आजादी के दो सौ साल पूर्व हमारा देश सोने की चिड़िया कहलाता था। उसके 700 वर्ष पूर्व तो हमारे देश में सोना ही सोना था। कुछ बाहरी तत्वों ने हमारे देश में बिल्ली की भांति अति चुपके से पगडंडी जमाई। अन्य देशों में जब लोग आदि मानव के जैसे जीवन जीतें थे। तब दस हजार वर्ष पूर्व रामायण की सभ्यता थी और पांच हजार वर्ष पूर्व कृष्ण की संस्कृति थी।
हम शांति से जीवन व्यतीत कर रहें थे। किंतु अधिक सत्ता लालसा अनर्थ कर देती हैं। रामायण के समय में कैकयी की अपने पुत्र प्रति अधिक ममता सत्ता लालसा बनी थी और महाभारत काल में धुतराष्ट्र की तीव्र सत्ता लालसा सभी अनर्थो का मूल बनीं थीं। फिर पिछले सालों से जब हम इतिहास पढ़ रहे हैं। बाहरी तत्वों ने सत्ता लोलुपता को ध्यान में रखते हुए देशद्रोहियों को निसान बनाया। सभी राजाओं अकारण आपस में लड़ लेते थे। सामने वालों को हराकर उसका राज्य हड़प लेना, यही कारण अपनी सत्ता का विस्तार करना बतातीं थी।
सत्ता का बड़ा लालच दिखाया जाता
कुछ लोग विदेशियों के सामने फूट गये। उन्हें सत्ता का बड़ा लालच दिखाया जाता था। सोने की चिड़िया सादी चिड़िया बनकर अपने ही घर के पिंजरे में कैद हो गई। देश में अंधकार युग छाने लगा। सभी के मानस पटल में गुलामी घर कर गई। कुछ क्रांतिकारियों और स्वतंत्र सेनानियों ने देश में सोये हुए लोगों में जागरूकता लाने की शुरुआत करीं। देश के लिए कितने छोटी- छोटी आयु वालें युवा शहिद हो गये। अभी भी देश में लोगों का खून उबलता नहीं है। विभिन्न तरीकों से देश में जन जागृति अभियान चलाया गया। अब धीरे धीरे चारों ओर आजादी के लिए जन जागृति आने लगी। धर्म के नाम से देश के दो टुकड़े किए गए। आजादी के समय हमने देश का हिस्सा गंवाया।
जनता में देश प्रेम की जरूरत
फिर देश पर 70 सालों तक राज करने वाली पार्टी ने तो हमें चुहे की भांति कुतर कुतर कर खाया। फिर भी देश सहन करता रहा। पिछले कुछ सालों से जब देश की पार्टी बदली गई। तब भारत माता का भाग्योदय हुआ! अभी हमारे देश का नाम विश्व के नक्शे में अंकित हो गया है। अभी भी देश की जनता में देश प्रेम की जरूरत है। किसी एक देश को आगे बढ़ाने के लिए नागरिकों का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है। देश के नागरिकों को देश की आचार संहिता ठीक से समझनी चाहिए और अपना कर्तव्य समझकर अपनी भूमिका निभानी होगी। देश के नागरिकों ने अपने देश के प्रति प्रेम जताकर और भी आगे हमारे देश को बढ़ाना चाहिए।
विदेशी हमारी भारतीय संस्कृति स्वीकार लेते
जैसे हमारे शरीर में कोष महत्वपूर्ण ईकाइ है, ठीक उसी तरह देश का नागरिक देश की प्रथम ईकाइ है। बच्चें देश के भविष्य के नागरिक है। सभी देशवासियों ने अपने बच्चों को अपने देश का सच्चा इतिहास बताना चाहिए। देश की विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों को समझाना चाहिए। हमारे देश के नागरिकों को कम से कम चार भारतीय भाषाएं आनी चाहिए। छुट्टीयों में लोगों को अधिकतर भारत के विभिन्न प्रदेशों का भ्रमण करना चाहिए। पहले भारत दर्शन फिर विदेशी यात्रा। आज कल तो विदेशी हमारी भारतीय संस्कृति स्वीकार लेते हैं। विदेशों में बहुत सारे लोग भारतीय संस्कृति से संलग्न हो रहें हैं। यह बड़े आनंद और गौरव की बात है। हमारे देश में कही गयी बातें विज्ञान से काफी तालमेल रखतीं हैं। मेरा भारत महान है।
जय हिंद,
जय हिंद,
जय हिंद।
– लेखिका भावना मयूर पुरोहित हैदराबाद