सुलतान बाजार नाम से जाने लगा।
शतवर्षीय इतिहास अत्यन्त गौरवपूर्ण रहा
आर्य समाज सुलतान बाजार महर्षि दयानन्द मार्ग का पिछला शतवर्षीय इतिहास अत्यन्त गौरवपूर्ण रहा है। वास्तविकता तो यह है कि हैदराबाद स्टेट में प्रभावोत्पादक जनजागरण का कार्य यही से आरम्भ हुआ। हैदराबाद क्योंकि निजाम स्टेट की राजधानी थी, अतः आरंभ से ही इस आर्यसमाज का अपना विशिष्ट स्थान रहा है। आरम्भ से लेकर अर्थात पं. कामताप्रसाद जी से आज तक बडी बडी महान विभूतियाँ इस आर्य समाज से जुडी रही है। इस कथन में अतिशयोक्ति न होगी कि निजाम स्टेट में जनजागृति और सामाजिक एवं राजनीतिक चेतना का आधार इसी आर्य समाज के इतिहास से जुडा है। इस आर्य समाज का इतिहास भी समूचे इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है।
बडी बडी महान विभूतियाँ
इस आर्य समाज से जो बडी बडी महान विभूतियाँ जुडी रही है उनमें डॉ लक्ष्मणदास जी, राजा गोविन्द प्रसाद, डॉ मल्लन्ना (जिन के प्रभाव से भारत कोकिला सरोजिनी नायडू का जात-पात तोडकर विवाह आर्य समाज के माध्यम से ही सम्पन्न हुआ था), सुप्रसिद्ध विधिवेत्ता राय कुंवर बहादुर (जिनके लिए प्रसिद्ध था कि वे आर्य समाजी होने के नाते अदालत के अभियोगों में भी झूठ का आधार नहीं लेते। उनके द्वारा किसी ओर से वकालतनामा पेश होना ही उस मुकदमे की सफलता का द्योतक होता था)। उन्ही की प्रेरणा से राय विश्वेश्वरनाथ जी, जो बाद में राजा बहादुर से सम्मानित हो कर तत्कालीन उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश भी बने, न्यायमूर्ति श्री केशवरावजी, कैप्टन सूर्य प्रतापजी, राय शिवप्रसाद जी, लाला गयाप्रसादजी एवं श्री चंदूलालजी आदि के नाम इसी आर्य समाज के उज्ज्वल इतिहास से जुड गये है। श्री चंदूलालजी जिनकी अविस्मरणीय सेवाएं जन-जन के हृदय में आज भी बैठी हैं। श्री चंद्रपालजी, श्री पं. नरेन्द्रजी, ठाकुर उमरावसिंहजी, श्री जीतलालजी, पं. बंसीलालजी व्यास, पं. देशबन्धुजी विद्यालंकार, पं. कृष्णदत्तजी इत्यादि सुप्रसिद्ध समाजसेवी इस आर्य समाज से जुडे रहे है।
कर्मभूमि का महत्वपूर्ण अंग
हैदराबाद स्टेट में आर्य समाज के क्रांति के अग्रदूत भाई वन्शीलालजी वकील हाईकोर्ट एवं अमर शहीद भाई श्यामलालजी यद्यपि इस आर्य समाज के विधिवत सदस्य नही रहे पर इन दोनों भाईयों का इस आर्यसमाज से गहरा तादात्म्य था। यही आर्य समाज उनकी कर्मभूमि का महत्वपूर्ण अंग रहा है। वेदों कें क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पं. दामोदर सातवलेकर कभी इस आर्यसमाज के मंत्री थे। वर्तमान आर्य समाज भवन में महर्षि दयानन्द सरस्वती का जो तैलचित्र लगा है वह भी श्री पं. दामोदर सातवलेकर के द्वारा स्वयं अपने हाथों से बनाया हुआ है। डॉ श्रीराम शर्मा जो हैदराबाद राज्य हिन्दी प्रचार सभा के सुप्रसिद्ध हिन्दी सेवी थे, वे भी कभी इस आर्यसमाज के मंत्री पद पर रहे। पं. आदिपूडि सोमनाथराव शास्त्री, श्री राजरत्नाचार्यजी, पं. लक्ष्मीशंकरजी, हकीम गणपतरावजी, वैद्य विठ्ठलरावजी जैसे सेवाभावी विद्वान भी इसी आर्यसमाज की देन थे। इनमें श्री पं. आदिपूडि सोमनाथरावजी शास्त्री का नाम अग्रणी रहा है, जिनकी सेवाएं विशिष्ट रूप से आर्य समाज के आंदोलन को गति प्रदान करने में उल्लेखनीय रही है। आज भी अंतर्राष्ट्रीय आर्य जगत में वैदिक विद्वान वक्ता एवं लेखक के रूप में सुप्रसिद्ध आचार्य वेदभूषणजी भी वर्तमान में इसी आर्य समाज के सक्रिय सदस्य हैं।
