हैदराबाद (सरिता सुराणा की रिपोर्ट) : साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में कार्यरत अग्रणी संस्था सूत्रधार साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था, हैदराबाद, भारत एवं कहानीवाला के संयुक्त तत्वावधान में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर 9 मार्च को एक विशेष कार्यक्रम ‘गार्गी-2024’ का आयोजन शहर के हृदय स्थल बंजारा हिल्स में स्थित प्रतिष्ठित सांस्कृतिक केन्द्र ला-मकान में किया गया।
सुहास भटनागर ने कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की। संस्थापिका सरिता सुराणा ने सभी सम्मानित अतिथि गणों का हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन किया और गार्गी 2024 सम्मान ग्रहिता डॉ अहिल्या मिश्र को कार्यक्रम की अध्यक्षता करने हेतु मंच पर सादर आमंत्रित किया।
सेंट जोसेफ्स स्कूल, हब्शीगुड़ा की हिन्दी विभागाध्यक्ष श्रीमती ज्योति गोलामुडी को विशेष अतिथि के रूप में और संस्था सचिव श्रीमती आर्या झा को मंच पर सादर आमंत्रित किया। तत्पश्चात् अतिथि गणों द्वारा माँ सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण करके दीप प्रज्ज्वलित किया गया। स्वर कोकिला श्रीमती शुभ्रा मोहन्तो ने सरस्वती वन्दना प्रस्तुत की। उसके बाद सरिता सुराणा ने सभी सम्मानित अतिथियों और सहभागियों का शब्द पुष्पों से स्वागत किया और संस्था का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया। इस कार्यक्रम में विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ी हुई विशिष्ट महिलाओं ने अलग-अलग विषयों पर अपने विचार व्यक्त किए।
अर्चना लोण्ढे ने अपने विषय- ‘समय के साथ बदलती औरत’ पर बोलते हुए कहा कि उनकी दादी उनके लिए प्रेरणा स्रोत रही हैं। उन्हें पढ़ने-लिखने का अवसर नहीं मिला, लेकिन उन्होंने अपनी बहुओं और पोतियों की पढ़ाई में भरपूर सहयोग किया। उन्होंने कहा कि शादी के बाद पति का कुछ नहीं बदलता लेकिन एक महिला की पूरी जिन्दगी बदल जाती है। श्रीमती संगीता पमनानी ने ‘रसोई से दिल तक’ विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि मैंने अपनी मां से बहुत कुछ सीखा। रसोई हमारे घर की आत्मा होती है और जब आत्मा तृप्त होती है तो मन प्रसन्न रहता है। खाना बनाना उन्हें बहुत अच्छा लगता है और वे इसके लिए नये-नये प्रयोग करती हैं। आज़ की महिलाएं सुपर वूमैन हैं और वे बहुत से काम एक साथ कर सकती हैं।
रोशनी तिल्वानी ने अपने विषय- ‘नौकरी और नारी सुरक्षा’ पर बोलते हुए कहा कि आजकल के महंगाई के जमाने में एक आदमी की कमाई से घर चलाना मुश्किल होता है। इसलिए महिलाओं को भी आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर होना चाहिए। नौकरी महिला को अहम् सुरक्षा प्रदान करती है। उसे स्वतंत्र बनाती है और वह घर से बाहर निकल कर भी अपने घर-परिवार के लिए बहुत कुछ कर सकती है। गृहिणी की भूमिका भी अपने आप में महत्वपूर्ण है। वे टेक्स्टाइल इंडस्ट्री से जुड़ी हैं और घर को सजाने में पर्दे और चादर भी टेक्सटाइल उद्योग से जुड़े हैं।
सुश्री खुशबू सुराणा ने अपने विषय ‘अप्साइक्लिंग और गृह सज्जा’ पर अपनी बात रखते हुए कहा कि उन्हें कॉलेज के समय से ही आर्ट एंड क्राफ्ट का काम करने का शौक है। इसलिए उन्होंने जॉब नहीं की और अपना स्टार्ट अप ‘कला वीथि’ प्रारम्भ किया, जिसके अंतर्गत वे विभिन्न जरूरतमंद महिलाओं को हस्तनिर्मित उत्पाद बनाने का निःशुल्क प्रशिक्षण देती हैं और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में सहयोग करती हैं। उन्होंने अपने विभिन्न उत्पादों को प्रदर्शित किया और कहा कि हमारी दादी-नानी कपड़े की एक कतरन भी बर्बाद नहीं करती थीं, उससे सुन्दर कलात्मक खिलौने, थाल पोश और इंडुणी आदि बनाती थीं। उसी तरह मैं बचे हुए कपड़े को नया रूप देकर विभिन्न प्रकार के आभूषण और गृह सज्जा की विभिन्न चीजें बनाती हूं।
