केंद्रीय हिंदी संस्‍थान: कमला प्रसाद मिश्र काव्‍य संचयन लोकार्पित, इन वक्ताओं ने डाला प्रकाश

हैदराबाद: केंद्रीय हिंदी संस्‍थान, भारत का उच्‍चायोग, स्‍वामी विवेकानन्‍द सांस्‍कृतिक केंद्र फिजी, अंतरराष्‍ट्रीय सहयोग परिषद तथा विश्‍व हिंदी सचिवालय के तत्‍वावधान में वैश्विक हिंदी परिवार की ओर से आभासी संगोष्‍ठी आयोजित की गई। संगोष्‍ठी में कमला प्रसाद मिश्र के साहित्यिक अवदान पर चर्चा हुई। इस दौरान फिजी के सुविख्‍यात कवि कमला प्रसाद मिश्र पर केंद्रीत डॉ सुरेश ऋतुपर्ण द्वारा संपादि‍त कमला प्रसाद मिश्र काव्‍य संचयन का लोकापर्ण भी किया गया। कार्यक्रम की अध्‍यक्षता फिजी में भारत के उच्‍चायुक्‍त पीएस कार्तिकेयन ने की।

संगोष्‍ठी की अध्‍यक्षता कर रहे कार्तिकेयन ने कवि कमला प्रसाद मिश्र के साहित्यिक योगदान की प्रशंसा की। उन्‍होंने बताया कि फिजी दुनियाभर में एक मात्र ऐसा देश है जहां सविधान में हिंदी को स्‍थान प्राप्‍त है। उन्‍होंने कहा कि भारत की आजादी के अमृत महोत्‍सव के दौरान स्‍वभाषा के विकास के लिए ढेर सारे कार्यक्रम जगह-जगह आयोजित किए जा रहे हैं। फिजी स्थित भारतीय उच्‍चायोग हर संभव सहयोग के लिए तत्‍पर है। फिजी में अगले विश्‍व हिंदी सम्‍मेलन की तैयारी चल रही है। उन्‍होंने कहा कि ऐसे कार्यक्रमों से हिंदी की नींव और अधिक मजबूत होगी।

संगोष्‍ठी के प्रांरभ में केंद्रीय हिंदी शिक्षण मण्‍डल के उपाध्‍यक्ष अनिल शर्मा जोशी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि कमला प्रसाद मिश्र फिजी के श्रेष्‍ठतम कवियों में गिने जाते हैं। उन्‍हें सरस्‍वती का वरदान प्राप्‍त था। वृंदावन में शिक्षित दीक्षित होने के कारण संस्‍कृत पर भी उनका विशेष अधिकार प्राप्‍त था। कहा जाता है कि तत्‍कालीन शीर्ष साहित्‍यकारों ने उनकी रचनाओं का सराहा था। कवीन्‍द्र रवीन्‍द्रनाथ टैगोर ने ताजमहल शीषर्क से बंग्‍ला भाषा में लिखी खुद की कविता की तुलना में कमला प्रसाद मिश्र की ताजमहल शीषर्क कविता को सराहा था। यह कविता कलकत्‍ता से प्रकाशित विशाल भारत अखबार में छपी थी। श्री मिश्र ने अपनी लंबी साहित्यिक यात्रा में कविता, गद्य, व्‍यंग्‍य के साथ-साथ संपादन जैसी विधा को भी समृद्ध किया। वे फिजी त्रयी (जोगेन्‍द्रर सिंह कवल, प्रो सुब्रमण्‍यम, कमला प्रसाद मिश्र) में शामिल थे।

श्री जोशी ने मिश्र जी के काव्‍य पर बेहतरीन काम के लिए सुरेश ऋतुपर्ण के परिश्रम की तारीफ करते हुए कहा कि मिश्र जी की रचनाएं दुनियाभर के लोगों के लिए धरोहर है, इसे अधिक से अधिक हिंदी सेवियों तक ले जाने की कोशिश होनी चाहिए। श्री जोशी ने कहा कि कमला प्रसाद जी के विलक्षण व्‍यक्तित्‍व का अंदाजा इस बात से होता है कि वे जितने फिजी के थे उतने ही भारत के भी। उनकी रचनाओं में भी भारत और फिजी समान रूप से विद्यमान है।