महात्मा गांधी के निर्देश
मैं जो आपके मध्य में उपस्थित हूँ, इसी आर्य समाज का सदस्य हूँ। देश विभाजन के समय नौआखाली दंगो में मुझे बंगाल – आसाम आर्य समाज रिलीफ सोसायटी का महामन्त्री बनकर पीडित लोगों की सेवा करने का सुअवसर मिला था। हमारे केन्द्र में ठक्कर बापा, आभा गांधी (जोकि महात्मा गांधी की पौत्र वधू थी) आदि सक्रिय सहयोगी रहे थे। वहीं महात्मा गांधी के साथ उन्ही के समीप आने का अवसर मिला। महात्मा गांधी के निर्देश पर वहाँ से बिहार प्रांत में दो माह तक सेवा में जुटा रहा। अष्टम सार्वदेशिक आर्य महासम्मेलन का स्वागताध्यक्ष एवं दशम आर्य महासम्मेलन का उपाध्यक्ष होने का गौरव आप ही लोगों ने मुझे दिया था। पं. नरेन्द्र जी, पं. दत्तात्रेय प्रसाद व डा. वामन राव जी (आर्यमुनि वानप्रस्थ) आदि के साथ रजाकार आंदोलन में हमें नजरबंद कर दिया गया था। अनेक बार ज़बानबंदी के प्रतिबन्ध और नज़र बंदी के अलावा कारावास में चौदह महीने नज़रबंद रहकर स्वतंत्रता सेनानी होने का सम्मान मुझे मिला है।
प्रथम आर्य महासम्मेलन
गुलबर्गा में आयोजित चतुर्थ आर्य महासम्मेलन के समय उपमंत्री, पांचवे आर्य महासम्मेलन वरंगल में पं. कृष्णदत्त जी के साथ संयुक्तमंत्री, जालना में आयोजित छठे आर्य महासम्मेलन में मंत्री पद पर रहते हुए आर्य प्रतिनिधि सभा हैदराबाद निजाम राज्य द्वारा कार्य करने का गौरव आप ही लोगों के स्नेह पूर्ण सहयोग के कारण मुझे प्राप्त हुआ था। हैदराबाद की मुक्ति के बाद आयोजित ऐतिहासिक प्रथम आर्य महासम्मेलन जोकि लातूर में प्रतिनिधि सभा द्वारा मेरे ही मन्त्रित्व काल में आयोजित हुआ था। निजाम के शासन काल में गुलबर्गा में जो ऐतिहासिक महासम्मेलन हुआ था जिसमें पुलिस ने आर्य नेताओं पर बर्बर लाठीचार्ज किया था और उसमें पं. विनायकरावजी, पं. गणपतशास्त्री, पं. नरेन्द्रजी और हीरालालजी आदि गंभीर रूप से घायल हो गये थे। ऐसी विकट परिस्थिति में समस्त दायित्वों का अतिवहन मुझे ही करना पड़ा था। उसी परंपरा में आपने मुझ पर आज जिस दायित्व को सौपा है उसे आपके स्नेह से बाध्य होकर निर्वहन कर रहा हूँ। और यही इच्छा है कि अन्तिम साँस तक आर्य समाज की ही सेवा में जुटा रहूँ। मैं हृदय से आप सभी के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ कि मुझे अकिंचन को आपने अपने प्रथम शताब्दी समारोह का स्वागताध्यक्ष मनोनीत किया है।
वैचारिक क्रांति
जैसा कि मैने बतलाया है कि आर्य समाज सुलतान बाजार से हैदराबाद के समूचे आर्य समाज आंदोलन का इतिहास जुडा हुआ है। तत्कालीन निजामी युग के अत्याचारों से आर्य समाज सुलतान बाजार भी अछूता नही रहा। उस के वार्षिकोत्सवों पर जो भी प्रभावशाली वक्ता और नेता आते थे प्रायः उनके प्रवेश को निज़ाम सरकार निषिद्ध घोषित कर देती थी। इनमें वैचारिक क्रांति के जादूगर महोपदेशक पं. धर्मभिक्षुजी, शास्त्रार्थ महारथी पं. रामचंद्रजी देहलवी, वेदों के प्रकाण्ड विद्वान श्री पं. बुद्धदेव जी विद्यालंकार, पं. देवेन्द्रनाथजी