‘बदलते पारिवारिक समीकरण’ विषय पर अपनी बात रखते हुए सरिता सुराणा ने कहा कि पहले हमारे पूर्वज कहते थे कि सौ साल में जमाना बदलता है लेकिन आज तो हर घड़ी जमाना बदल रहा है। आज़ हम संक्रमण काल से गुजर रहे हैं। संयुक्त परिवारों का विघटन हो गया है। आज़ परिवार का अर्थ सिर्फ पति-पत्नी रह गया है। आज़ पति-पत्नी दोनों नौकरी करते हैं और उनके बच्चे आया के भरोसे पलते हैं तो उनमें संस्कारों का बीजारोपण कौन करेगा? पहले दादी-नानी की छत्रछाया में पलने वाले बच्चे उनसे संस्कार और परम्पराओं की बातें सीखते थे। लेकिन आज गाँवों से शहरों की ओर पलायन के कारण हमारा रहन-सहन, खान-पान और जीवनशैली सब कुछ बदल गया है। उसका परिणाम यह है कि विवाह नामक संस्था का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है। शिक्षित स्त्रियों ने कैरियर को ही अपना लक्ष्य मान लिया है, वे परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारियों से दूर भाग रही हैं। स्वतंत्रता स्वछंदता में परिवर्तित हो रही है और यह हमारे समाज के लिए शुभ संकेत नहीं है।
उसके बाद उन्होंने सम्मान ग्रहिता डॉ अहिल्या मिश्र का परिचय प्रस्तुत किया और उन्हें उद्बोधन हेतु सादर आमंत्रित किया। अहिल्या मिश्र ने कहा कि गार्गी को जानने से पहले हमें वैदिक युग में जाना होगा। हमारे वेदों में विश्वा, घोषा, लोपामुद्रा और मैत्रेयी के नाम आते हैं। स्त्री और पुरुष दोनों इस संसार में बराबर हैं। उन्होंने मंडन मिश्र और उनकी पत्नी भारती द्वारा दक्षिण शंकराचार्य के साथ शास्त्रार्थ की विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने कहा कि राजा जनक विदेह थे। उनकी पुत्री सीता इसलिए वैदेही कहलायी। मिथिलांचल में सीता माता की बहुत मान्यता है। प्राचीन काल में स्त्रियों को स्वयंवर के द्वारा वर चुनने का अधिकार था। लेकिन आक्रांताओं के लगातार हुए आक्रमणों के कारण स्त्रियों की दशा में परिवर्तन आता गया। आज़ की महिलाएं शिक्षित और सबल हैं, अगर वे कुछ करने का ठान लें तो उन्हें मंज़िल हासिल करने से कोई नहीं रोक सकता।
उनके उद्बोधन के पश्चात् उन्हें ‘गार्गी 2024’ सम्मान से सम्मानित किया गया। इसके अन्तर्गत उन्हें ट्रॉफी, शॉल, मोती माला, क़लम और नोटबुक से सम्मानित किया गया। उन्होंने संस्था के समस्त सदस्यों को निरन्तर आगे बढ़ने का आशीर्वाद दिया। उसके बाद विशेष अतिथि श्रीमती ज्योति गोलामुडी जी और अन्य वक्ताओं का तथा ला-मकान की सदस्या क्रांति मैडम का सम्मान किया गया। सत्र समाप्ति के पश्चात् अल्पाहार के लिए कुछ समय का विराम लिया गया। प्रथम सत्र का संचालन श्रीमती आर्या झा और सुश्री खुशबू सुराणा ने एकदम अलग और अनूठे अंदाज में किया।
द्वितीय सत्र में कहानीवाला के सुहास भटनागर, आर्या झा और शिल्पी भटनागर ने कहानियों की शानदार प्रस्तुति दी। कार्यक्रम में वाजा तेलंगाना इकाई के अध्यक्ष एन. आर. श्याम, यूनियन बैंक ऑफ के वरिष्ठ प्रबंधक (राजभाषा) देवकांत पवार, तेलंगाना समाचार के संपादक एवं वरिष्ठ पत्रकार के राजन्ना, पुष्पक साहित्यिकी की सम्पादक डॉ आशा मिश्र, श्रीमती किरन सिंह, श्रीमती शुभ्रा मोहन्तो, श्रीमती ममता सक्सेना, श्रीमती सोनी कुमारी, श्रीमती हर्षलता दुधोड़िया, श्रीमती अनीता गिड़िया, प्रवीण कुमार, राजेश कुमार, एम चंद्रा, श्रीमती भावना पुरोहित, मयूर पुरोहित, शुभा कार्तिक, सूरज कुमारी गोस्वामी, श्रेयस वेमुला, डैनी कुमार आजाद और ज्योति आर उपस्थित थे। सभी सहभागियों ने कार्यक्रम की मुक्त कंठ से प्रशंसा की। सरिता सुराणा के धन्यवाद ज्ञापन से कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।