हैदराबाद : हैदराबाद: सुप्रीम कोर्ट ने एससी और एसटी के वर्गीकरण पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. इस हद तक, एससी और एसटी वर्गीकरण अनिवार्य है और इस मामले पर राज्य सरकारों को सशक्त बनाने के आदेश जारी किए हैं। एमआरपीएस के संस्थापक अध्यक्ष मंदा कृष्णा मादिका इस फैसले पर भावुक हो गये।
इस मौके पर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट परिसर में बोलते हुए इस बात पर खुशी जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राज्यों के पास वर्गीकरण करने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि 30 वर्षों के अथक संघर्ष का उचित परिणाम मिला है। इस संघर्ष में कई षडयंत्र शामिल थे और वर्गीकरण आंदोलन को हराने के लिए कई साजिशें रची गईं।
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सुप्रीम कोर्ट का एससी/एसटी वर्गीकरण पर ऐतिहासिक फैसला
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की बेंच ने गुरुवार को एससी/एसटी वर्गीकरण पर ऐतिहासिक फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा कि राज्यों के भीतर नौकरियों में आरक्षण देने के लिए कोटा के भीतर कोटा दिया जा सकता है. यानी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियों के भीतर सब-क्लासिफिकेशन मान्य होगा. ये ऐतिहासिक फैसला CJI डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने 6:1 के बहुमत से पारित किया, जिसमें न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी ने असहमति जताई है.
2004 के फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट का आज का फैसला बहुत ही अहम आया है, क्योंकि ये फैसला ई वी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के 2004 के फैसले को पलट देता है. सुप्रीम कोर्ट ने साल 2004 के अपने फैसले में कहा था कि राज्यों के पास आरक्षण देने के लिए SC/ST की सब कैटेगरी करने का अधिकार हीं है. अदालत के सामने अब मुद्दा एक बार फिर से कोटे के भीतर कोटे का था. अब अदालत ने साफ कर दिया है कि कोटा के भीतर कोटा दिया जा सकता है.
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कोर्ट से कहा था कि वो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियों में सब-क्लासिफिकेशन यानी उप-वर्गीकरण के पक्ष में है. मुख्य न्यायाधीश ने कहा था कि “सब-क्लासिफिकेशन और सब-कैटेगराइजेशन के बीच अंतर है, और ये सुनिश्चित करने के लिए कि फायदा अधिक पिछड़े समूहों तक पहुंचे, राज्यों को आरक्षित श्रेणी समुदायों को सब-कैटेगराइज करना पड़ सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उप-वर्गीकरण का आधार राज्य के सही आंकड़ों पर आधारित होना चाहिए. इस मामले में राज्य अपनी मर्जी नहीं चला सकते हैं. जस्टिस बी आर गवई ने कहा कि जमीनी हकीकत से इनकार नहीं किया जा सकता, SC/ST के भीतर ऐसी श्रेणियां हैं, जिन्हें सदियों से उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है. इनको अक्सर प्रणालीगत भेदभाव की वजह से सीढ़ी पर चढ़ने में सक्षम नहीं होते हैं. आर्टिकल 14 जाति के उप वर्गीकरण की अनुमति देता है.
अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण के लिए उप-वर्गीकरण को “कोटा के भीतर कोटा” कहा जाता है. यानी अगर एक समुदाय या श्रेणी के लोगों को आरक्षण दिया जा रहा है तो उसी श्रेणी का उप-वर्गीकरण करके उनके बीच आरक्षित सीटों का बंटवारा करना. उदाहरण के तौर पर अगर अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षण 15% तय है तो इस वर्ग में शामिल जातियों और उनके सामाजिक, आर्थिक पिछेड़ेपन के आधार पर अलग-अलग आरक्षण का दिया जाना.
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का मतलब ये है कि SC के लिए 15% आरक्षण के भीतर, जिन जातियों को अधिक वंचित माना जाता है, उन्हें दूसरों की तुलना में अधिक महत्व दिया जाएगा. जैसे कि 2006 में पंजाब ने अनुसूचित जाति के लिए निर्धारित कोटा के भीतर सार्वजनिक नौकरियों में वाल्मिकियों और मजहबी सिखों को 50% कोटा और पहली प्राथमिकता दी गई.
సుప్రీం కోర్టు ఎస్సీ, ఎస్టీ వర్గీకరణపై మంద కృష్ణ మాదిగ భావోద్వేగం
హైదరాబాద్ : ఎస్సీ, ఎస్టీ వర్గీకరణపై సుప్రీం కోర్టు చారిత్రాత్మక తీర్పును వెలువరించింది. ఈ మేరకు ఎస్సీ, ఎస్టీ వర్గీకరణ తప్పనిసరి అని, ఆ అంశంపై రాష్ట్ర ప్రభుత్వాలకు అధికారం కల్పిస్తూ ఆదేశాలు జారీ చేసింది. ఈ క్రమంలో వెలువడి తీర్పుపై ఎమ్మార్పీఎస్ వ్యవస్థాపక అధ్యక్షుడు మంద కృష్ట మాదిగా భావోద్వేగానికి గురయ్యారు.
ఈ సందర్భంగా ఆయన సుప్రీం కోర్టు ఆవరణలో మాట్లాడుతూ వర్గీకరణ చేసే అధికారం రాష్ట్రాలకే ఉందని సుప్రీంకోర్టు చెప్పిందంటూ ఆనందం వ్యక్తం చేశారు. 30 ఏళ్లుగా అలుపెరగని పోరాటానికి తగిన ఫలితం దక్కిందన్నారు. ఈ పోరాటంలో చాలా మంది అసువులు బాశారని వర్గీకరణ ఉద్యమాన్ని దెబ్బ తీసేందుకు ఎన్నో కుట్రలు చేశారని ఆవేదన వ్యక్తం చేశారు. (ఏజెన్సీలు)