[नोट- ‘सभ्य समाज में अकेलेपन का दर्द भोगते बुजुर्ग और बढ़ते वृद्धाश्रम के कारण व निवारण’ 16 जुलाई को ‘विश्व भाषा अकादमी भारत तेलंगाना इकाई’ की ओर से संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में सभी वक्ताओं ने सारगर्भित विचार रखे हैं। यह केवल वक्ताओं के विचार ही नहीं, बल्कि वर्तमान और आने वाली पीढ़ी के लिए संदेश भी छोड़ गये हैं। संगोष्ठी में वृद्धाश्रम- अभिशाप और आवश्यक दोनों विचार भी सामने आये। अपने-अपने तर्क में दोनों विचार भी सही हैं। यह केवल व्यक्ति की सोच पर निर्भर करता है कि क्या सही और क्या गलत हैं। ‘विश्व भाषा अकादमी भारत तेलंगाना इकाई’ की इस पहल के लिए हम संस्थापिका सरिता सुराणा जी को बधाई देते है, क्योंकि लोगों के लिए बुजुर्ग एक जटिल समस्या होती जा रही है। इस पर चर्चा होने की जरूरत है। इन लेखों से एक भी व्यक्ति प्रभावित होता है, तो हम अपने कर्तव्य को सार्थक मानते हैं। हमारा सभी से आग्रह है कि इस विषय पर वे अपनी रचानाएं तुरंत Telanganasamachar1@gmail.com पर भेजे दें। धन्यवाद।]
सभ्य समाज में अकेलेपन का दर्द भोगते बुजुर्ग और बढ़ते वृद्धाश्रम कारण और निवारण संयुक्त राष्ट्र संघ का भी मानना है कि 60 वर्ष की आयु वृद्धावस्था की पहचान है। अतः वृद्ध से हमारा आशय उस व्यक्ति से है जिसने 60 की आयु पार कर ली है।
अकेलेपन की समस्या
बच्चा जब युवा होता है तो माता पिता चाहते हैं कि उसे कोई अच्छा सा जॉब मिल जाए तांकि वह अपने परिवार के साथ सुखद जीवन निर्वाह कर सके। एक तो जहाँ नोकरी मिलती है वहाँ जाना पड़ता है चाहे देश में या विदेश में। दूसरा कि बच्चे को उच्च शिक्षा (MS) के लिए विदेशों में भेजा जाता है (चाहे इधर उधर से या बैंकों से कर्ज क्यों न लेना पड़े)। बच्चा अपनी स्टडी के दौरान ही अपने आस पास के जो भी वरिष्ठ दोस्त होते हैं, उससे मार्गदर्शन प्राप्त करता है। सर्विस की तलाश में भी जुट जाता है। जैसे ही उच्च शिक्षा समाप्त हुई, उसे जॉब उसी देश में मिल जाता है। धीरे धीरे वह वहीं सैटल हो जाता है। वह वापस देश में आने का नहीं सोचता है। माता पिता भी यही सोचते हैं कि बेटा जहाँ सेटल्ड हुआ, चलो ठीक है। माता पिता भी गर्वित महसूस करते हैं। समाज में काफी नाम होता है। कुछ वर्षों तक तो वे अपने माता पिता से दूरभाष तथा अन्य संचार माध्यमों से सम्पर्क में रहते हैं। परन्तु वहाँ की जीवन शैली तथा नौकरी और व्यवस्था में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि भारत में उनकी बाट जोहते माता-पिता से उनका सम्पर्क कम होता चला जाता है।
दूसरी तरफ माता पिता में स्वास्थ्य सम्बंधित समस्याएं उत्पन्न जाती हैं। जैसे- कम दिखना, सुनाई कम पड़ना, कमर में दर्द, घुटनों में दर्द…आदि। इसके साथ मानसिक रोग भी परेशान करते हैं। जैसे- BP, Hypertension, heart problem, digestion problem… से ग्रस्त हो जाता है। यदि एक की मृत्यु हो जाती है तो स्थिति और भी दयनीय हो जाती है। बच्चों की अधिक संरक्षण व सहायता महसूस करने लग जाता है। स्वयं को अकेला और निराश्रित महसूस करता है। व्यक्ति आप अपने दुःख दर्द को किसी दूसरे से बांटने की स्थिति में नहीं रह जाता है। अगर आर्थिक स्थिति की खस्ता हालत जोड़ दी जाए तो तनाव की स्थिति और भी भयावह हो जाती है।
निवारण
