हैदराबाद (सरिता सुराणा की रिपोर्ट): विश्व भाषा अकादमी, भारत की तेलंगाना इकाई द्वारा ‘विश्व हिन्दी दिवस’ के उपलक्ष्य में ऑनलाइन मासिक गोष्ठी का आयोजन किया गया। इकाई अध्यक्ष सरिता सुराणा ने सभी अतिथियों और सदस्यों का हार्दिक स्वागत किया। यह गोष्ठी दो सत्रों में आयोजित की गई थी।
प्रथम सत्र में ‘विश्व पटल पर हिन्दी भाषा का प्रयोग’ परिचर्चा
प्रथम सत्र में ‘विश्व पटल पर हिन्दी भाषा का प्रयोग’ परिचर्चा का विषय रहा है। हिन्दी भाषा और साहित्य के मूर्धन्य विद्वान और प्रसिद्ध साहित्यकार बीएल आच्छा इस सत्र में अध्यक्ष एवं मुख्य वक्ता के रूप में मंचासीन रहे हैं। श्रीमती ज्योति नारायण की सरस्वती वन्दना से गोष्ठी का शुभारम्भ हुआ।
तत्पश्चात श्रीमती सुनीता लुल्ला ने प्रदत्त विषय पर अपने विचार रखते हुए कहा कि हिन्दी उदारवादी भाषा है। हम जब स्वयं हिन्दी भाषा को महत्व देंगे तो दूसरे लोग भी देंगे। हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हिन्दी में भाषण देते हैं। व्यावसायिक तौर पर सिनेमा, मनोरंजन और विज्ञापन की भाषा के रूप में हिन्दी का कोई मुकाबला नहीं कर सकता।
डॉ संगीता शर्मा ने कहा कि हिन्दी व्यापार वृद्धि में सहायक है। समाचार और मनोरंजन जगत हिन्दी भाषा का प्रयोग बहुतायत में करता है। श्रीमती रिमझिम झा ने- मैं हूं बिन्दी वतन की, लगा लो मुझे/ मैं हूं हिन्दी वतन की संभालो मुझे जैसी काव्यमय पंक्तियों के माध्यम से अपनी बात रखी।
श्रीमती ज्योति नारायण ने विदेशों में बसे गिरमिटिया मजदूरों द्वारा हिन्दी भाषा के विकास में दिए गए योगदान का उल्लेख करते हुए कहा कि आज हमारे देश से ज्यादा विदेशों में हिन्दी भाषा को सम्मान प्राप्त है। वहां पर बसे हुए भारतीय गर्व से हिन्दी बोलते हैं।
श्री सुहास भटनागर ने कहा कि हमें अपने हस्ताक्षर हिन्दी में करने चाहिए, हमारी नेमप्लेट हिन्दी भाषा में होनी चाहिए। हमें बेसिक कामों में ज्यादा से ज्यादा हिन्दी भाषा का प्रयोग करना चाहिए।
डॉ सुमन लता ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि मैं हमेशा त्रिभाषा सूत्र अपनाती हूं। जहां पर जिस भाषा की आवश्यकता महसूस होती है, मैं उसी का प्रयोग करती हूं। मैं बनारस में पैदा हुई इसलिए मेरा नाम हिन्दी में रखा गया। तेलुगु भाषा में इसका उच्चारण दूसरी तरह से होता है। बहुत लोगों ने मेरा नाम बदलने की सलाह दी लेकिन मैंने कहा कि मेरा नाम हिन्दी भाषा से लिया गया है इसलिए बदलने का सवाल ही नहीं उठता।
सरिता सुराणा ने कहा कि वर्तमान समय में विदेशों में हिन्दी भाषा का प्रयोग एवं प्रचार-प्रसार दो रूपों में होता है- एक तो अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा, इटली, बेल्जियम, चेकोस्लोवाकिया, नार्वे, स्वीडन, चीन, जापान पोलेण्ड, मैक्सिको और ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में हिन्दी भाषा को विश्व भाषा के रूप में विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता है।
दूसरी श्रेणी में वे देश आते हैं जहां पर भारत से जाने वाले प्रवासी भारतीय और भारतवंशी लोग बड़ी संख्या में निवास करते हैं और जिनकी मातृभाषा हिन्दी है। इनमें मॉरीशस, सूरीनाम, त्रिनिदाद और टोबैगो, फिजी, गुयाना, थाइलैंड, मलेशिया, नेपाल और श्रीलंका शामिल हैं। विदेशों में पाठ्यक्रम में हिन्दी भाषा को शामिल करना हमारे लिए गर्व की बात है। आज इन सभी देशों में हिन्दी भाषा में अनेक पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित होती हैं। आकाशवाणी और दूरदर्शन पर हिन्दी भाषा में कार्यक्रम प्रसारित होते हैं।
अध्यक्षीय उद्बोधन में श्री बीएल आच्छा जी ने कहा कि राहुल सांकृत्यायन की घुमक्कड़ी प्रवृत्ति के कारण वे सब जगह जाने जाते हैं, उसी तरह हमारे भारतवंशी अपने साथ-साथ अपनी भाषा और साहित्य को भी ले गए। भाषा केवल भाषा नहीं है, उसके साथ संस्कृति और संस्कार जुड़े हैं। उन्होंने भवानी प्रसाद मिश्र के कथन का उदाहरण देते हुए कहा कि बाजार के विकास के साथ संवेदनाएं जुड़ी होती हैं। आज चीन हमारी संवेदनाओं को समझते हुए दीपक से लेकर बंदनवार तक और पतंग से लेकर सजावट का सामान तक बना रहा है।
हिन्दी के लेखक सर्वेश्वरदयाल सक्सेना को जर्मनी तक में पढ़ा जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि आज हिन्दी भाषा विश्व भाषा के रूप में विदेशों में जानी जाती है। लगभग 150 विश्वविद्यालयों में हिन्दी भाषा पढ़ाई जाती है, यह हमारे लिए गर्व की बात है।
द्वितीय सत्र में काव्य गोष्ठी
द्वितीय सत्र में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें श्रीमती भावना पुरोहित, श्रीमती आर्या झा, श्रीमती रिमझिम झा, डॉ संगीता शर्मा, डॉ सुमन लता, श्रीमती सरिता सुराणा, श्रीमती सुनीता लुल्ला, श्रीमती ज्योति नारायण ने नववर्ष और हिन्दी दिवस से सम्बन्धित रचनाओं का पाठ किया। अन्त में श्री सुहास भटनागर ने अध्यक्षीय काव्य पाठ करते हुए अपनी उत्कृष्ट रचनाओं का पाठ करके सभी सदस्यों को अभिभूत कर दिया।
तेलंगाना इकाई की कार्यकारिणी समिति के गठन का एक वर्ष पूर्ण होने पर कार्यकारिणी का पुनर्गठन किया गया। कुछ नए सदस्यों को इसमें शामिल किया गया। सभी सहभागियों ने सारगर्भित परिचर्चा सत्र की मुक्त कंठ से प्रशंसा की। प्रथम सत्र का संचालन सरिता सुराणा ने किया और द्वितीय सत्र में काव्य गोष्ठी का संचालन श्रीमती ज्योति नारायण ने किया। श्रीमती आर्या झा के धन्यवाद ज्ञापन के साथ गोष्ठी सम्पन्न हुई।