हैदराबाद (रिपोर्ट सरिता सुराणा): सूत्रधार साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था, भारत हैदराबाद द्वारा गत दिनों 33वीं मासिक गोष्ठी का आयोजन किया गया। यह गोष्ठी हिन्दी साहित्य की संस्मरण विधा पर आयोजित की गई थी। संस्थापिका सरिता सुराणा ने सभी सदस्यों का हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन किया। श्रीमती शुभ्रा मोहन्तो ने सरस्वती वन्दना से कार्यक्रम का शुभारम्भ किया।
प्रथम सत्र में संस्मरण विधा पर अपने विचार रखते हुए कहा कि स्मृति के आधार पर किसी विषय पर अथवा किसी व्यक्ति पर लिखित आलेख संस्मरण कहलाता है। यात्रा साहित्य भी इसके अन्तर्गत आता है। संस्मरण को साहित्यिक निबन्ध की एक प्रवृत्ति भी माना जा सकता है। छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा जी संस्मरण लेखन में अत्यन्त ही उच्च पद की अधिकारिणी हैं।
इनके संस्मरणों में- ‘अतीत के चलचित्र’ (सन् 1941), ‘स्मृति की रेखाएँ’ (सन् 1943) और ‘पथ के साथी’ (सन् 1956) प्रमुख हैं। उन्होंने स्मृति के पात्रों के साथ स्वयं को इस प्रकार बाँधा है कि पात्रों की जीवंतता के साथ उनका जीवनादर्श भी प्रकट होता है।
दर्शन सिंह ने अपनी बात रखते हुए कहा कि संस्मरण गद्य साहित्य की उस विधा को कहते हैं, जिसमें लेखक अपने जीवन की अनंत स्मृतियों में कुछ विशिष्ट अनुभूतियों को अपनी कोमल कल्पना से अलंकृत करके लाक्षणिक शैली एवं निजी विशिष्टताओं का संबल देकर रोचक तथा आकर्षक रूप से चित्रित करता है। आज़ संस्मरण एक स्वतंत्र प्रतिष्ठित साहित्यिक विधा बन चुकी है। डॉ. सुरभि दत्त, भावना पुरोहित और प्रदीप देवीशरण भट्ट ने भी इस विषय पर अपने विचार रखे।
द्वितीय सत्र में कार्यक्रम की मुख्य अतिथि विख्यात कहानीकार श्रीमती बीना अवस्थी ने अपने रोचक संस्मरण सुनाए। साथ ही अजय कुमार पाण्डेय ने रेलवे में काम करने के दौरान होने वाले अपने संस्मरणों को साझा किया। उसी तरह डॉ. संगीता शर्मा, किरन सिंह, संतोष रजा गाजीपुरी, बिनोद गिरी अनोखा, आर्या झा, भावना पुरोहित, दर्शन सिंह, अंशु श्री सक्सेना, डॉ. सुरभि दत्त, प्रदीप देवीशरण भट्ट और हिम्मत चौरड़िया ने विद्यार्थी जीवन और दैनिक जीवन से सम्बन्धित अपने रोचक संस्मरण प्रस्तुत किए।
अंत में सरिता सुराणा ने अपने विद्यार्थी जीवन का रोचक संस्मरण प्रस्तुत किया। तेलंगाना समाचार के सम्पादक के राजन्ना भी गोष्ठी में उपस्थित थे। सभी ने इस गोष्ठी को अत्यन्त सफल और सार्थक बताया और कहा कि इस गोष्ठी के दौरान उन्होंने अपने बचपन और स्कूल जीवन की यादों को ताज़ा किया। ऐसी गोष्ठियां होती रहनी चाहिए। डॉ. संगीता शर्मा के धन्यवाद ज्ञापन के साथ गोष्ठी सम्पन्न हुई।