राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी का जन्म 3 अगस्त 1886 को हुआ था। उन्होंने अनेक रचनाएं की है। उनमें ‘यशोधरा’ मैथिलीशरण गुप्त का प्रसिद्ध प्रबंध काव्य है, जिसका प्रकाशन सन् 1933 ई. में हुआ था। गुप्तजी को इसकी प्रेरणा कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा बांग्ला भाषा में रचित ‘काव्येर उपेक्षित नार्या’ शीर्षक लेख से मिली। साथ ही उन्होंने अपने छोटे भाई श्री सियारामशरण के अनुरोध पर यह रचना लिखी। गुप्तजी ने अपने प्रबंध काव्यों में उपेक्षित किन्तु महिमामयी नारियों की व्यथा-कथा को चित्रित किया औऱ साथ ही उसमें आधुनिक चेतना के नए आयाम भी जोड़े फिर चाहे वह ‘साकेत’ की नायिका ‘उर्मिला’ हो या ‘यशोधरा’ की राजकुमारी यशोधरा या फिर ‘विष्णुप्रिया’ की विष्णुप्रिया।
उद्देश्य
‘यशोधरा’ के सृजन का उद्देश्य है पति-परित्यक्ता यशोधरा के हार्दिक दु:ख की व्यंजना तथा वैष्णव सिद्धांतों की स्थापना। यशोधरा की पीड़ा का सर्वप्रथम साक्षात्कार गुप्तजी की अंत:प्रवेशिनी दृष्टि ने ही किया। वे मानवीय संबंधों के अमर गायक थे। उन्होंने यशोधरा के माध्यम से सन्यास पर गृहस्थ प्रधान वैष्णव धर्म की प्रतिष्ठा की है।
कथानक
प्रस्तुत काव्य का कथारम्भ गौतम बुद्ध के वैराग्य चिन्तन से होता है। वे जरा, रोग, मृत्यु आदि के दृश्य देखकर विचलित हो जाते हैं और अमरत्व की खोज में अपनी पत्नी और पुत्र को सोते हुए छोड़कर अकेले ‘महाभिनिष्क्रमण’ करते हैं। इस काव्य में यशोधरा का विरह अत्यंत कारुणिक है। विरह की दारुणता से अधिक उसको प्रिय का चोरी छिपे जाना खलता है और इस भाव को वह इस तरह व्यक्त करती है-
सिद्धि हेतु स्वामी गए, यह गौरव की बात।
पर चोरी-चोरी गए, यह बड़ी आघात।
परन्तु इसके पश्चात भी वह अपने प्रिय के प्रति मंगलकामना करते हुए कहती है –
‘जाएँ सिद्धि पावें वे सुख से,
दु:खी न हों इस जन के दु:ख से,
उपालम्भ दूं मैं किस मुख से?
आज अधिक वे भाते!
सखि, वह मुझसे कहकर जाते।
एक आदर्श नारी : यशोधरा
स्वयं को सिद्धार्थ के सिद्धि मार्ग की बाधा समझे जाने के कारण यशोधरा के आत्मगौरव को बड़ी ठेस लगती है परन्तु वह नारीत्व को किसी भी रूप में हीन मानने को तैयार नहीं है। इसलिए वह कहती है-
सखि ,वे मुझसे कहकर जाते।
कह, तो क्या मुझको वे अपनी
पथ-बाधा ही पाते?
मुझको बहुत उन्होंने माना
फिर भी क्या पूरा पहचाना?
मैंने मुख्य उसी को माना
जो वे मन में लाते।
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।
यशोधरा भारतीय पत्नी है, उसका अर्द्धांगी भाव इस काव्य में सर्वत्र मुखर हुआ है तभी तो वह कहती है- ‘मेरा भी कुछ होगा, जो कुछ तुम पाओगे।’ यशोधरा आदर्श पत्नी, श्रेष्ठ माता और आत्मगौरव संपन्न नारी है परन्तु गुप्तजी ने यथासंभव गौतम के परम्परागत उदात्त चरित्र की रक्षा की है। यद्यपि कवि ने उनके सिद्धांतों औऱ विश्वासों को अमान्य ठहराया है तथापि उनके चिरप्रसिद्ध रूप की रक्षा के लिए अंत में यशोधरा और राहुल को उनका अनुगामी बना दिया है। प्रस्तुत काव्य में वस्तु के संघटक और विकास में राहुल का समधिक महत्व है। यदि राहुल सा लाल यशोधरा की गोद में न होता तो कदाचित यशोधरा मरण का ही वरण कर लेती और तब इस ‘यशोधरा’ का प्रणयन ही नहीं होता।
गुप्तजी के काव्य में यशोधरा घोर संकट औऱ विषम परिस्थितियों में भी धीरज, कर्मण्यता और कर्त्तव्य भावना का परित्याग नहीं करती। गौतम द्वारा स्वयं का परित्याग कर देने पर भी वह यही कामना करती है –
‘व्यर्थ न दिव्य देह वह तप-वर्षा-हित-वात सहे।’
उसकी सहिष्णुता का यह रूप है कि वह विरहिणी के असहाय दु:ख को भी अपने लिए मूल्यवान मानती है औऱ कहती है-
“होता सुख का क्या मूल्य, जो न दु:ख रहता।
प्रिय ह्रदय सदय हो, तपस्ताप क्यों सहता?
मेरे नयनों से नीर न यदि यह बहता।
तो शुष्क प्रेम की बात कौन फिर कहता?
रह दु:ख प्रेम परमार्थ दया मैं लाऊं।
कह मुक्ति भला किसलिए तुम्हें मैं पाऊं?
भाषा-शैली
‘यशोधरा’ का प्रमुख रस श्रृंगार है, श्रृंगार में भी केवल विप्रलम्भ। संयोग का तो एकांताभाव है। श्रृंगार के अतिरिक्त इसमें करुण, शांत एवं वात्सल्य रस भी यथास्थान उपलब्ध हैं। प्रस्तुत काव्य में छायावादी शिल्प का आभास है। उक्ति को अद्भुत कौशल से चमत्कृत एवं सप्रभाव बनाया गया है। यशोधरा की भाषा शुद्ध खड़ी बोली है। प्रौढ़ता, कांतिमयता और गीतिकाव्य के उपयुक्त मृदुलता इसमें विद्यमान है। इसीलिए ‘यशोधराा’ एक उत्कृष्ट काव्य रचना सिद्ध होती है।
प्रबंध काव्य
शिल्प की दृष्टि से यशोधरा ‘साकेत’ से भी सुन्दर है। काव्य-रूप की दृष्टि से भी यशोधरा गुप्तजी के प्रबंध-कौशल का परिचायक है। यह प्रबंध काव्य है लेकिन समाख्यानात्मक नहीं है। चरित्रोद्घाटन पर कवि की दृष्टि केन्द्रित रहने के कारण यह नाट्य प्रबंध है और एक भावनामयी नारी का चरित्र-उद्घाटन होने से इसमें प्रगीतात्मकता का प्राधान्य है। अतः ‘यशोधरा’ को प्रगीतात्मक नाट्य प्रबंध कहना चाहिए जो एक सर्वथा परम्परामुक्त काव्य रूप है।
– सरिता सुराणा
स्वतंत्र पत्रकार एवं साहित्यकार
हैदराबाद