WAJA: क्रांतिकारी कवि निखिलेश्वर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर चर्चा गोष्ठी संपन्न, बोले-“मिट्टी से जुड़े कवि”

हैदराबाद (देवा प्रसाद मयला की रिपोर्ट) : सोमवार को राइटर्स एंड जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन (WAJA) तेलंगाना इकाई के तत्त्वावधान में क्रांतिकारी कवि और केन्द्रीय साहित्य अकादमी पुरस्कार ग्रहिता निखिलेश्वर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर ज़ूम चर्चा गोष्ठी संपन्न हुई।
कार्यक्रम की अध्यक्षता वाजा के अध्यक्ष एनआर श्याम और वाजा के महासचिव देवा प्रसाद मयला ने संचालन किया।

निखिलेश्वर मिट्टी से जुड़े कवि

इस अवसर पर अपने वक्तव्य में मुख्य अतिथि डॉ अहिल्या मिश्र ने कहा कि निखिलेश्वर तेलंगाना के मिट्टी से (यहाँ के संस्कारों से, परंपराओं से, रचनाधर्मिता से) जुड़े कवि हैं। समूचे देश और समूचे विश्व के कवि हैं। 60 वर्षों से उनकी कविताएं लोगों को प्रभावित करती आ रही हैं, आगे भी प्रभावित करेंगी। वे आशावादीव कवि हैं। आशावादिता उनके मूलधर्म में है। डॉ अहिल्या ने उन्हें मोमबत्ती से तुलना की और कहा कि मोमबत्ती भले ही जलते हुए कम हो जाए, मगर उसकी गर्मी और रोशनी वैसी ही रहती हैं। निखिलेश्वर में इतना तत्व भरा हुआ है कि उनकी उस युग में कही गई बातें आज भी सार्थक है। वे आज भी दृढ़ता के साथ खड़े हैं। उनमें संघर्ष है, क्रांति है और साथ ही शांति भी है, जिसकी ध्वनि दूर तक सुनाई देती है। ‘तृष्णा’, ‘एक शब्द’ तथा ‘बर्बर’ कविताओं का पाठ करते हुए उन्होंने निखिलेश्वर जी के कृतित्व पर प्रकाश डाला और बिहारी का एक दोहा सुनाकर कहा कि निखिलेश्वर की कविता छोटी होने पर गंभीर प्रभाव छोड़ती है।

निखिलेश्वर संपूर्ण भारत के धरोहर हैं

विशेष अतिथि और राष्ट्रीय वाजा इंडिया के महासचिव शिवेन्द्र प्रकाश द्विवेदी ने वाजा इकाई के सभी सदस्यों को इस विशेष कार्यक्रम के आयोजन के लिए बधाई दी। कहा कि निखिलेश्वर ने आधी सदी से अधिक समय साहित्य को दिया है और यह कालखंड गवाही देता है निखिलेश्वर का व्यक्तित्व कितना बड़ा है। उन पर चर्चा के लिए सभा तीन घंटे से अधिक समय के लिए बैठी है तो भी कम है। इतना कुछ कहे जाने के बाद भी कुछ छूटता सा लग रहा है। वे तेलुगु साहित्य की संपदा ही नहीं, हमारी भारतीय परंपरा के वाहक हैं। संपूर्ण भारत के धरोहर हैं। उन्हें एक सीमा में नहीं बांधा जा सकता है। उनकी कविताओं पर अनेक गोष्ठियां होनी चाहिए।

विद्रोह से क्रांति तक

वाजा के महासचिव देवा प्रसाद मयला ने ‘निखिलेश्वर’ शीर्षक ले लिखी अपनी कविता का पाठ किया। डॉ टीसी वसंता ने निखिलेश्वर के कृतित्व एवं व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि बचपन में ही पिता चल बसे और थोड़ी बहुत जमीन थी वह भी चली गई। इसके चलते उनकी मां हैदराबाद आई और चारमीनार फ़ैक्टरी में 30 सालों तक मज़दूरी करते हुए इकलौती संतान को पालपोसकर बड़ा किया। उन्होंने निखिलेश्वर को जड़ों से जुड़ा कवि कहा, जिसकी यात्रा विद्रोह से क्रांति तक की रही है।