- आपके पास जो भी गुण हैं, जैसे- आप पढ़े लिखे हैं तो स्कूल/कॉलेज में मुफ़्त पढ़ाइये या गरीब/जो भी बच्चों को मुफ़्त ट्यूशन/कोचिंग दीजिए जिससे time पास भी होगा और तनाव भी कम होगा।
- आप समृद्ध हैं तो किसी स्कूल से attach हो जाए। गरीब बच्चों को स्कॉलरशिप, यूनिफॉर्म, कॉपी, टेक्स्टबुक, शूज.. को दिला दीजिए।
- पेंटिंग जानते हैं तो पेंटिंग कीजिए, चित्रकारी जानते हैं तो चित्रकारी कीजिए। किशोरों/किशोरियों को को मुफ़्त सिखाइये।
- योग कीजिए। तन मन स्वस्थ रहेगा। आपको शांति मिलेगी। योग में दक्षता तो योग सेंटर खोलिए। लोगों को फ्री में सिखाइए। लोगों के साथ साथ समाज व राष्ट्र भी खुशहाल बनेगा
। - सीनियर सिटीजन क्लब में जाइए। वहाँ पर आपको हमउम्र के लोग मिलेंगे तो उनके साथ पॉज़िटिव चर्चा कीजिए। अगर क्रीड़ा की सुविधा है तो जिसमें आप दक्ष हैं, जैसे- बैडमिंटन, लूडो, शतरंज, कैरम बोर्ड.. खेलिए। अगर नहीं भी आती हो तो आंनद लीजिए।
- हास्य क्लब जाइए।
आजकल संचार के माध्यम जैसे व्हाट्सएप में फ्री ऑडिओ, वीडियो उपलब्ध हैं। अपने मित्रों, सगे-सम्बन्धियों से बातचीत कीजिए। - अगर आप को संगीत प्रिय है तो यू ट्यूब में फ्री नये या पुराने गीत जो भी आपको पसंद है और सुनिए।
- यदि संगीत वाद्य यंत्र जिसमें भी आप निपुण है, जैसे- हारमोनियम, तबला, सितार, गिटार… जानते हैं तो बजाइए। आनंद लीजिए। अगर महारथ हासिल है तो लोगों को फ्री सिखाइए।
- भजन/कीर्तन/गुरूवाणी में अभिरुचि है तो गाइए/धर्मस्थलों में सुनाइए।
- भगवत गीता, रामायण, रामचरितमानस, वेद, पुराण, उपनिषद, गुरु ग्रन्थ साहिब…आदि पढ़िए। सहज पाठ कीजिए। उसका टिका/अनुवाद उपलब्ध है तो कुछ ही चौपाइयों के साथ उसका अर्थ भी क्या है, धीरे-धीरे पढ़िए, समझिए। असीम शांति मिलेगी।
- गेट टूगेदर कीजिए। हंसिए और हसाइए। खाइए और खिलाइए। अपने घर दोस्तों को बुलाइए या आप उनके घर चले जाइए। तनाव कम होगा। अच्छा खासा टाइम पास होगा।
- जिस किसी विद्या जैसे कविता (चाहे छंद बद्ध, छंद मुक्त ), गीत, ग़ज़ल, दोहा, कहानी, आलेख.. में अभिरुचि है तो लिखिए। नहीं लिख सकते तो दूसरों को पढ़ाकर आनंद लीजिए।
- कैसे भी आप के पास अनुभव की भरमार है। विभिन्न साहित्यिक पटल से जुड़िए। वे माह में एक या दो बार प्रोग्राम रखते/मासिक गोष्ठी भाग लीजिए। विषय दिए जाते हैं तो आप अपने अनुभव के आधार पर विषय पर आलेख लिखिए। आप अपने विचार साझा करना चाहते हैं तो अवगत करवा दीजिए। एक दो बार हिचकिचाहट होगी। आपको प्रोत्साहन मिलेगा ही। भविष्य की प्रस्तुति उत्कृष्ट होगी। काव्य गोष्ठी में हिस्सा लीजिये। रचना सुनाइए, दूसरों की भी सुनिए। भविष्य में उत्कृष्टता आएगी।
- जिस किसी धर्म से सम्बंधित हैं, उस धर्म स्थल में जाइए। पूजा, पाठ, गुरूवाणी, कीर्तन, भजन सुनिए।
- पॉज़िटिव लोगों से जुड़िए। अन्यथा नेगेटिव माइंडेड हर मोड़, चौरस्ते, गली, मौहल्ले में हैं, जिससे सिर्फ आपका पतन होगा।
- हर हाल में अपने को फिट रखिए। समय निकालिए। योग, व्यायाम, वॉकिंग, जॉगिंग कीजिए। अभी हाल में ही श्री मति मान कौर को राष्ट्रपति माननीय रामनाथ कोविंद जी ने नारी शक्ति अवॉर्ड दिया था। उनकी उम्र 100 वर्ष से ऊपर है।
- हर हालत में पॉजिटिव थिंकिंग, पॉजिटिव थॉट, पॉज़िटिव ऐटिटूड बनाए रखिए। आप सदैव खुश रहेंगे।
वृद्धावस्था कारण व निवारण
