बेंगलुरू (अमृता श्रीवास्तव की रिपोर्ट): क्रिएटिव माइंड साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था ने हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में देश भर से जुड़े अपने रचनाकारों के साथ विशेष परिचर्चा आयोजित की। इस परिचर्चा का उद्देश्य मनुष्य के मानसिक और बौद्धिक विकास के लिए भाषा का महत्व बतलाना था। इस पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता कि मनुष्य चाहे जितनी भी भाषाओं का ज्ञान प्राप्त कर ले परंतु अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए उसे अपनी एक भाषा की आवश्यकता होती है।
गोष्ठी का उदेश्य
हिंदी दिवस के ऑनलाइन परिचर्चा के लिए चुनिंदा रचनाकारों को आमंत्रित किया गया। वर्तमान परिपेक्ष्य में हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार की जरुरत को समझना गोष्ठी का परम उदेश्य रहा। इस परिचर्चा का कुशल संचालन डॉ यास्मीन अली ने किया। हिंदी भाषा सिर्फ भारत पहचान नही बल्कि संप्रेषक भी है बड़ोदरा से जुडी मंजीता राजपूत ने हिंदी भाषा के प्रति भाव व्यक्त करते हुए कहा कि हिंदी भाषा भले ही हमारी राष्ट्रभाषा नहीं है, लेकिन व्यवहारिक तौर पर यह देश की सर्वव्यापी भाषा है। विदेशों में भी भारतीय होने की पहचान हिंदी भाषा से ही होती है। हिंदी भाषा हमारी प्राचीन सभ्यता और आधुनिक प्रगति के बीच एक सेतु की तरह है। परिचर्चा में माना कि भाषा वही जीवित रहती है। जिसका प्रयोग जनता करती है। हिंदी भाषा देश में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसलिए इसका प्रचार और प्रसार अवश्य होना चाहिए। उन्होंने याद दिलाया कि 14 सितंबर 2017 को हिंदी दिवस समारोह के आयोजन पर राष्ट्रपति रामनाथ गोविंद जी ने कहा, “हिंदी अनुवाद की नहीं बल्कि संवाद की भाषा है।” सरकार को हिंदी भाषा के माध्यम से शिक्षित युवाओं को रोजगार के अधिक अवसर उपलब्ध होने चाहिए ऐसा उनका मानना है। मंजीता राजपूत ने अपने स्वाभिमान से जोड़ते हुए हिंदी को कुछ ऐसे मान दियाष हिंदी से हिंद और हिंद से हिंदुस्तान है।
हिंदी भाषा ही तो मेरे भारतीय होने की पहचान है।
सुलभ हिंदी की जगह बच्चो को सिखाये जाते हैं अंग्रजी के शब्द
अल्मोड़ा उत्तराखंड से जुडी स्नेहलता त्रिपाठी विष्ट ने सवाल किया कि भारत की जनता के बीच सर्वप्रिय बोली जानी वाली भाषा हिंदी है। फिर भी महिलाएं अक्सर बच्चो को सुलभ हिंदी शब्दो के बदले अंग्रेजी के ही क्यों शब्द सिखाती है? महिलाओं द्वारा ही बच्चे में किसी भी भाषा का सम्प्रेषण होता है। वर्तमान में महिलाएं छोटे बच्चों को सरल सुलभ हिंदी के शब्दों के बदले अंग्रेजी के शब्दों को सीखने पर जोर देती हैं। बच्चे घर पर बुजुर्गों से हिंदी भाषा के शब्दों को सहजता से सीख सकते हैं। उन पर अंग्रेजी के शब्द थोपे जाते हैं। मध्यमवर्गीय परिवार की महिलाओँ में यह ज्यादातर देखने को मिलता है| परिणाम यह होता हैं कि बच्चों तक जो भाषा पहुंचती है। मगर हिंदी न होकर हिंगलिश होती है। इसे शायद नयी पीढ़ी की महिलाएं स्टेटस सिंबल समझने लगी हैं | उनकी स्वरचित कविता की पंक्तियों माथे पे गोल बिंदी लगाए, हिंदी हिन्द को परिभाषित कर रही थी… बेशक वो मर्यादा में थी, पर सबसे अलग वो नज़र आ रही थी।
हिंदी, हिन्द का स्वाभिमान है ये बात आज महफिल में सबको समझ आ रही थी।”
ने सबको भाव-विभोर कर दिया।
वर्तमान समय में सोशल मीडिया पटल पर हिंदी भाषा की मजबूत पकड़
