[नोट- आर्य समाज के विवाह प्रमाणपत्र को मान्यता नहीं देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर हमने पाठकों से उनकी राय मांगी थी। साथ ही कहा था कि पाठकों के विचारों को तेलंगाना समाचार में प्रकाशित करेंगे। इसी के अंतर्गत हमने भक्तराम जी की पहली प्रतिक्रिया प्रकाशित की थी। इसी क्रम में अब आर्य प्रतिनिधि सभा के प्रधान विट्ठल राव जी आर्य और सुचित्रा चंद्र जी (प्राध्यापक) की प्रतिक्रिया प्रकाशित कर रहे हैं। हां, हम यहां विट्ठल राव आर्य की प्रतिक्रिया पढ़ने के बाद स्पष्ट करना हमारा कर्तव्य मानते है। हमने मीडिया में प्रकाशित और प्रसारित खबर के आधार पर ही खबर को प्रकाशित किया है। यदि आर्य समाज को कोई ठेस पहुंची है तो हम क्षमा पार्थी है। भविष्य में इस पर अवश्य ध्यान दिया जाएगा।]
खेद के साथ कहना पढ़ रहा है कि समाचार पत्रों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा आर्य समाज विवाह प्रमाणपत्र के बारे में लिया गया निर्णय जल्दबाजी का रहा है। यहां जारी प्रेस विज्ञति के जरिये आर्य प्रतिनिधि सभा के प्रधान विट्ठल राव आर्य ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने आर्य समाज द्वारा जारी किए जाने वाले विवाह प्रमाणपत्र पर कोई रोक नहीं लगाई है।
आज तक सुप्रीम कोर्ट के किसी भी बेंच ने इस प्रकार का कोई आदेश या निर्देश जारी नहीं किया। श्री विट्ठल राव आर्य ने कहा कि 3 जून को सुप्रीम कोर्ट में जो सुनवाई हुई थी उसमें भी दिए गए निर्णय निर्णय में आर्य समाज व प्रमाण पत्र जैसे शब्दों का प्रयोग तक नहीं हुआ है। ऐसे में मीडिया के महानुभाव द्वारा जल्दबाजी में निष्कर्ष निकालना समुचित नहीं है।
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आर्य समाज के विवाह प्रमाणपत्र को मान्यता नहीं देना घोर अन्याय है : भक्तराम
1937 में उस समय की सामाजिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए संसद में कानून लाया गया था कि हिन्दुओं में विभिन्न जातियों से संबंधित लड़के-लड़कियां शादी कर सकते हैं। विभिन्न धर्मो से सम्बंधित युवा भी आर्य समाज में दीक्षित होकर आर्य मैरेज (marriage) वेलिडेशन एक्ट 1937 के तहत विवाह कर सकते है। उसे क़ानूनन वैध माना जायगा।
समाज में सुधार लाने हेतु आर्य समाज ने बहुत काम किया है और आज भी जातीवाद को तोड़ने में मात्र आर्य समाज काम कर रहा है। उन्होने मीडिया से मांग की कि वह अपनी भूल को सुधारें। निवेदन है कि आगे से बिना प्रमाण के कोई समाचार प्रकाशित न करें।
– विट्ठल राव आर्य
सामाजिक हितकारी कार्य कराने में माननीय उच्चतम न्यायालय हमें प्रेरित करे
आर्य समाज मंदिर एक आदर्श और उच्चतम विचारों की वाहक तथा श्रेष्ठ परंपराओं को आगे बढ़ाने वाली संस्था है। आर्य समाज के नियम में ही है कि संसार का उपकार करना ही इस समाज का उद्देश्य है। तथा इस समाज ने सबसे श्रेष्ठतम कार्य यह किया है कि जाति प्रथा के कुचक्र से होने वाले अन्याय, अत्याचार को दूर कर सभी जातियों को समान हक देकर उन्हें गले लगाया है।
रोटी-बेटी का व्यवहार कर दुनिया में एक मिसाल कायम किया है। इस परंपरा का निर्वाह करते समय कुछ कमियां रह गई हो तो माननीय उच्चतम न्यायालय के सुझाव को और मार्गदर्शन को हम सहर्ष स्वीकार करेंगे। माननीय कोर्ट इस पर संज्ञान लेगा। हमें आशा ही नहीं अपितु विश्वास है कि हमारी भावनाओं और हमारे सामाजिक हितकारी कार्य कराने में माननीय उच्चतम न्यायालय हमें प्रेरित करेगा।
– सुचित्रा चंद्र (प्राध्यापक)