हैदराबाद : शब्दांकित साहित्य मंच, लातूर (महाराष्ट्र) द्वारा डॉ उर्मिला राघवेंद्र चाकुरकर की पुस्तक ‘विठोबा’ के हिंदी अनुवादक मा. प्रो. डॉ. गणेश राज सोनाले के नेतृत्व में सेमिनार आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में मा. डॉ गंगाधर वानोडे (क्षेत्रीय निदेशक, केंद्रीय हिंदी संस्थान, हैदराबाद) ने विठोबा संग्रह पर टिप्पणी की। उन्होंने विठोबा की उत्कृष्ट व्याख्या की और कहा कि ये कविताएँ आंतरिक संवेदनाओं की रचनात्मक यात्रा हैं। विठोबा की इन कविताओं को पढ़ते समय आपके और मेरे बीच का अंतर मिट जाता है और एकता की भावना पैदा होती है और एक समान विचारधारा वाले मित्र के साथ संवाद करने जैसा महसूस होता है।
कार्यक्रम का परिचयात्मक भाषण शब्दांकित साहित्य मंच के संस्थापक एवं ‘साहित्यनयन’ यूट्यूब चैनल के निदेशक डॉ. नयन भादुले राजमाने ने दिया। कवयित्री उर्मिला चाकुरकर ने शब्दांकित साहित्य मंच के सातत्यपूर्ण कार्यों की सराहना की। उन्होंने ‘विठोबा’ के हिंदी अनुवाद की प्रक्रिया पर भी टिप्पणी की। अध्यक्षीय निष्कर्ष में केंद्रीय हिंदी अनुसंधान, आगरा एवं नई दिल्ली के मुख्य निदेशक प्रो. डॉ. सुनील कुलकर्णी देशगव्हाणकर ने कहा कि ‘विठोबा’ एक असाधारण एवं प्रभावशाली खंडकाव्य है। इन कविताओं में कवि इस बात की वकालत करता है कि भक्ति में कोई बाजार या व्यापार नहीं होना चाहिए। ऐसा न करने के लिए कवयित्री ने इन कविताओं में एक व्यंग्यात्मक टिप्पणी की है।
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सुनील कुलकर्णी ने कहा कि साहित्य सृजन का उद्देश्य आम आदमी की पीड़ा को दूर करना और आम आदमी को अलौकिक सुख की अनुभूति कराना होना चाहिए। काव्य संग्रह ‘विठोबा’ से ये दोनों उद्देश्य काफी हद तक प्राप्त हुए हैं। इस कविता संग्रह ने इंसान की मानवता में आस्था को मजबूत करने का काम किया है और इसके लिए कवयित्री बधाई की पात्र हैं। विठोबा की कई कविताएँ कवयित्री की भिन्न दृष्टि को दर्शाती हैं। विठोबा समाज का स्वरूप है और विठोबा के रूपक के माध्यम से कवयित्री ने समाज के अंतर्विरोधों को कई रूपों में, कई भावनाओं के माध्यम से उजागर किया है। इस कालजयी साहित्यकृती की विशेषताओं को भी उजागर किया।
इस संगोष्ठी में अनेक गणमान्य व्यक्ति, शब्दांकित साहित्य मंच के सभी सदस्य, रसिक श्रोता अन्य उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन मा. तहसीन सैयद द्वारा किया गया। रजनी गिरवलकर ने आभार ज्ञापित किया।