प्रख्‍यात लेखक और भाषा विद् डॉ विमलेशकांति वर्मा ने श्री मिश्र के साथ बिताए पलो को याद करते हुए साझा किया तथा कहा कि कमला प्रसाद मिश्र न सिर्फ कवि थे बल्कि वे एक सधे हुए गद्यकार भी थे। उनकी कविताओं पर काम हो रहा है इसी तरह उनके गद्य को भी दुनिया के सामने लाया जाना चाहिए। उनकी कुछ व्‍यंग्‍य रचनाओं को याद करते हुए वर्मा ने कहा कि यर्थाथ के धरातल पर जितने खरे मिश्र जी हैं उनके समकालीनों में वैसी धार नहीं दिखती। प्रजातंत्र कविता में वे लिखते हैं कि ‘प्रजातंत्र थोड़ा देता ज्‍यादा ले-लेता है।’ इसी तरह आधुनिकता के बारे में वे लिखते हैं कि ‘वही आधुनिक रचना है जिसमें मर्म नहीं है।’

केके बिरला फाउंडेशन के निदेशक तथा कमला प्रसाद मिश्र काव्‍य संचयन के संपादक डॉ सुरेश ऋतुपर्ण ने कहा कि कमला प्रसाद मिश्र हिंदी साहित्‍य, प्रवासी साहित्‍य का एक चमकता हुआ तेज पुंज है। उन्‍होंने प्रसिद्ध साहित्‍यकार विजय स्‍नातक द्वारा श्री मिश्र के बारे में की गई टिप्‍पणी ‘अगर कमला प्रसाद फिजी न गए होते तो भारत के बड़े कवि होते’ को उधृत किया तथा कहा कि मिश्र जी के साहित्‍य पर अभी और काम करने की जरूरत है।

उन्‍होंने कहा कि प्रस्‍तुत पुस्‍तक साहित्‍य अकादमी द्वारा प्रकाशित की गई है। अकादमी की अपनी सीमा है। हमें मिश्र जी की छुटी हुई रचनाओं को भी हिंदी संसार में फैलाना चाहिए। कमला प्रसाद मिश्र एक ऐसे विरले व्‍यक्ति थे जो दूर देश में रहकर भी भारत को जी रहे थे। श्री मिश्र ने कविता के अलावा संपादन में भी योगदान दिया है। जय फिजी, जागृति, फिजी समाचार का कठिन परिस्थितियों में संपादन किया। उनके व्‍यंग्‍य में इसकी पीडा दिखती है। ‘पी नट बेच लेना, जूते सी लेना, या रहना बेकार। लेकिन कभी स्‍वीकार न करना, संपादन का भार’।

अंतरराष्‍ट्रीय सहयोग परिषद के मानद निदेशक नारायण कुमार ने मिश्र जी की प्रतिभा का उल्‍लेख करते हुए कहा कि वे कई भाषाओं के जानकार थे। वे हमेशा जिज्ञासु बने रहते थे। एक संस्‍मण साझा करते हुए उन्‍होंने बताया कि एक बार मिश्र जी दिल्‍ली आए थे और संसद भवन घूमने गए थे। वहां उन्‍होंने संसद भवन के अधिकारियों से यह जानना चाहा था कि भगत सिंह किस स्‍थान से संसद में बम फेंके थे। और ताज्‍जुब की बात है कि कोई भी अधिकारी उस स्‍थल की सही-सही जानकारी नहीं दे सका जहॉं से शहीद ए आजम ने बर्तानवी सरकार को ललकारा था। मिश्र जी कहा करते थे कि साम्राज्‍यवादी साजिशों के कारण वे देश में भी परदेशी की तरह रहते रहे।

केंद्रीय हिंदी संस्‍थान की पूर्व छात्रा तथा फिजी की लेखिका सुभाषिनी लता कुमार ने कमला प्रसाद मिश्र के साहित्यिक देन पर चर्चा करते हुए उनकी मशहूर कविता सुमन की पंक्तियां मुस्‍करा लो और दो दिन’ उधृत करते हुए कहा कि श्री मिश्र जी जमीन से जुड़े रचनाकार थे। उन्‍होंने गांधी, गरीबी, किसान, तूफान, भारत और फिजी आदि पर समान रूप से कविताएं लिखी। उनकी परदेशी कविता भी खूब सराही गई। वे कहते हैं फिजी में पैदा होकर भी मैं परदेशी कहलाता।

आभासी संगोष्‍ठी की भूमिका प्रो राजेश कुमार ने रखी जबकि केंद्रीय हिंदी संस्‍थान मैसूर के क्षेत्रीय निदेशक परमान सिंह ने अतिथियों का स्‍वागत किया। कार्यक्रम के अंत में न्‍यूजीलैंड से जुड़े रोहित कुमार हैप्‍पी ने सभी का धन्‍यवाद ज्ञापन किया।

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