शास्त्री, पं. अयोध्याप्रसादजी आदि के नाम उल्लेखनीय है। आर्य जगत का कौनसा ऐसा महारथी होगा जो इस आर्य समाज के मंच पर ना आया हो। स्वामी श्रद्धानन्दजी, महात्मा नारायण स्वामीजी, लौहपुरुष स्वामी स्वतन्त्रतानन्दजी, स्वामी अभेदानन्दजी, स्वामी ध्रुवानन्दजी, महात्मा आनन्द स्वामी जी, श्री घनश्यामसिंह गुप्त और लाला देशबन्धु गुप्त से लेकर श्री प्रकाशवीर शास्त्री और श्रद्धेय स्वामी विद्यानन्द सरस्वती तक आर्य समाज के धुरन्धर विद्वान व नेता इस समाज के मंच से जनता का पथ प्रदर्शन करते रहे है।
हिन्दी सत्याग्रह
सेवा के क्षेत्र में आर्य समाज की सेवाएँ नगरद्वय के लिये अपने आप में अनन्यतम है। चाहे प्लेग हो या हैजा, चाहे आर्य सत्याग्रह हो या हिन्दी सत्याग्रह या फिर गो-रक्षा आंदोलन सभी में आर्य समाज सुलतान बाजार अग्रणी रहा। हमारे सदस्य इन आंदोलनों के प्राण रहे। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जितने भी राष्ट्रीय आंदोलन हुए उनमें आचार्य वेदभूषण जी आदि हमारे सदस्य होने के नाते भी इन आंदोलनों में सक्रिय रहे और अनेकों बार गिरफ्तारियाँ दी। विगत तीन दशकों में आर्य समाज सुलतान बाजार के माध्यम से सेवा करने वाले कर्मशील व्यक्तियों में सर्वश्री पं. प्रशान्त कुमारजी, पं. देवनाथजी, डॉ. पी. विद्यासागर, मनोहरलाल महेश्वरी, गणेशराव आदि की सेवाएँ उल्लेखनीय रही है। आर्य समाज सुलतान बाजार का क्षेत्र विशाल रहा है। अतः इसके सेवकों की सूची भी बहुत लंबी है। उन सभी के नामों का उल्लेख कर सकना भी कठिन है। क्योंकि आर्य समाज के माध्यम से सैकडों व्यक्तियों ने बडी बडी जन सेवाएं की है। इन में हर एक का कार्य एक इतिहास का निर्माण कर सकता है। अतः मैं अपने आपको अमसर्थ पा रहा हूँ कि कहाँ तक मैं नामों का उल्लेख करूँ?
दिवंगतों के प्रति श्रद्धांजलि
पं. कामताप्रसादजी जो इस समाज के संस्थापकों में थे व सर्वप्रथम जिन्होनें प्रधान पद को अलंकृत किया है तब से लेकर हमारे आज की महिला प्रधान श्रीमती पी. जयलक्ष्मीदेवी तक इन सौ वर्षों में जितने भी सज्जन आर्य समाज के अधिकार पदों पर रहे और जो पदों पर न रहते हुए भी समाज की सेवा में रत रहे हैं, मैं उन सभी के ज्ञात-अज्ञात चरणों में अपना मस्तक झुकाता हूँ। उनका स्मरण करता हूँ और उनके प्रति अपने हृदय की श्रद्धा व दिवंगतों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। आज यद्यपि राजनीति के दूषित प्रवाह व लोकेष्णा व पदलिप्सा की घृणित प्रवृत्ति ने जनसेवा के सुन्दर व विराट स्वरूप को विकृत करने में कोई कसर नहीं उठा रक्खी है। हमारे बडे-बडे मूर्धन्य अधिकांश कार्यकर्त्ता आज इस लिप्सा में डूब रहे हैं। इस संकुचित प्रवृत्ति का शिकार आज हमारे बडे-बडे साथी हो चुके हैं। किन्तु फिर भी महर्षि दयानन्द का तप व्यर्थ नहीं जायेगा। उनका तप रंग लायेगा और अवश्य लायेगा। सूर्य पर छाई बदरिया छटेगी और आर्य समाज की शक्ति करवट बदलेगी, यही हमारा दृढ विश्वास है। इसी विश्वास को हृदय में संजोए मैं और मेरे जैसे अनेक आर्य सेवक आज भी निष्काम भाव से आर्य समाज की मिशनरी से जुडे हुए हैं। जिनके जीवन की हर श्वास आर्य समाज की उन्नति के लिए और जन-जन की सेवा के लिये समर्पित है। ऐसे सभी ज्ञात-अज्ञात आर्य सेवकों का मैं अभिनन्दन करता हूँ।