- अगर आपने बच्चों को अच्छे संस्कार नहीं दिए हैं। आप भौतिक वाद में खोए रहे हैं। किड्डी पार्टी, ऐशो आराम में खोए रहे हैं। बच्चों को समय नहीं दे पा रहे हैं। बच्चों की किसके साथ संगती/दोस्ती हैं। आजकल बहुत सारी इलेक्ट्रॉनिक साधन उपलब्ध हैं। ध्यान नहीं दिया तो गुमराह होने की सम्भावना बनी रहती है। इसका खामियाजा तो भुगतना ही पड़ेगा।
- यह ठीक बात है कि आजकर पति-पत्नी दोनों सर्विस करते हैं। बच्चे आया के पास पलते हैं। जबतक आप आते हैं, बच्चे को सोया पाते हैं। फिर जरा बढ़ा होता है तो होस्टल में डाल देते हैं। जिससे उसमें प्रेम, दया, सेवा, सहानुभूति, आज्ञापालन, सहयोग जैसे गुणों की कमी होगी। परिणाम वृद्धाश्रम तय है।
- सामंजस्य नेचर होना चाहिए
। पति-पत्नी दोनों सर्विस करने वाले होते हैं तो जब घर आते हैं तो थकहारे होते हैं। आप चाहते हैं कि मुझे समय पर खाना मिले, समय पर बीमारी का इलाज मिले, समय लर दवा मिले, मेरे पास बैठकर बातचीत करें। अगर सामंजस्य नहीं हो पाता है तो रोज दिन आपकी टीका टिप्पणी कौन सुने। परिणाम वृद्धाश्रम। - मोह गुण प्रभु ने मानव में भर कर रख दी है। कैसे भी प्रोपर्टी (हाउस, फ्लैट,प्लॉट आदि) मोहवश होकर बच्चों के नाम कर देते हैं या बेचकर बच्चों के एकाउंट में डाल देते हैं। परिणाम वृद्धाश्रम।
रेमोंड का नाम आपने सुना ही होगा। उन्होंने बेटे के नाम अरबों रुपए की रेमोंड कंपनी तथा अपना 25 फ्लोरिड हाउस कर दिया। आज माता पिता बेदखल कर दिए गए। किराए के मकान में रह रहे हैं।
दूसरा उदाहरण: बेटा विदेश से आया। माँ को बोला। बेचो घर को और मेरे साथ चलो विदेश। उसके पति की मृत्यु हो गई थी। किराया जो भी आ रहा था। उससे वह जी रही थी। घर बेच दिया। बेटे के एकाउंट में डाल दिया। एयर पोर्ट पहुंचा। माँ को बाहर वेटिंग रूम में छोड़ कर फ्लाइट से चला गया। आज माँ उसी घर में नौकरानी बन कर रह रही है या वृद्धाश्रम। निष्कर्ष- प्रोपर्टी मरने के उपरांत ही बच्चों के नाम कीजिए।
- आजकल टेक्नोलॉजी का जमाना है। टेक्नोलॉजी में इतने अंधे हो गए हैं कि हम अपने परिवार और समाज को भूल चूके हैं। टेक्नोलॉजी की अतियुक्ति से भी नफ़रत फैलती है, द्वेष होता है। परिणाम वृद्धाश्रम।
- कभी कभार माता पिता अनावश्यक हस्तक्षेप करते हैं। बेटे ने कुर्सी संभाली है तो जीने दो, दूर से देखिए। गलतियां हो सकती हैं। उचित समय पर सुझाव दीजिए। अन्यथा वृद्धाश्रम।
- कभी अनावश्यक तत्व अपनी मीठी बातों से या वाक्पटुता से घर में सेंध लगा लेते हैं। परिणाम वृद्धाश्रम।
- आज की परिस्थिति भी माता पिता के साथ प्यार और अनुराग के अभाव के लिए जिम्मेदार है। इसके लिए पाश्चात्य संस्कृति भी जिम्मेदार है। माता पिता भी वृद्धाश्रम और आने वाली पीढ़ियां भी वृद्धाश्रम की सलाखों में हैं।
वृद्धाश्रम एक विकृति है। जिसे हम सभी को एक साथ खड़े होकर विरोध करना चाहिए। वर्ना बुजुर्ग और बुढा शब्द अपमान बन जाएगा। जबकि सभी को उस उम्र से होकर गुजरना होता है। लेकिन हमारी भारतीय संस्कृति को दर्शाने वाली
श्री रामचरित मानस में तुलसीदास रामचरित्र का वर्णन करते हुए लिखते हैं
- “प्रातः काल उठि के रघुनाथा
मात पिता गुरु नावहिं माथा”
“A nation can be poor but it can be developed but when a nation looses it culture and tradition can not brought back”
– लेखक दर्शन सिंह मौलाली हैदराबाद