दिगंबर कविताओं के तीन संकलन

डॉ शकुंतला रेड्ड ने स्मरण किया कि उनके पति निखिलेश्वर के मित्र थे। उन दिनों एक बार निखिलेश्वर के घर पर उनकी एक सौ एक कविताओं के संकलन पर चर्चा की थी। शकुंतला रेड्डी ने उनकी कविता ‘डर’ का पाठ करके उसके अंशों का सुंदर वर्णन किया। यह भी बताया कि दिगंबर कविताओं के तीन संकलन निकाले गये। पहले संकलन का लोकार्पण एक श्रमिक के हाथों, दूसरे संकलन का एक होटल के सर्वर के हाथों और तीसरे संकलन का एक बिखारिन के हाथों करवाया गया। समाज की गंदगी हटाने हेतु दिगंबर कविता का सृजन हुआ है। निखिलेश्वर की हिन्दी में अनूदित कविता की पंक्तियों के साथ उन्होंने अपनी बात को विराम दिया।

निखिलेश्वर एक महान ग्रंथ हैं

वाजा के सांगठनिक सचिव और पत्रकार के राजन्ना ने कहा कि निखिलेश्वर एक महान ग्रंथ हैं जो हमें वरदान के रूप में मिला है। उन्होंने इच्छा प्रकट की कि सरकार निखिलेश्वर की जीवनी को पाठ्यपुस्तकों में शामिल करें। राजन्ना स्वयं को धन्य मानते हैं कि निखिलेश्वर के करकमलों से उनकी पुस्तक ‘फाँसी’ का लोकार्पण हुआ है।

समाज में न्याय की स्थापना

डॉ सुरभि दत्त ने निखिलेश्वर की तीन कविताओं ‘समय के साथी’, ‘समय’ तथा ‘कब तक सिकुड़ते जाओगे’ से उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर प्रकाश डाला है। कहा कि अन्याय का विरोध होगा तो समाज में न्याय की स्थापना होगी। हमें ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए कि एक दिन मौत के सामने शर्मिन्दा होना पड़े। निखिलेशवर ने अपना सारा जीवन मानवता की सेवा के लिए अर्पित कर दिया। क्रांति एक ऐसा शब्द है जो मनुष्य में परिवर्तन लाने को प्रेरित करती है। जनता में बहुत कष्ट हैं, दु:ख हैं जिन्हें समझकर अपनी वाणी में मुखरित करना और प्रशासन तक पहुंचाना, इसके लिए जीवन समर्पित कर देना बड़ी बात है। निखिलेश्वर एक लक्ष्य को लेकर जीवन की यात्रा में आगे बढ़े हैं। आपने आम आदमी के स्वभाव को उकेरा है। हम भीतर एक जंग लड़ते हैं बाहर के जंग को जीतने के लिए।

पिल्लर नंबर बने पते

डॉ जतिन कुमार ने कहा कि निखिलेश्वर अपनी कविताओं में चिंता व्यक्त करते हैं कि प्रकृति कब तक विनाश सहन करेगी। पानी से निकली मछली कैसे तड़पती है। निखिलेश्वर की आशावादिता को सकारात्मक स्पंदन मिला है। बड़ी मछली के सामने छोटी मछली तब तक टिकी रह सकती है जब तक उस पर बड़ी मछली की कृपा बनी रहती है। कवि चाहते हैं कि विद्या और विज्ञान की पहुंच केवल अमीरों तक सीमित न हो। इसी प्रकार अनेकानेक उदाहरण देकर निखिलेश्वर की कविताओं की महानता प्रकट की है। निखिलेश्वर ने चार दशाब्दियों से शहर के बदलते हालात के बारे में भी वर्णन किया है। लोगों के पते बदलकर अब पिल्लर नंबर बन गये हैं। मनुष्य के जीवन में ऋतुएं बदलती हैं, किन्तु बहुत लोगों के जीवन में केवल ग्रीष्म ऋतु बनी रहती है।