भूखण्ड दान
अन्त में मैं पं. देवीदीनजी का पुण्य स्मरण करता हूँ जिनके सुपुत्र पं. राजाराम शास्त्री है, जिन्होंने करोडों रुपयों की भूमि आर्य समाज को दान स्वरूप प्रदान की है, जिसे हम देवीदीन बाग के नाम से जानते हैं। श्री मनसारामजी जिन्होंने नारायणगुडा में हमें एक हजार वर्गगज का भूखण्ड दान में दिया था, इन दोनों का पुण्य स्मरण और माता गेंदा बाई जिन्होने अपनी पति पं. देवीदीनजी की इच्छा के अनुरूप भूमि दान की, उन सभी के प्रति हूँ। श्रद्धा-सुमन अर्पित करता हूं। इसी आर्य समाज के अन्तर्गत देवीदीन बाग में आर्य कन्या विद्यालय चल रहा है जो पूरे विकास और प्रगति पर है। पहले यह एक छोटी सी पाठशाला थी जहाँ एक कमरे में बीस-पच्चीस छात्राएं पढ़ती थी। जब श्री सूर्यदत्तजी (सुपुत्र कामता प्रसादजी) इस समाज के प्रधान बने, उन्होंने और उनके साथियों ने मिलकर इस पाठशाला को पूर्ण विद्यालय का स्वरूप प्रदान किया और राज्य सरकार द्वारा अनुदान प्राप्त करा इसे राज्य सरकार के शिक्षा विभाग में मान्यता प्राप्त करायी।
धनराशि प्राप्त
पं. मनसारामजी द्वारा प्राप्त भूमि के विक्रय से जो धनराशि प्राप्त हुई थी, उसका विनियोग विद्यालय के भवन निर्माण में किया गया। तत्कालीन गृहमन्त्री श्री दिगंबर राव जी बिन्दू के कर कमलों से इस भवन की आधारशिला रखवायी गयी। इस विद्यालय की उन्नति में आगे चलकर श्री देवनाथ आर्य एवम् श्री पं. प्रशान्त कुमारजी ने उल्लेखनीय ध्यान दिया और आज विद्यालय के लिए उनके प्रयत्नों से आर्य समाज ने विशाल भवन बना दिया है। यह सब कुछ जनता जनार्दन की सेवा के लिए ही है। मैं नगर की जनता का आह्वान करता हूँ कि वे इस संस्था को अपना स्नेहपूर्ण सहयोग निरन्तर जारी रखें और इस संस्था से अपने आपको जोडें। इस आर्य समाज की प्रगति में महिलाओं के योगदान में स्वर्गीय माता विद्यावती (धर्मपत्नी भाई वंशीलालजी) और स्वर्गीय माता पाशम्मा जी का नाम उल्लेखनीय है। वर्तमान प्रधान श्रीमती जयलक्ष्मी देवी जो इस शताब्दी में प्रथम महिला प्रधान के रूप में इस समाज की प्रधान निर्वाचित हुई है तथा डॉ. सुनीतिजी जो हमारे समाज की सक्रिय सदस्य है वे अत्यन्त विदुषी, मृदुभाषी और आर्य जगत में ख्याति प्राप्त उपदेशिका हैं। श्रीमती सौभाग्यादेवी, श्रीमती सरलादेवी आदि ऐसी नारी जागरण की प्रतीक बहनों ने आर्य समाज की बागडोर आज संभाल रखी है।
आर्य समाज का सदस्य
परमात्मा कृपा करें कि इस समाज का क्षेत्र निरंतर विशाल होता जाये और यह समाज पूरे देश के समक्ष एक अनुकरणीय आर्य समाज के रूप में विख्यात हो। इस शताब्दी वर्ष में इस आर्य समाज के प्रधान श्रीमती जयलक्ष्मी देवी ने संकल्प किया है कि कम से कम सौ नये व्यक्तियों को आर्य समाज का सदस्य बनाया जाये। मैं सज्जन लोगों का आहवान करता हूँ कि वे इस आर्य समाज को अपनी संस्था मानकर आगे आयें और सहयोग का हाथ बढ़ायें। मैं आर्य समाज सुलतान बाजार की प्रधान श्रीमती पी. जयलक्ष्मीदेवी, उपप्रधान श्री नरदेवजी, मंत्री ऋषिवर आर्य और कोषाध्यक्ष मल्हार राव और अन्य पदाधिकारियों एवं सदस्यों को बधाई देना चाहता हूँ, जिनके कार्यकाल में इस शताब्दी समारोह का आयोजन हो रहा है। मैं आर्य जनता से अपील करता हूँ कि वे सब मिलजुलकर आर्य समाज के रथ को आगे की ओर बढ़ाये।
