शिक्षा का उद्देश्य दुनिया को समझना नहीं बल्कि दुनिया को बदलना भी हैं
[नोट-वैसे तो यह लेख 28 सितंबर को प्रकाशित हो जाना चाहिए। कुछ कारणवश संभव नहीं हो सका। इसीलिए इसे आज प्रकाशित कर रहे हैं। लेख में प्रकाशित विचार लेखक है। संपादक का समहत होना आवश्यक नहीं है। विश्वास है पाठक इस लेख पर अपनी प्रतिक्रिया फोटो के साथ भेज सकते हैं।]
भारत में क्रांतिकारी सोच के युवाओं ने आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन जांबाज रणबांकुरों ने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। देश की आज़ादी के लिए अपना जीवन बलिदान करने वाले इन वीर युवा सपूतों की विचारधारा में गजब की समानता है। देश के महान क्रांतिकारियों के लिए पहले देश है बाद में धर्म।
सुभाष चंद्र बोस ने देश की आजादी के लिए आज़ाद हिंद फौज बनाई। भगत सिंह, राज गुरु, सुखदेव, अशफाक उल्ला खां, राम प्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद देश की आजादी के प्रमुख युवा क्रांतिकारी हैं। कितनी अजीब बात है कि आज़ादी के यह क्रांतिकारी आरआरएस और हिन्दू महासभा के सदस्य नहीं थे। जबकि आरएसएस का गठन 1925 में हुआ था और हिन्दू महा सभा का 1914 में।
आजादी के इन दीवानों ने भगवा वस्त्र पहनकर” जय श्री राम ” के नारे नहीं लगाएं। आजादी के इन महान क्रांतिकारियों ने राष्ट्रवाद का राग अलापने वाली आरएसएस की सदस्यता क्यों नहीं ली? धर्म की बात करने वाली हिन्दू महा सभा की सदस्यता भी सुभाष चन्द्र बोस, चन्द्र शेखर आजाद, भगत सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल, राजगुरु, सुखदेव ने स्वीकार नहीं की यह महत्वपूर्ण तथ्य भारत के युवाओं की सोच से परे हैं। कितनी अजीब बात है कि धर्म के नाम पर भारत का युवा उन्मादी हुआ जा रहा हैं।
देश की एकता, अखंडता, सुरक्षा को तोड़ना भारत के युवाओं के लिए धर्म हैं। धर्म के इन्हीं दकियानूसी विचारों के कारण यह भगत सिंह नास्तिक हो गये। राजगुरु, सुखदेव चंद्रशेखर आजाद ने अपने नाम से वर्ण व्यवस्था और जाति का सूचक सर नेम हटा दिया। आरएसएस और हिन्दू महासभा के लिए देश की आजादी से ज्यादा महत्वपूर्ण धर्म था।
वर्तमान समय के युवा भले ही इन महान क्रांतिकारियों को अपना आदर्श मानते हो, लेकिन देश की आज़ादी के लिए अपने जीवन का बलिदान करने वाले इन युवा क्रांतिकारियों की फोटो पर फूल चढ़ाने और उनके विचारों पर चलने में जमीन आसमान का अंतर हैं। भगत सिंह नास्तिक हैं। भगत सिंह कहते हैं कि जो भी विकास के लिए खड़ा है उसे हर रूढ़िवादी चीज़ की आलोचना करनी होगी। उसमें अविश्वास करना होगा और उसे चुनौती देनी होगी।
भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव , चंद्रशेखर आजाद जैसे महान युवा क्रांतिकारियों ने अपने नाम के साथ वर्ण और जाति के नाम पर भेदवाव करने वाले सरनेम नहीं लगाए इन महान युवा क्रांतिकारियों ने वर्ण व्यवस्था और छुआछूत के खिलाफ यह तरीका अपना कर देश को महत्वपूर्ण संदेश दिया। पूंजीवाद, निजीकरण के खिलाफ इन महान क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों की सत्ता के खिलाफ बिगुल बजाया।
वर्तमान भारत के युवाओं की सोच आज़ादी के इन महान क्रांतिकारियों की सोच से सर्वाधिक जुदा हैं। झूठे राष्ट्रवाद के नाम पर देश की सरकारी संपत्ति को पूंजीपतियों के हाथों बेचा जा रहा और युवा कश्मीर फाइल्स पर ताली बजा रहा हैं। देश के महान युवा क्रांतिकारियों ने धर्म और जाति की बेड़ियों को तोड़कर देश की एकता, अखंडता, सुरक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। यह महान क्रांतिकारी एक थाली में खाना खाने वाले महान युवा हैं।
आज के युवाओं की सोच को धर्म की रूढ़िवादी जंज़ीरों ने जकड़ रखा है। आज के युवाओं के लिए धर्म पहले हैं और देश बाद में। आज का युवा इन महान क्रांतिकारियों की तरह न तो अंधविश्वास और पाखंड के खिलाफ हैं और न ही वर्ण व्यवस्था, छुआछूत, निजीकरण और पूंजीवाद के। इन महान क्रांतिकारियों ने देशवासियों को हिन्दू मुस्लिम एकता, प्रेम, भाईचारे, साम्प्रदायिक सौहार्द की सीख दी लेकिन आज का युवा अपने ही देश के नागरिकों के साथ दुश्मनों जैसा सलूक कर रहा हैं जो कि संविधान विरोधी और गैर जिम्मेदाराना हैं।
एडवोकेट राजेश चौधरी
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