विश्व भाषा अकादमी ने किया ‘प्राथमिक शिक्षा में मातृभाषा की उपयोगिता’ विषय पर परिचर्चा गोष्ठी का आयोजन

हैदराबाद (सरिता सुराणा की रिपोर्ट) : विश्व भाषा अकादमी, भारत की तेलंगाना इकाई द्वारा 29 वीं मासिक गोष्ठी का ऑनलाइन आयोजन किया गया। प्रदेशाध्यक्ष सरिता सुराणा ने सभी सहभागियों का स्वागत एवं अभिनन्दन किया और बताया कि यह गोष्ठी विशेष रूप से मातृभाषाओं को समर्पित है। इसका विषय रखा गया था- ‘प्राथमिक शिक्षा में मातृभाषा की उपयोगिता’। कटक, उड़ीसा से विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित श्रीमती रिमझिम झा की सरस्वती वन्दना से गोष्ठी प्रारम्भ हुई।

सरिता सुराणा ने विषय के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि जिस प्रकार बच्चे की प्रथम गुरु उसकी मां होती है, उसी प्रकार उसकी पहली भाषा मातृभाषा होती है। एक बच्चा गर्भ में अपनी मां से ही सम्पूर्ण पोषण प्राप्त करता है, उस समय भी मां उससे अपनी मातृभाषा में ही बात करती है। भाषा सिर्फ सम्पर्क और संवाद स्थापित करने में ही सहायक नहीं होती अपितु वह सम्पूर्ण संस्कृति की वाहक होती है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण आज हमारे सामने है, कान्वेंट स्कूलों में पढ़े हुए बच्चे पूरी तरह से पाश्चात्य संस्कृति के रंग में रंग जाते हैं अतः बच्चों की प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में ही होनी चाहिए।

वरिष्ठ परामर्शदाता सेवानिवृत्त हिन्दी रीडर डॉ. सुमन लता ने मुख्य वक्ता के रूप में अपने विचार रखते हुए कहा कि बच्चों में अंग्रेजी भाषा के प्रचार-प्रसार में कविताओं की बड़ी भूमिका रही है। उन्होंने नर्सरी कक्षा में पढ़ाई जाने वाली कविता- रेन रेन गो अवे का विश्लेषण करते हुए कहा कि हमारा देश कृषि प्रधान देश है इसलिए हमें बारिश की जरूरत है और हम अपने बच्चों को बारिश को भगाने के नहीं अपितु बुलाने के गीत सिखाते हैं। हम उन्हें काले बादल पानी दे दो सिखाते हैं।

इसी तरह उन्होंने अन्य कविताओं का बहुत ही सूक्ष्म विश्लेषण प्रस्तुत किया और कहा कि हम अपनी मातृभाषा के माध्यम से ही बच्चों में आपस में मिलकर रहने और बांटकर खाने के संस्कारों का बीजारोपण करते हैं। तेलंगाना हिन्दी साहित्य भारती की प्रदेश प्रभारी वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुरभि दत्त ने विशेष वक्ता के रूप में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने कहा था- निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल/बिनु निज भाषा ज्ञान के मिटत न हिय को शूल। तो हम चाहे जितनी भाषाएं सीख लें लेकिन मातृभाषा को न भूलें।

हम मौलिक रूप से उसी में सोचते हैं बाद में चाहे उसका दूसरी भाषा में अनुवाद कर देते हैं। उन्होंने छोटी-छोटी हिन्दी कविताओं और गीतों के माध्यम से अपनी बात समझाई और कहा कि इनके माध्यम से हम आपसी रिश्तों और मेल मिलाप की बातें बच्चों को सिखा सकते हैं। भूतपूर्व वैज्ञानिक और साहित्यकार दर्शन सिंह ने कहा कि प्राथमिक शिक्षा का व्यक्ति के जीवन में वही स्थान है, जो मां का है। जाकिर हुसैन कमेटी ने भी यही सिफारिश की थी कि शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होनी चाहिए और गांधीजी ने भी यही कहा था।

पेशे से शिक्षिका और कहानीकार रिमझिम झा ने एक बहुत ही रोचक किस्सा सुनाया। उन्होंने कहा कि नर्सरी कक्षा में एक बच्चा बहुत रो रहा था। उसे चुप करवाने के लिए हिन्दी, अंग्रेजी और उड़िया की अध्यापिकाओं ने अपनी- अपनी भाषा में उसे पूछा कि तुम्हें क्या चाहिए, लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया। जब उन्होंने उससे मस्ती में ऐसे ही भोजपुरी भाषा में पूछा- तहरा का चाही बाबू? तो बच्चे ने तुरन्त चाॅकलेट खाते हुए दूसरे बच्चे की तरफ इशारा करते हुए उत्तर दिया- हमरा हाउ चाही अर्थात मुझे चाॅकलेट चाहिए। फिर उसे चाॅकलेट दिया गया और वह हंसने लगा। तो यह है प्राथमिक शिक्षा में मातृभाषा की उपयोगिता।

सेवानिवृत्त गुजराती शिक्षिका श्रीमती भावना पुरोहित ने कहा कि मातृभाषा अपनेपन की भाषा है। जब हम बच्चों से मातृभाषा में बात करते हैं तो वे खुश हो जाते हैं और बातें बड़ी आसानी से सीख लेते हैं। लेखिका डॉ. संगीता शर्मा ने कहा कि नई शिक्षा नीति में मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा की बात कही जा रही है लेकिन अभी तक हमारे पास ऐसे शिक्षक और शिक्षिकाएं नहीं हैं, तब उसे लागू करना मुश्किल होगा। सेवानिवृत्त आईटी प्रोफेशनल इंजीनियर श्रीमती अंशु सक्सेना ने कहा कि हम जितने सहज और सरल ढंग से अपनी बात मातृभाषा में अभिव्यक्त कर सकते हैं, उतनी अन्य भाषा में नहीं कर सकते।

उन्होंने उठो लाल अब आंखें खोलो, पानी लाई हूं मुंह धो लो कविता को याद करते हुए कहा कि उसकी स्मृति आज भी दिमाग में छपी हुई है। सभी ने इस परिचर्चा में बहुत ही सार्थक और सारगर्भित विचार प्रस्तुत किए और अपने घर से परिवर्तन की शुरुआत करने की बात कही। सभी सहभागी इस बात पर एकमत थे कि हम चाहे जितनी भाषाएं सीख लें लेकिन हमें अपनी मातृभाषा को नहीं भूलना चाहिए और अपने घर में अपनी मातृभाषा में ही बात करनी चाहिए।

पटना से युवा कहानीकार श्रीमती आर्या झा और हैदराबाद से तेलंगाना समाचार के सम्पादक के राजन्ना भी इस संगोष्ठी में शामिल थे। सरिता सुराणा ने सभी सहभागियों का हार्दिक आभार व्यक्त किया।

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