गौतम बुद्ध नगर उत्तर प्रदेश से जुडी तनुजा श्रीवास्तव ने हिंदी-दिवस के अवसर पर परिचर्चा के दौरान बताया कि वर्तमान समय में सोशल मीडिया पटल पर हिंदी भाषा अपनी पकड़ बनाए हुए है कि शायद ही कोई क्षेत्र हो जो इसके प्रभाव से अछूता हो। फेसबुक, ट्विटर, वाट्सएप, यूट्यूब चाहे कोई भी पटल हो सब पर हिंदी भाषा का विस्तार आश्चर्यजनक है। हिंदी भाषा न केवल अपने देश में बल्कि विश्व स्तर पर भी अपनी धमक से छाई हुई है। इसके साथ ही उन्होंने अपनी स्वरचित कविता ‘हिंदी की पुकार’ के माध्यम से हिंदी की महत्ताऔर उसकी व्यथा की गाथा भी सुनाई।
हमारी मानसिकता पर अभी भी है औपनिवेशिक प्रभाव की छाप
पटियाला (पंजाब) से जुड़े डॉक्टर गुरमीत सिंह ने कहा है कि राजभाषा दिवस अब एक रस्म बनकर रह गया है। अभी आवश्यकता यह है कि हिंदी को हम राष्ट्रभाषा के रूप में प्रयोग में ले आये। इसके लिए शासन प्रणाली, न्याय व्यवस्था तथा उच्च शिक्षा में इसे अपनाया जाये। उन्होंने है कि साल 1947 से पहले हिंदी को लेकर जो प्रेरणा और उत्साह का माहौल था। वह आज नहीं है। इसके लिए किसी एक शासन या एक पक्ष को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। इससे बात नहीं बनेगी। लोगों की मानसिकता पर अभी भी औपनिवेशिक प्रभाव की छाप है और यही हिंदी भाषा की राह में सबसे बड़ी बाधा है। अपनी बात को अपनी कविता के माध्यम से उन्होंने बड़े प्रभावी ढंग से रखा।
भक्तों, अब भी आंखें खोलो, बच्चों की तकदीरों को,
देखो, कल फिर दोष ना देना, हाथों की लकीरों को!
आजादी पाने के हक को आज नहीं गर समझोगे,
कैसे खोलोगे हाथों से, कल अपनी जंजीरों को।
राजभाषा हिंदी को मिले पूरा सम्मान
दिल्ली से जुडी डॉक्टर अंजुलता सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि हिंदी के नाम से विशेष दिन, सप्ताह या माह का आयोजन करके इसे अपने कर्तव्यों की इतिश्री नहीं मान सकते बल्कि हिंदी को, जो कि हमारी राजभाषा और मातृभाषा है। पूरा सम्मान देते हुए उसके प्रति अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए। केवल इसी दिन हिंदी के सम्मान में हुए आडंबर वास्तव में हिंदी को रूपवती भिखारिन की तरह बनाता हैं। जो सबको सुंदर तो लगती है, लेकिन उसे पूरी तरह से अपनाने में लोग कोताही कर जाते हैं। जहां तक वर्तमान परिप्रेक्ष्य में हिंदी का प्रचार प्रसार और लोकप्रियता फैलने की बात है। डॉक्टर अंजुलता सिंह को पूरा विश्वास है कि एक दिन हिंदी स्वभाविक रूप से खुद ही व्यावहारिक प्रयोग, बोलचाल तथा लेखन के द्वारा विश्व में अपने पैर फैला लेगी।
मीडिया पर तो हिंदी ने आज विश्व भाषा का रूप धारण कर लिया है। दूरदर्शन, रेडियो, सिनेमा, रंगमंच और अन्य क्षेत्रों में तो हिंदी पहले से ही प्रतिष्ठित थी। लेकिन अब हिंदी भाषा का ऑनलाइन लेखन, वाचन एवं यूट्यूब एवं गूगल के दृश्य प्रधान कार्यक्रमों के द्वारा वर्चस्व कायम होता जा रहा है। हिंदी का भविष्य उज्ज्वल है। जैसे बहती हुई धारा और चलती हुई हवा को कोई रोक नहीं सकता, वैसे ही एक दिन हिंदी वैश्विक भाषा सारे बाधाओं को पार करते हुए सबके हृदय में बस जाएगी। डॉक्टर अंजुलता सिंह की कविता को सुनकर दर्शक झूम उठे-
आओ सब हिंदी में बोलें
बस इसके ही हो लें
तुलसी, मीरा, सूर, कबीरा
खुसरो के संग हो लें
हिलमिल डोले
आओ सब…
निज भाषा उन्नति अहै ,सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटे न हिय को सूल ।।
डॉक्टर यास्मीन अली ने परिचर्चा में समय-समय से दर्शकों के सवालों के उत्तर भी दिये| उनके संचालन से परिचर्चा में शुरू से लेकर अंत तक एक कसाव बना रहा। धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।