कादम्बिनी क्लब: ‘वर्तमान समय में स्त्रियों की स्थिति तथा ग़ज़लों में स्त्रियों के हालात’ विषय पर इन वक्ताओं ने की संदेशात्मक टिप्पणी

हैदराबाद : कादम्बिनी क्लब हैदराबाद के तत्वावधान में 15 दिसंबर को गूगल मीट के माध्यम से क्लब की 389वीं मासिक गोष्ठी का सफल आयोजन संपन्न हुआ। प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी देते हुए क्लब अध्यक्ष डॉ अहिल्या मिश्र एवं कार्यकारी संयोजिका मीना मुथा ने बताया कि प्रथम सत्र की अध्यक्षता डॉ अहिल्या मिश्र ने की। सास्मिता नायक द्वारा निराला रचित सरस्वती वन्दना की सुमधुर प्रस्तुति दी गई।

डॉ अहिल्या मिश्र ने पटल पर उपस्थित साहित्यकारों का शब्द कुसुमों से स्वागत करते हुए कहा कि संस्था अपने 31वें वर्ष में अपने साहित्यिक यात्रा को आगे बढ़ाते हुए हिंदी की सेवा में निरंतर नवांकुरों को जोड़ रहा है। उन्होंने बताया कि प्रथम सत्र में शशी जोशी ‘वर्तमान समय में स्त्रियों की स्थिति तथा ग़ज़लों में स्त्रियों के हालात’ विषय पर अपने विचार रखेंगी। मुख्य अतिथि सुरेंद्र मिश्रा होंगे। डॉ मिश्र ने क्लब की गतिविधियों की संक्षिप्त में जानकारी रखी।

संगोष्ठी सत्र संयोजक अवधेश कुमार सिन्हा ने विषय प्रवेश कराया और शशी जोशी का संक्षिप्त परिचय देते हुए कहा कि आप हिंदी के प्रचार प्रसार में बचपन से ही कार्यरत रही हैं तथा अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर कई सम्मनों से सम्मानित हो चुकी हैं। विषय के संबंध में बताते हुए उन्होंने आगे कहा कि हिंदी में ग़ज़ल का पदार्पण 1975 में हुआ। अब तक जितने ग़ज़लकार हुए हैं उन में महिला गजलकारों की संख्या नगण्य है।

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मुख्य वक्ता शशी जोशी ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारतीय साहित्य का गौरवशाली इतिहास है। ग़ज़ल कविता का ही एक प्रकार और यह आयातित विधा है। हिंदी उर्दू के आंगन में यह विधा ख़ूब पनपी है। अरबी फारसी में अलग-अलग तरह से ग़ज़ल को परिभाषित किया गया है। आज का दौर भूमंडलीकरण का दौर है। महिलाएँ स्वावलंबी हुईं। विकास भी किया है। लेकिन अत्याचार, शोषण, उपेक्षा की शिकार आज भी हो रही हैं। आज भी हमारी सोच जहाँ की वहाँ है। उन्होंने अमीर ख़ुसरो, डॉ कुँवर बेचैन, डॉ रोहिताश्व, अस्थाना, अशोक अंजुम, महाश्वेता चतुर्वेदी आदि ग़ज़लकारों का उल्लेख करते हुए उनमें चित्रित की गई स्त्रियों की स्थिति की बात की।

सुरेंद्र मिश्रा, सुनीता लुल्ला, आर्या झा, डॉ आशा मिश्रा मुक्ता, शिल्पी भटनागर ने भी ग़ज़ल में स्त्रियों की स्थिति एवं ग़ज़ल लेखन में स्तरीय ग़ज़लकारों के न्यूनतम संख्या पर अपने मत व्यक्त किए।

सत्र का समापन करते हुए अवधेश कुमार सिन्हा ने कहा कि बदलाव का दौर चल रहा है। आगे बढ़ने की आवश्यकता है। मिर्ज़ा ग़ालिब, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ आदि जैसे नामचीन ग़ज़लकारों को आज याद किया गया। उन्होंने गजलकारों को हिदायत दी कि लिखने तक ही न रुकें स्वयं अपने घरों में भी उसका अनुकरण अनुसरण करें।

डॉ अहिल्या मिश्र ने अपनी टिप्पणी में कहा कि गार्गी मैत्रेयी का युग था तो सीता का भी युग था। वस्तुकरण में नारी फिर से अपना स्वरूप प्राप्त कर रही है। स्त्रियों को हस्ताक्षर करने का अवसर ही नहीं दिया जाता था। खुशी की बात है कि आज स्त्री बदलाव की ओर है।

दूसरा सत्र कवि गोष्ठी का हुआ जिसकी अध्यक्षता डॉ मदन देवी पोकरणा ने की। इंदु सिंह, स्वाति गुप्ता, भावना पुरोहित, रेखा अग्रवाल, दर्शन सिंह, हर्षलता दुधोडिया, शोभा देशपांडे, चंद्रलेखा कोठरी, रमा बहेड, सुनीता लुल्ला, वर्षा शर्मा, शीला भनोत, आर्या झा, अवधेश कुमार सिन्हा, सरिता दीक्षित, भगवती अग्रवाल, तृप्ति मिश्रा, शशि जोशी, मीना मुथा, डॉ अहिल्या मिश्र ने काव्य पाठ में भाग लिया।

डॉ रमा द्विवेदी, डॉ उषा रानी राव, सुरेन्द्र मिश्र, प्रवीण प्रणव, डॉ आशा मिश्रा, मोहिनी गुप्ता, उमेश चंद्र श्रीवास्तव की उपस्थिति रही। तकनीकी सहयोग शिल्पी भटनागर की ओर से दिया गया। तृप्ति मिश्रा ने सत्र का धन्यवाद ज्ञापित किया। मीना मुथा ने कार्यक्रम का संचालन किया। पटल पर उपस्थित सदस्यों को आगामी नववर्ष हेतु क्लब की ओर से बधाई दी गई।

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