कृषक देश की रीढ़ की हड्डी

डॉ नालेश्वरम् शंकरम ने कहा कि जैसे एक कृषक देश की रीढ़ की हड्डी होता है, वैसे ही निखिलेश्वर साहित्य की रीढ़ की हड्डी हैं। वे जो भी कहते हैं सटीकता से बिना हिचक के कहते हैं। इनका जीवन सरल और साधारण रहा है। जात-पात के विरोधी रहे हैं। उनके दस कविता-संग्रह उनके दशावतार जैसे हैं। उनकी कविताओं में चुम्बकीय आकर्षण है। नालेश्वरम ने निखिलेश्वर कविताओं की गहराइयों में जाकर ख़ज़ाना बटोर लाते रहे हैं। कविताओं का मूल्य समझाते रहे हैं।

सोती युवा पीढ़ी को जगाया

वाजा के उपाध्यक्ष और साहित्यकार बी मुरलीधर ने कहा कि वे निखिलेश्वर की कविताएं बचपन से ही सुनते आ रहे हैं। उनकी कविताओं की सटीकता के लिए वे अरेस्ट भी हुए हैं। क्रांति के लिए स्वर उठाने वाले कवि के बारे में कुछ बोलना यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है। ऐसे कवि को केन्द्रीय साहित्य अकादमी पुरस्कार बहुत पहले ही मिलना चाहिए था, मगर 2020 मिला है। उनकी पुस्तक ‘मंडुतुन्ना स्वरम्’(धधकता का स्वर) को लोगों को बहुत प्रभावित किया है। इस पुस्तक ने सोती युवा पीढ़ी को तमाचा मार कर जगाया है। मुरलीध ने निखिलेश्वर को नमन करते हुए उन पर लिखी अपनी कुछ पंक्तियां पढ़ कर सुनाई।

डॉ श्रीलक्ष्मी ने डाला प्रकाश

डॉ श्रीलक्ष्मी ने निखिलेश्वर की पुस्तक ‘युगस्वरम्’ में से दो कविताएं ‘युगाण्वेषण’ और ‘युग की आवाज़’ कविताओं का विश्लेषण करते हुए उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला है। कहा कि जनतंत्र के नारों से भरी कविताओं में शालीनता एवं सरलता है। वैश्वीकरण की समस्याएं सुलझाने के लिए मनुष्य के पास आंदोलन के सिवा कोई रास्ता नहीं रह गया है।

क्रांतिकारी कवि निखिलेश्वर का स्पंदन

क्रांतिकारी कवि निखिलेश्वर ने स्पंदन के अंतर्गत अपने दो शब्द में वाजा के कार्यक्रम की सराहना की और सभी वक्ताओं को धन्यवाद ज्ञापित किया। उन्होंने अपने जीवनी, आंदोलन, छह दशाब्दियों की तेलुगु-हिन्दी-अंग्रेज़ी कविता और अनुवाद पर संक्षिप्त में प्रकाश डाला। दो पंक्तियों में कहा- “यह अग्निश्वास मेरी अंतरंग की भाषा, यह है श्रमजीवन संघर्षों की गाथा है।”। उन्होंने आगे कहा कि वह सर्वहारा की आज़ादी, नागरिक अधिकार, सामाजिक समस्याओं को सुलझाने के लिए आवाज उठाई हैं। इस दौरान उन्होंने ‘इतिहास के मोड़ पर’ कविता की पंक्तियां पढ़कर सुनाया।

एनआर श्याम ने कहा…

वाजा तेलंगाना इकाई के अध्यक्ष एनआर श्याम ने अपने अध्यक्षीय भाषण में वक्ताओं के कथन को संक्षिप्त में समेट दिया। छह दिगंबर कवियों के वास्तविक नाम के साथ-साथ जाति से मुक्त रहने के लिए उनके बदले हुए नामों को लेकर उनकी कविताओं का संक्षिप्त में महत्व समझाया और कहा कि निखिलेश्व की कविताओं पर कुछ गोष्ठियां होनी चाहिए।

धन्यवाद ज्ञापन

अंत में डॉ श्रीलक्ष्मी ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कार्यक्रम में शामिल वाजा के पदाधिकारी, वक्ता, कार्यक्रम से जुड़े साहित्यकार और कवि परमेश्वर, लिंगम राव, साईप्रिया, तृप्ति और अन्य के आभार व्यक्त किया।

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