हैदराबाद (सरिता सुराणा की रिपोर्ट): सूत्रधार साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था, हैदराबाद, भारत द्वारा आयोजित 55 वीं मासिक गोष्ठी में उपस्थित सभी सदस्यों का संस्थापिका सरिता सुराणा ने हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन किया। यह गोष्ठी दो सत्रों में आयोजित की गई थी। श्रीमती रिमझिम झा द्वारा प्रस्तुत स्वरचित सरस्वती वन्दना से गोष्ठी प्रारम्भ हुई। प्रथम सत्र में उपस्थित सभी सदस्यों ने स्वतंत्रता सेनानियों के किस्से सुनाए।
ममता सक्सेना ने स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े हुए अपनी दादी-नानी के किस्से सुनाते हुए कहा कि वे घर से खाना बनाकर रेलवे स्टेशन लेकर जाती थी और चुपके से स्वतंत्रता सेनानियों को देती थीं। ज्योति गोलामुडी ने कहा कि स्वतंत्रता का अर्थ है स्वानुशासन। यह घर से प्रारम्भ होना चाहिए। इसमें माँ की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है। माँ को अपने बच्चों में संस्कारों का बीजारोपण करने के साथ-साथ चरित्र निर्माण पर भी ध्यान देना चाहिए। कुसुम सुराणा ने कहा कि एक नागरिक होने के नाते हमें अपने कर्तव्यों को पूरा करना चाहिए। पर्यावरण की स्वच्छता हो या प्राकृतिक संसाधनों का सदुपयोग, हमें सदैव जागरूक रहना चाहिए।
सुनीता लुल्ला ने स्वतंत्रता के समय विभाजन की त्रासदी से गुज़रे अपने पारिवारिक जनों के संस्मरण साझा किए। किरन सिंह ने अंडमान निकोबार द्वीप समूह की यात्रा से सम्बन्धित संस्मरण साझा करते हुए सेल्यूलर जेल की स्थिति का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया। उसे सुनकर उपस्थित सभी सदस्यों की आँखें नम हो गईं। सरिता सुराणा ने स्वतंत्रता आन्दोलन के समय तिरंगा झण्डा फहराने हेतु एकत्रित हुए स्वतंत्रता सेनानियों के सामूहिक नरसंहार के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि पंजाब में हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड के बारे में हम सभी जानते हैं लेकिन आंध्र-प्रदेश के जलियांवाला बाग हत्याकांड के बारे में लोगों को बहुत कम जानकारी है।
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तृप्ति मिश्रा ने कहा कि स्वतंत्रता आन्दोलन में महिलाओं की भूमिका को नहीं भूलना चाहिए। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से लेकर बेगम हजरत महल और सावित्रीबाई फुले तक सबने अपना-अपना योगदान दिया। सभी सहभागियों ने एकमत से इस बात को स्वीकार किया कि यह आजादी हमें बहुत मुश्किल से मिली है, हमें इसकी रक्षा हेतु अपने कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक पालन करना चाहिए। सभी स्वतंत्रता सेनानियों को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
साथ ही साथ हैदराबाद के प्रसिद्ध शायर मख़्दूम मोहिउद्दीन की पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की गई।अध्यक्षता करते हुए विनीता शर्मा जी ने कहा कि आज़ वे सिर्फ सबको सुनेंगी। स्वास्थ्य सम्बन्धी कारणों से उन्होंने कुछ बोलने में असमर्थता जताई। उन्होंने सभी सहभागियों को अपना आशीर्वाद प्रदान किया।
द्वितीय सत्र में स्वतंत्रता संग्राम और जन्माष्टमी पर्व से सम्बन्धित रचनाओं का पाठ किया गया। उपस्थित सभी सदस्यों ने एक से बढ़कर एक शानदार प्रस्तुतियां दीं। गीत, ग़ज़ल, नज़्म और लोकगीतों से सजी हुई इस काव्य गोष्ठी का सभी सदस्यों ने भरपूर आनन्द उठाया। श्रीमती तृप्ति मिश्रा ने गोष्ठी का सफलतापूर्वक संचालन किया।
इस गोष्ठी में श्रीमती विनीता शर्मा, श्रीमती तृप्ति मिश्रा, श्रीमती किरन सिंह, श्रीमती ज्योति गोलामुडी, श्रीमती ममता सक्सेना, श्रीमती रिमझिम झा, श्रीमती कनक पारख, श्रीमती कुसुम सुराणा, बिनोद गिरि अनोखा, श्रीमती सुनीता लुल्ला और अन्य सदस्यों की उपस्थिति रही हैं। सरिता सुराणा ने सभी सदस्यों का हार्दिक आभार व्यक्त किया।