तेलंगाना कुंभ मेले के नाम से मशहूर मेडारम सम्मक्का-सारलम्मा जातरा (मेला) की तारीखों को अंतिम रूप दे दिया गया है। मेला 21 से 24 फरवरी 2024 तक आयोजित किया जाएगा। वन देवताओं के दर्शन करने के बाद कुछ ठीक हो जाएगा। सम्मक्का-सारलम्मा के दर्शन श्रद्धालुओं में शक्ति प्रदान करता है। यहां प्रकृति ही देवी-देवताएं हैं। सम्मक्का और सरलम्मा पर भक्तों की बहुत आस्था है। मेडारम आदिवासी जातरा एशिया का सबसे बड़ा मेला है। यह जातरा तेलंगाना के मुलुगु जिले के ताडवाई मंडल के मेडारम में हर दो साल में एक बार आयोजित किया जाता है।
वन देवताएं- सम्मक्का सारक्का 2024 की महाजातरा के अंतर्गत 21 फरवरी को सारलम्मा, पगिडिद्दराजू और गोविंदराजू को सिंहासन पर लाया जाएगा। 22 फरवरी को देवी सम्मक्का को सिंहासन (गद्दे) पर लेकर आएंगे। 23 फरवरी को भक्त मन्नतें पूरी करते हैं। 24 फरवरी वन देवताएं वन में प्रवेश करेंगे और 28 फरवरी को मेडारम जातरा पूजा और समापन कार्यक्रम होंगे। मेडारम जातरा एक महत्वपूर्ण विधि है- पगिडिद्दराजू को लेकर आना। पगिडिद्दराजू को आदिवासी संस्कृति और परंपराओं के साथ मेडारम लाया जाता है। जातरा में पगिडिद्दराजू का विशेष स्थान है। महबूबाबाद जिले के गंगाराम मंडल के पुनुगोंड्ला में जातरा के एक दिन पहले पगिडिद्दराजू को दूल्हा बनाते है। इसके बाद यानी अगले दिन मंदिर पहुंचते हैं। इस दौरान बलि और विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
नये कपड़ों के साथ पगिडिद्दराजू को तैयार करते हैं और मेडारम के लिए रवाना होते है और उसी दिन शाम को मेडारम पहुंते हैं। पगिडिद्दराजू को लेकर आने के बारे में पुजारियों को एक संदेश भेजा जाता है। तब तक यानी सुबह से ही जातरा के लिए सम्मक्का मंदिर में विशेष पूजा की जाती है। गमले (मटका) के आकार में सम्मक्का रो सजाते है। इसके बाद वे पगिडिद्दराजू को स्वागत करते हैं। दोनों को एक-दूसरे के सामने बैठाते हैं और परंपरा के साथ शादी संपन्न होती है। पगिडिद्दराजू को सारलम्मा गद्दे (सिंहासन) के पास लेकर जाते है।
उसी दिन कन्नेपल्ली में सारलम्मा की सुबह दो से तीन घंटे तक विशेष पूजा की जाती है। इसके बाद में वहां से मेडारम लेकर आते हैं। गद्दे के पास से यह इलाका तीन किलोमीटर दूर है। जिस दिन सारलम्मा गद्दे पर पहुंचती है, पिता पगिडिद्दराजू प्रकट होते हैं। सारलम्मा के पति गोविंदराजू को भी एटुरुनागरम मंडल के कोंडाई गांव से लेकर आते है। सभी ग्रामीण गोविंदराजू को लेकर जुलूस के रूप में मेडारम आते हैं। उसी दिन सारलम्मा, पगिडिद्दराजू और गोविंदराजू सिंहासन पर पहुंचते हैं।
इसके बाद चिलुकलगुट्टा से सम्मक्का को लेकर आते हैं। आधिकारिक तौर पर पुलिस बंदुक गोलियों की सलामी देते हैं और येदुरुकोल्ला परंपरा के साथ सम्मक्का को आमंत्रित करते है। ध्यान देने कि बात यह है कि मेडारम के उत्तर-पूर्व में स्थित चिलकलगुट्टा पर एक नाराचेट्टु (लिंडेन पेड़) के नीचे स्थित कुमकुम भरिन के रूप में ही सम्मक्का होती है। पुजारी कुमकुम भरनी के रूप में ही सम्मक्का लेकर आते है। उसके बाद गद्दे (सिंहासन) पर स्थापित करते है। मेडारम जातरा यही एक महत्वपूर्ण क्षण होता है। यह प्रक्रिया पूरी होने के बाद सभी मूर्तियां को सिंहासन पर स्थापित किये जाते हैं। इसके बाद यानी तीन दिन के पश्चात भक्तों को सम्मक्का-सारलम्मा के दर्शन देते हैं। श्रद्धालु इन वन देवताओं की पूजा-अर्चना करते हैं। मेले के अंतिम दिन वन देवताओं को वापस जंगल में भेज दिया जाता है। जैसे ही वन देवताएं मंदिर में प्रवेश करते हैं, मेडारम महाजातरा परिपूर्ण हो जाता है।
इसी क्रम में तेलंगाना सरकार ने इस बार मेडारम जातरा के लिए 100 करोड़ रुपये आवंटित किये हैं। एक करोड़ श्रद्धालु आने पर भी कोई परेशानी नहीं होगी। सभी इंतजाम किये गये हैं। परिवहन की सभी व्यवस्थाएं की गई हैं। इस बार छह हजार आरटीसी बसे चला रही है। पिछली बार की तुलना में इस बार कतारों की संख्या बढ़ा दी गई हैं। मेडारम जातरा को राष्ट्रीय मेले के रूप में स्थापित किया जाने का संकल्प लिया गया है। अनुमान है कि इस बार मेडारम में बड़ी संख्या में महिलाओं के आने की संभावना है। क्योंकि महिलाओं को बसों निशुल्क यात्रा करने की सुविधा है। आरटीसी बसों की पार्किंग के लिए 25 एकड़ जमीन आवंटित की गई है।