योगिनी एकादशी पर विशेष : धार्मिक ग्रंथों में प्रचलित हैं कथाएं

[नोट- लेख में व्यक्त विचार स्वयं लेखक है। संपादक का समहत होना आवश्यक नहीं है।]

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार 2 जुलाई को योगिनी एकादशी है। पंचांग के अनुसार आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है। पूजा करने से सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं। मान्यता है कि श्रीकृष्ण ने योगिनी एकादशी उपवास करने से 88 हजार ब्राह्रणों को भोजन कराने के बराबर फल देने वाला बताया है। योगिनी एकादशी शुभ फल देने वाली है।

कथा- पुराने समय की बात है कि अलकापुरी में धनकुबेर के यहाँ एक यक्ष सेवक हेममाली रहता था। वह भगवान शंकर के पूजनार्थ प्रतिदिन मान सरोवर से फूल लाकर राजा को देता था। एक दिन उसका मन कामोन्मत्त हो गया और अपनी स्त्री के साथ रमण करने लगा, जिससे वह राजा कुबेर के दरबार में देर से पहुंचा। राजा क्रोधित हो गया और उसने कोढ़ी होने का श्राप दे दिया। परेशान होकर वह मार्कण्डेय ऋषि के पास पंहुचा। तब उन्होंने उसे योगिनी एकादशी का व्रत रखने को कहा। व्रत रखने के प्रभाव से उसका कोढ़ चला गया और उसका शरीर पुराने रूप में आ गया और वह सुखी पूर्वक अपनी पत्नी के साथ रहने लगा।

धार्मिक मान्यता बताती हैं कि दान करना एक शुभ तथा फलदाई होता है। अनेक अवसर पर लोग मनोकामना पूर्ति, दोषों के प्रभाव से बचने, मन की शांति के लिए, भगवान के आशीर्वाद बनाए रखने के लिए समय-समय पर होने वाले भगवान के कार्यक्रमों के लिए दान देकर कार्यक्रम को सफल बनाने में सहयोग प्रदान करते हैं। कहते हैं इस जन्म में जो भी शुभ कार्य किया जाता है या दान पुण्य करके भगवान के कार्य में सहयोग दिया जाता है। उससे आपका आने वाला भविष्य सुखदाई होता है तथा यह दान कई जन्मों तक साथ रहता है। आने वाले जन्मों में भी आपको शुभ फल प्राप्त होता है और मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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देश में अनेक दानी हुए हैं, जिन्होंने समाज को दान देने के लिए प्रेरणा देकर एक अच्छी शिक्षा दी है। ऋषि दधीचि ने अपनी हड्डियों तक दान में देकर एक दान का उच्चतम उदाहरण प्रस्तुत किया। वहीं दानवीर कर्ण ने भी अंतिम समय में स्वर्ण दांत याचक को दान कर दिया। राजा हरिश्चंद्र ने भी सत्य मार्ग पर चलते हुए अपना राज पाट पत्नी और पुत्र का मोह त्याग दिया और वह महादानी कहलाए। इस प्रकार अनेक दानियों से यह संसार भरा हुआ है। कहते हैं कि दान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और परलोक सुधर जाता है। दान हमेशा सुपात्र को ही दिया जाए और तभी उसका प्रभाव से पुण्य कर्म प्राप्त होता है। पुण्य कर्म से स्वर्ग प्राप्त होता है और फिर धरती पर आकर शुभ कर्म करने का सौभाग्य प्राप्त होता है।

श्रीहरि विष्णु के मंत्र

  1. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम:
  2. ॐ हूं विष्णवे नम:
  3. ॐ विष्णवे नम:
  4. ॐ नमो नारायण। श्री मन नारायण नारायण हरि हरि। 
  5. ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।
    ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि। 
  6. ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।
  7. श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे। हे नाथ नारायण वासुदेवाय।।
  8. ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीवासुदेवाय नमः
  9. ॐ अं प्रद्युम्नाय नम:
  10. ॐ नारायणाय नम:

– के पी अग्रवाल

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