निजाम हैदराबाद राज्य
और आखिर में आज भारत के सुदूर प्रांतों और भूतपूर्व निजाम हैदराबाद राज्य से तथा नगरद्वय के जितने भी साथी सहयोगी यहाँ उपस्थित हैं, मैं उनका आर्य समाज सुलतान बाजार की ओर से हार्दिक स्वागत करता हूँ। श्रद्धेय स्वामी विद्यानंदजी सरस्वती जिन्होनें हमारी प्रर्थना को स्वीकार कर इस समारोह की अध्यक्षता को स्वीकार किया है उनका हृदय के समस्त भावों से मैं श्रद्धापूर्वक स्वागत करता हूँ और उनके सहयोग व पथ प्रदर्शन के लिए कृतज्ञता ज्ञापन करता हूँ। इसी के साथ मै सभी आमन्त्रित विद्वानों का अभिनंदन करता हूँ। मुझे विश्वास है महर्षि देव दयानन्द द्वारा प्रज्ज्वलित यह पवित्र अग्नि आर्य समाज सुलतान बाजार भी जिस अग्नि की एक चिंगारी है यह ज्वाजल्यमान नक्षत्र के रूप में सदा ही जनता का उचित प्रथ प्रदर्शन करता रहेगा।
शताब्दी समारोह
इस तपती ग्रीष्म ऋतु में देश के सुदूर प्रान्तों से आये हुए हमारे माननीय अतिथिगण जिस श्रद्धा और स्नेह भाव से हमारे मध्य उपस्थित हुए हैं हम उनका हार्दिक स्वागत करते है और हम यत्न करेंगे कि हमारे इन अतिथियों को किसी प्रकार की कठिनाई न झलेनी पडे। फिर भी सीमित साधनों के कारण कोई कष्ट और असुविधा हमारे इन अतिथियों को यदि हो तो वे हमें क्षमा करेंगे। अन्त में मैं पुनः आप सभी का हार्दिक स्वागत करते हुए प्रसन्नता का अनुभव करता हूँ और इतिहास की दूसरी शताब्दी में और अधिक गौरवशाली कार्यों द्वारा इतिहास बनाने का आह्वान करता हूँ। मुझे अकिंचन पर आपने जो दायित्व डाला है उसके लिए मैं अपनी हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ। अपने इस दायित्व का निर्वहन करने में मुझे इस शताब्दी समारोह के स्वागत मन्त्री श्री टी.वी. नारायण और कोषाध्यक्ष श्री. जयदेव बलदेवा, सर्वश्री जी. कृष्णा, जगदीश और नागप्पा का हार्दिक सहयोग मिला है जिसके लिए मैं उनका आभारी हूँ और अन्य सभी व्यक्तियों और संस्थाओं का जिन्होने इस महती आयोजन को सफल बनाने में अपना समुचित सहयोग और योगदान किया है, उन सभी का भी मैं धन्यवाद करता हूँ।
मिलजुलकर कार्य करने का संकल्प
आओ आज के इस शताब्दी समारोह पर हम अपने आप को आर्य समाज के लिए समर्पित करने का व्रत लें और अपने सभी मतभेदों को भुलाकर और अपने बीच में घुसआये निहित स्वार्थी और राजनीतिक पदलोलुप व्यक्तियों से आर्यसमाज के नेतृत्व और संगठन को बचाने तथा आर्यसमाज के गौरव को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए मिलजुलकर कार्य करने का संकल्प लें। महर्षि दयानन्द सरस्वती के सपनों का आर्यसमाज बनाने और जाति-धर्म-क्षेत्र-भाषा जैसी संकीर्ण विचार धारा से ऊपर उठकर संपूर्ण मानवता के कल्याण, विश्व शांति, सुख और मित्रता-प्रीति के लिए कार्य करने हेतु अपने आप समर्पित कर दें।
नमो ब्रह्मणे नमस्ते वायो त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मासि। त्वामेव प्रत्यक्षं ब्रह्मावादिशम। ऋतमवादिषम। सत्यमवादिषम। तन्मामावीत्। तद्वक्तारमावित्। आविन्माम्। आवक्तारम्। ओ३म् शान्तिश्शान्तिश्शान्तिः।
– पंडित गंगाराम जी वानप्रस्थी