[नोट- लेखक राजेंद्र जिज्ञासू जी की लिखी- ‘जीवन संग्राम क्रातिवीर पंडित गंगाराम वानप्रस्थी’ पुस्तक पाठकों के लिए जल्द ही उपलब्ध हो जाएगी। छपाई का काम अंतिम चरण में है। यह पुस्तक इतिहासकारों और साहित्याकारों के लिए उपयोगी साबित होगी। साथ ही व्यक्ति के जीवन की सार्थकता का संदेश देगी।]
आज श्रावण का सोमवार नागपंचमी 21 अगस्त के ही दिन यानी 90 वर्ष पूर्व हैदराबाद राज्य में एक इतिहास रचा गया। वह इतिहास है शूरता और परोपकार का। बात 1933 की है। हैदराबाद रियासत के जिला निजामाबाद में बासर क्षेत्र में गोदावरी नदी उफान पर बहती है। श्रावण मास का सोमवार का दिन था। हिन्दू धर्म स्वावलंबन के लिए यह एक महान है। विशेष दिन होता है। मान्यता और परंपरा के अनुसार इस दिन नदी में स्नान करना पवित्र माना जाता है।
MIDHANI
श्रावण पर्व का सोमवार और भीड़ को नियंत्रण करने स्काउट के कैडर को रखा गया था और इन्हें सब पर निगरानी करने का निर्देश दिया गया था। इसी स्काउट में एक बालक का नाम था गंगाराम जी। इनकी आयु सीमा 16 – 17 वर्ष की होगी। उनसे कहा गया कि नदी में स्नान करने वालों की देखरेख करें और नदी के आसपास कोई डूबने न पाए इस पर नियंत्रित किया जाये। निर्देश के पालन में मग्न गंगाराम जी ने देखा कि दो बाल विधवा नदी में आत्महत्या करने के लिए छलांग लगा दी। गंगाराम के पास उनके लीडर या कैप्टन को बताने का समय भी नहीं था। उन्होंने उफनती नदी में छलांग लगा दी और दोनों मे से एक बाल विधवा को बचाने में सफलता मिल गई।
गंगाराम जी के लिए यह ऐतिहासिक उपलब्धि साबित हो गई। इस दिन (21 अगस्त 1933) को शौर्यता और वीरता के लिए जाना जाता है। निजाम के मुकुट के आकार का गैलंट्री अवॉर्ड ( महिला सुरक्षा पर दिया जाता है ) जो लगभग 13 वर्ष पूर्व घोषित किया गया। गैलंट्री अवॉर्ड सबसे पहले पाने वाले पण्डित गंगाराम जी रहे हैं। यह एक नया इतिहास रच गया है। इस बहादुर युवक गंगाराम जी को उफनती नदी से बाल विधवा को बचाने के संदर्भ में पुरस्कृत सम्मानित किया गया। निजाम के मुकुट के आकार में मेडल, हैदराबाद स्थित ब्रिटिश एजेंट सर गिड़नी की पत्नी के करकमलों से सम्मानित किया गया।
एक परोपकारी आर्य कुमार पंडित गंगाराम ने जो कर दिखाया इस संदर्भ में एक महान कवि गोस्वामी तुलसीदास जी की पंक्तियां याद आती है :
परहित सरिस धर्म नहिं भाई।
पर पीड़ा सम नहिं जग माई।।
तात्पर्य परहित के समान कोई धर्म नहीं, पर पीड़ा के समान कोई अधमाई नहीं। यह कवि गोस्वामी तुलसीदास जी के विचार सटीक बैठते है पंडित गंगाराम जी के आदर्श को दर्शाता है। इस असाधारण साहसिक कार्य के लिए सम्मान किया गया, वह केवल निजाम रियासत ही नहीं बल्कि निजामाबाद के जागीरदार और अन्यों ने भी सम्मानित और पुरस्कृत किया गया।
इतिहास लेखकों और विचारकों के लिए यह अत्यंत आश्चर्य का विषय है कि जिस शिशु का पिता उसे 3 वर्ष की आयु में अनाथ छोड़कर चल बसा, वह बड़ा होते-होते ऐसा परोपकारी, क्रांतिकारी, उच्च शिक्षित व सर्वहितकारी नेता कैसे बन गया? यह उद्गार है प्रसिद्ध आर्य जगत के इतिहासकार प्रा. राजेंद्र जी जिज्ञासु के गंगाराम जी के इस साहसिक कार्य के संदर्भ में उल्लेख किया है। इस तिथि को आज स्मरण करते हुए हैं हमें उनके शौर्य और परोपकार के पथ पर चलने की प्रेरणा मिलती है।
भक्तराम, चेयरमैन
स्वतंत्रता सेनानी पंडित गंगाराम स्मारक मंच