(ग) दैविक परिवर्तन या आध्यात्मिक परिवर्तन:
चिति या देवी के अनन्त नाम, अनन्त रूप हैं। “श्रीदुर्गाष्टोत्तर शतनामस्तोत्रम” में इस देवी के 108 नाम रूपों का वर्णन है। श्री “अथदुर्गाद्वाशन्नाममाला” में देवी के 33 परमगुप्त भावबाधा निवारिणी नामों के जाप का उल्लेख है। इसी प्रकार स्थान – स्थान पर देवी के अन्य कई नामों का उल्लेख मिल जाता है। किंतु लोक जीवन में इस देवी शक्ति के (9) नौ रूपों की सर्वाधिक मान्यता श्रीमार्कण्डेय पुराण के एक विशिष्ट अंश (ग्रंथ) से मिली है, जिसे हम लोग “श्रीदुर्गासप्तशती” के नाम से जानते हैं।
“नवरात्र” देवी उपासना “शिवा” या दुर्गा शक्ति के ये नौ मानवीयकरण प्रतीक किसी न किसी विशिष्ट दैविक या आध्यात्मिक शक्ति के द्योतक हैं और इसी रूपों का विवेचन, इस लेख का प्रमुख प्रतिपाद्य विषय है।
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यह मानव ही है जिसने उस दिव्य शक्ति को विभिन्न रूपों में स्वीकार किया, पूजित किया और जनजीवन से जोड़ा। देवी के नौ रूपों को लोकजीवन में जिसने प्रचारित प्रसारित किया वह पावन ग्रंथ है “श्रीदुर्गासप्तशती” जहां देवी कवच महात्म्य का वर्णन करते हुए ब्रह्मा जी ने महामुनि मार्कण्डेय जी से देवी के गुप्त रूपों की स्पष्ट चर्चा इन शब्दों में की है-
अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्व भूतोपकारकम।
देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छ्रीणुष्व महामुने।।
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी ।
तृतीयं चन्द्रघंटेति कूषमांडेति चतुर्थकम।।
पंचम स्कंदमातेति षष्ठम कात्यायनीति च।
सप्तम कालरात्रीति महागौरीति चाष्टकम।।
नवम सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्राह्मणेव महात्मना।।

डॉ जयप्रकाश तिवारी बलिया/लखनऊ, उत्तर प्रदेश संपर्क सूत्र: 9453391020
