Medaram Jatara Special: सम्मक्का का जन्म, वंश, शादी और संतान का संक्षिप्त परिचय

तेलंगाना के मुलुगु जिले में 16 से 19 फरवरी तक सम्मक्का सारलम्मा मेडारम जातरा जारी रहेगा। मेडारम जातरा को तेलंगाना का कुंभ मेला भी कहा जाता है। यह जातरा आदिवासी देवता सम्मक्का के नाम से प्रसिद्ध है। मगर अब तक सम्मक्का कहां पैदा हुई? कहां पर पालन पोषण हुआ? इसके माता-पिता कौन हैं? इन सवालों का सटीक जवाब किसी के पास नहीं है।

कुछ लोगों का कहना है कि सम्मक्का का जन्म मुलुगु जिले के ताड्वाई मंडल के बय्याक्कपेट गांव में हुआ। तो कुछ लोग कहते है कि जगित्याल जिले के पोलवास गांव में हुआ। कुछ लोग मानते है कि हनुमकोंडा जिले के आत्मकूर मंडल के अग्रमपहाड गांव में हुआ। हालांकि आदिवासियों में यह भी प्रचार हैं कि सम्मक्का का जन्म छत्तीसगढ़ में हुआ। फिर भी सम्मक्का जन्म का सही स्थान कौन-सा है, यह अभी भी स्पष्ट नहीं है। इतिहासकारों का कहना है कि सम्मक्का के जन्म, महानता और वीरता के बारे में पीढ़ियों से आदिवासी कलाकारों के प्रचार-प्रसार के सिवा मौखिक साहित्य और सम्मक्का के प्रति आस्था के अलावा लिखित प्रमाण कुछ भी नहीं है।

वंशज

आदिवासियों के कोया जनजाति के चंदा कबीले (वंशज) का मानना ​​​​है कि सम्मक्का का जन्म बय्यक्कपेट गांव में हुआ और वह उनके वंश की बेटी है। इनका गांव मेडारम जातरा से 15 किमी की दूरी पर है। रायिबंडा राजा की बड़ी पत्नी चंद बोयिरालु एक दिन कंद के लिए कंक वन में गई। वहां पर ‘एल्लेरु गड्डा’ की खुदाई करते फावड़े से कुछ टकराया। चंदा वंशज का मानना है कि उसकी खुदवाई करके बाहर निकालकर देखने पर एक पेटी में कन्या शिशु थी। चंद बोयिरालू ने उसे आदि शक्ति का दिया हुआ वरदान मानकर घर लेकर आई और उसका नाम सम्मक्का रखा। चंदा वंशज सम्मक्का जातरा बय्यक्कपेट में करते थे।

मगर 1962 के बाद चंदा और सिद्दबोयिना वंशजों के बीच हुए समझौते के अनुसार जातरा को मेडारम में मना रहे हैं। अब भी जातरा के पहले आने वाले गुरुवार को अपने बेटी सम्मक्का और सारलम्मा को बय्यक्कपेट में पूजारी ‘ओडिबिय्यम’ (तेलुगु, हिंदी में चावल देना) साड़ी और ब्लाउज अर्पित करते हैं।

पगिडिद्दराजा के साथ शादी और संतान

एक अन्य ऐतिहासिक कथा यह है कि जगित्याल जिले के पोलावासे गांव ही सम्मक्का का जन्म स्थान है। पोलवासे प्रांत पर राज करने वाले मेडराजा एग दिन शिकार करने गये। तब पहाड़ पर उन्हें एक कन्य शिशु मिली। उन्होंने उसका नाम सम्मक्का रखा और उसका पालन पोषण किया। सम्मक्का वयस्क होने के बाद अपने भांजे मेडारम के पगिडिद्दराजा के साथ शादी कर दी। सम्मक्का और पगिडिद्दराजू दंपत्ति को सारलम्मा, नागुलम्मा और जंपन्ना संतान हुए। काकतीय के राजा प्रतापरुद्रडु पोलवास पर हमला करते है। इसके चलते मेडराजा मेडारम जाकर भूमिगत जिंदगी बीताते है।

यह भी प्रचार है कि मेडराजा को आश्रय देने और चक्रवर्ती को कर नहीं देने के कारण प्रतापरुद्रुडु पर हमला किया। इसी तरह हनुमकोंडा जिले के आत्मकुर मंडल के अग्रहमपहाड़ में सम्मक्का का जन्म होने का प्रचार है। इसके अलावा स्थानीय आदिवासियों का मानना है कि सम्मक्का जन्म छत्तीसढ़ में हुआ और यहां आकर बस गई।

विश्वास ही सबूत है

प्रसिद्ध इतिहासकार अरविंद आर्य कहते है कि यह कहना मुश्किल है कि सम्मक्का का जन्म बय्यक्कपेट में हुआ या पोलवासे में हुआ। सैकड़ों वर्षों से चली आ रही लोक कथाओं के अलावा इसका कोई लिखित प्रमाण नहीं है। आदिवासियों के बीच किंवदंतियां एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक चली आ रही है। यही मान्यताएं ही एकमात्र सुराग हैं कि सम्मक्का का जन्म कहां हुआ है। अब तक जो लोक कथाएं प्रचलित है उसके अनुसार इन दो गांवों में से एक गांव सम्मक्का का जन्म स्थान हो सकता है।

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